रिश्वत की मांग और स्वैच्छिक स्वीकृति का सबूत दोषसिद्धि के लिए महत्वपूर्ण, चिह्नित करेंसी नोटों की बरामदगी पर्याप्त नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

23 Dec 2024 12:30 PM IST

  • रिश्वत की मांग और स्वैच्छिक स्वीकृति का सबूत दोषसिद्धि के लिए महत्वपूर्ण, चिह्नित करेंसी नोटों की बरामदगी पर्याप्त नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि रिश्वत की मांग और स्वैच्छिक स्वीकृति के सबूत के बिना चिह्नित करेंसी नोटों की बरामदगी या सकारात्मक हैंड वॉश टेस्ट भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों के तहत दोषसिद्धि को बनाए नहीं रख सकती।

    जस्टिस पुनीत गुप्ता ने पूर्व लेखा अधिकारी को बरी करते हुए इस बात पर जोर दिया कि भ्रष्टाचार के मामलों में आरोपी को दोषी ठहराने के लिए अभियोजन पक्ष को इन मूलभूत तत्वों को उचित संदेह से परे स्थापित करना चाहिए।

    उन्होंने कहा, "इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता है कि आरोपी से करेंसी नोटों की बरामदगी या हैंड वॉश टेस्ट भले ही सकारात्मक हो, आरोपी को दोषी साबित नहीं करेगी जब तक कि अभियोजन पक्ष द्वारा रिश्वत की मांग और स्वैच्छिक स्वीकृति के मूल तत्वों को साबित नहीं किया जाता है। जब तक अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपी के खिलाफ अपना मामला साबित करने का प्रारंभिक दायित्व नहीं निभाया जाता है, तब तक वर्तमान प्रकृति के मामले में अपनी बेगुनाही साबित करने का दायित्व आरोपी पर नहीं आता है।"

    मामला

    यह मामला बिजली विकास विभाग (पीडीडी) में सेवानिवृत्त लेखा अधिकारी मोहम्मद सुभान शाह से जुड़ा है, जिन्हें विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार विरोधी), कश्मीर ने दोषी ठहराया था। शाह पर आरोप है कि उन्होंने मोहम्मद अमीन मिसगर नामक व्यक्ति से उसकी निरीक्षण रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजने के लिए 1,000 रुपये की रिश्वत मांगी थी।

    मिसगर की शिकायत के आधार पर सतर्कता संगठन, कश्मीर (वीओके) ने जाल बिछाकर शाह के कोट की जेब से चिह्नित नोट बरामद किए। निचली अदालत ने शाह को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक साल की कैद और रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) की धारा 161 के तहत छह महीने की सजा सुनाई। सजा से असंतुष्ट शाह ने अपील की और खुद को निर्दोष बताया तथा सबूतों की पर्याप्तता को चुनौती दी।

    मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस पुनीत गुप्ता ने मुकदमे के दौरान पेश किए गए सबूतों और गवाही की जांच की और महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि रिश्वत की मांग और स्वैच्छिक स्वीकृति को साबित करने में अभियोजन पक्ष की विफलता एक महत्वपूर्ण चूक थी। जबकि शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी ने निरीक्षण रिपोर्ट को आगे बढ़ाने और टीई बिलों को क्लियर करने करने के ‌लिए रिश्वत की मांग की थी। प्रारंभिक शिकायत में केवल पहले आरोप का उल्लेख किया गया था और इस असंगति ने शिकायतकर्ता की गवाही की विश्वसनीयता को कम कर दिया और आरोपों की वास्तविकता पर संदेह पैदा किया।

    शैडो विटनेस की भूमिका भी जांच के दायरे में आई क्योंकि जस्टिस गुप्ता ने पाया कि गवाह ने न तो रिश्वत के बारे में कोई बातचीत सुनी और न ही आरोपी को रिश्वत मांगते देखा, क्योंकि उसकी गवाही ने केवल करेंसी नोटों की बरामदगी की पुष्टि की। न्यायालय ने कहा कि मांग और स्वीकृति की पुष्टि के बिना केवल बरामदगी ही दोषसिद्धि को बनाए नहीं रख सकती।

    कोर्ट ने कहा, “शैडो विटनेस ने केवल इतना कहा है कि उसने शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी को पैसे देते हुए कुछ हरकतें देखी हैं। न्यायालय ने टिप्पणी की कि आरोपी द्वारा आरोपी से पैसे मांगना और शिकायतकर्ता से स्वेच्छा से पैसे लेना, जबकि शैडो विटनेस के बयान में दोनों ही मौजूद नहीं थे, ट्रायल कोर्ट ने माना है कि आरोपी द्वारा आरोपी से पैसे मांगना और फिर शिकायतकर्ता से पैसे स्वीकार करना एक महत्वपूर्ण कार्य था।”

    जस्टिस गुप्ता ने जांच में प्रक्रियागत खामियों को भी उजागर किया, खासकर साइट प्लान तैयार करने में पांच महीने की अस्पष्ट देरी। न्यायालय ने कहा कि इस देरी ने जांच की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाए हैं, जिससे पता चलता है कि साइट प्लान अभियोजन पक्ष के मामले को मजबूत करने के लिए पूर्वव्यापी रूप से तैयार किया गया हो सकता है।

    इसके अलावा, न्यायालय ने इस आधारभूत सिद्धांत को दोहराया कि सबूत का भार अभियोजन पक्ष पर है क्योंकि वह अभियुक्त पर भार डालने के लिए प्रक्रियात्मक साक्ष्य, जैसे चिह्नित नोटों की बरामदगी या फिनोलफथेलिन परीक्षण पर निर्भर नहीं रह सकता। न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष को उचित संदेह से परे, मांग, स्वीकृति और बरामदगी सहित अपराध के सभी तत्वों को स्वतंत्र रूप से स्थापित करना चाहिए।

    ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए, उच्च न्यायालय ने शाह को सभी आरोपों से बरी कर दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा अपराध के आवश्यक तत्वों को स्थापित करने में विफलता ने दोषसिद्धि को अस्थिर बना दिया।

    केस टाइटल: मोहम्मद सुभान शाह बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

    साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (जेकेएल) 346

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