भ्रष्टाचार के आरोपों के आधार पर किसी भी विभागीय कार्यवाही के बिना कर्मचारी को अनिश्चित काल के लिए निलंबित नहीं किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Amir Ahmad
15 Feb 2025 6:04 AM

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कर्मचारी के निलंबन आदेश यह कहते हुए रद्द कर दिया कि किसी कर्मचारी को अनिश्चित काल के लिए निलंबित नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता एक वर्ष से अधिक समय से निलंबित है। प्रतिवादियों द्वारा आरोप पत्र दाखिल करने के समानांतर कोई विभागीय जांच शुरू नहीं की गई, जो याचिकाकर्ता के निलंबन को समाप्त करने से पक्षपातपूर्ण होगा।
न्यायालय ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि याचिकाकर्ता अगले महीने रिटायर हो रहा है और कहा कि प्रतिवादियों के हितों की पर्याप्त रूप से रक्षा की जा सकती है बशर्ते कि याचिकाकर्ता का निलंबन जारी रखने के बजाय उसे कुर्क करने का निर्देश दिया जाए।
जस्टिस जावेद इकबाल वानी की पीठ याचिकाकर्ता के लंबे समय तक निलंबन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
न्यायालय ने कहा,
"किसी कर्मचारी को उसके नियोक्ता द्वारा निलंबित करने का मुख्य उद्देश्य अस्थायी है। किसी कर्मचारी के आचरण के संबंध में जांच या परीक्षण पूरा करने के उद्देश्य से परिकल्पित कोई स्थायी विशेषता नहीं है।"
न्यायालय ने अजय कुमार चौधरी बनाम भारत संघ सचिव (2015) पर भरोसा किया, जिसमें न्यायालय ने माना कि यदि निलंबन अनिश्चित अवधि के लिए है या यदि इसका नवीनीकरण रिकॉर्ड पर उपलब्ध समसामयिक तर्क पर आधारित नहीं है तो यह निलंबन को दंडात्मक प्रकृति का बना देगा।
पूरा मामला
याचिकाकर्ता एक राजस्व अधिकारी था, जिसे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के आरोपों के लिए गिरफ्तार किया गया। याचिकाकर्ता को इन आरोपों के आधार पर निलंबित कर दिया गया और निलंबन एक वर्ष तक जारी रहा। याचिकाकर्ता ने अपने लंबे निलंबन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अनुपात का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी और यह भी तर्क दिया कि निलंबन आदेश किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी नहीं किया गया।
न्यायालय ने मामले की विशिष्टताओं पर विचार करने के बाद जिसमें निलंबन की अवधि एक वर्ष से अधिक होना याचिकाकर्ता की सेवानिवृत्ति में केवल एक महीने का समय शेष होना तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अनुपात शामिल है, निलंबन आदेश रद्द करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने याचिका का निपटारा करते हुए प्रतिवादी को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को उसकी रिटायरमेंट की अवधि तक कोई भी कार्य सौंपे बिना कार्यालय से संबद्ध करे।
केस टाइटल: अशोक कुमार बनाम भारत संघ एवं अन्य