आतंकी खतरे का हवाला देकर ड्यूटी से गैरहाज़िर रहना सही नहीं: जम्मू-कश्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट
Praveen Mishra
9 Sept 2025 5:13 PM IST

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि कोई पुलिसकर्मी केवल आतंकवादी खतरे का हवाला देकर 19 साल तक ड्यूटी से गायब रहने को सही नहीं ठहरा सकता। कोर्ट ने कहा कि इतने लंबे समय तक अनुपस्थिति, वह भी बिना किसी ठोस सबूत के, गंभीर कदाचार है और पुलिस बल के सदस्य के लिए अनुचित आचरण है।
चीफ़ जस्टिस अरुण पाली और जस्टिस रजनेश ओसवाल की खंडपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता आतंकी खतरे का दावा साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं कर सका। कई नोटिस और आदेश मिलने के बावजूद उसने ड्यूटी जॉइन नहीं की।
कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की, “एक पुलिसकर्मी, जो केवल आतंकवादी खतरे के कारण ड्यूटी पर वापस नहीं आता, उससे देश के नागरिकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा की उम्मीद नहीं की जा सकती।”
बेंच ने कहा कि militancy के चरम पर, जब हर एक जवान की ज़रूरत थी, उस समय याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति को माफ़ नहीं किया जा सकता।
मामला इस प्रकार था—
• याचिकाकर्ता ने 1990 के दशक की शुरुआत में पुलिस में जॉइन किया।
• 15 जून 1990 को 30 दिन की छुट्टी ली, जिसे 30 दिन और बढ़ाया गया। इसके बाद वह वापस नहीं लौटा।
• उसका दावा था कि militancy और जान से मारने की धमकी के कारण वह ड्यूटी पर नहीं जा सका।
• वह 2009 में सामने आया और एक अर्जी दी, जिसे खारिज कर दिया गया।
• 2016 में हाईकोर्ट ने उसका मामला दोबारा विचारने का आदेश दिया। 2017 में व्यक्तिगत सुनवाई के बाद भी उसका मामला सबूतों के अभाव में खारिज कर दिया गया।
• ट्रिब्यूनल ने भी पाया कि उसे ड्यूटी जॉइन करने के नोटिस मिले थे, लेकिन उसने अनदेखी की।
हाईकोर्ट ने इन सभी निष्कर्षों को सही माना और उसकी याचिका को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि लगभग दो दशक तक ड्यूटी छोड़ देना, खासकर militancy के कठिन दौर में, किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं है।

