जम्मू-कश्मीर शरीयत अधिनियम, 2007 सर्वोपरि प्रकृति का, व्यक्तिगत कानून के मामलों के क्षेत्र में सभी प्रथागत कानूनों को दरकिनार करता है: हाइकोर्ट

Amir Ahmad

1 May 2024 9:21 AM GMT

  • जम्मू-कश्मीर शरीयत अधिनियम, 2007 सर्वोपरि प्रकृति का, व्यक्तिगत कानून के मामलों के क्षेत्र में सभी प्रथागत कानूनों को दरकिनार करता है: हाइकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर शरीयत अधिनियम 2007 की सर्वोपरि प्रकृति को रेखांकित करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जम्मू-कश्मीर मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम 2007 व्यक्तिगत कानून के मामलों में सभी प्रथागत कानूनों को दरकिनार करता है।

    निचली अदालत का आदेश बरकरार रखते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा,

    “धारा 2 स्पष्ट रूप से यह स्थापित करती है कि 2007 के अधिनियम में निर्दिष्ट मामलों से संबंधित सभी मामलों में मुस्लिम पर्सनल लॉ को लागू करने का आदेश दिया गया। भले ही इसके विपरीत कोई प्रथा या प्रथा क्यों न हो।”

    निचली अदालत ने अपने उक्त फैसले में अधिनियम के उल्लंघन में किए गए म्यूटेशन रद्द कर दिया था।

    जस्टिस वानी गुलाम मोहम्मद भट उर्फ ​​गुल भट द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार कर रहे थे, जिसमें शोपियां के अतिरिक्त उपायुक्त का निर्णय बरकरार रखने वाले संयुक्त वित्तीय आयुक्त (राजस्व) के आदेश को चुनौती दी गई थी।

    मामले की पृष्ठभूमि

    यह मामला सतार राथर के कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा भूमि संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर विवाद से जुड़ा था, जिनके दो बच्चे हैं- बेटा गुलाम मोहम्मद राथर (मुमा राथर) और बेटी अजीजी।

    सतार राथर की मृत्यु के बाद 2010 में म्यूटेशन को सत्यापित किया गया, जिसमें संपत्ति को मुमा राथर और अजीजी के बीच समान रूप से विभाजित किया गया। हालांकि मुमा राठेर ने शोपियां के अतिरिक्त उपायुक्त के समक्ष इस म्यूटेशन को चुनौती दी, जिसमें दावा किया गया कि 2007 के अधिनियम के तहत अजीजी बेटी के बराबर हिस्से की हकदार नहीं हैं।

    एडीसी ने मुमा राठेर के पक्ष में फैसला सुनाया, म्यूटेशन नंबर 538 को अलग रखा और नए सिरे से जांच का आदेश दिया। इस फैसले को संयुक्त वित्तीय आयुक्त (राजस्व) ने बरकरार रखा।

    अजीजी के कानूनी उत्तराधिकारी गुल भट ने इन आदेशों को हाइकोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि अजीजी को संपत्ति खाना निशान बेटी के रूप में विरासत में मिली, जो कश्मीर में एक प्रथा है, जिसके तहत बेटी को बेटे के समान विरासत के अधिकार दिए जाते हैं।

    प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि 2007 का अधिनियम सभी प्रथागत कानूनों को खत्म कर देता है और अजीजी के विरासत के अधिकार शरिया कानून के अनुसार निर्धारित किए जाएंगे, जो बेटी को बेटे की तुलना में कम हिस्सा देता है।

    अधिनियम की धारा 2 पर न्यायालय की टिप्पणियां और चर्चा:

    इस मामले पर निर्णय देते हुए जस्टिस वानी ने कहा कि 2007 के अधिनियम की धारा 2 में स्पष्ट रूप से कहा गया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) उत्तराधिकार से संबंधित सभी मामलों पर लागू होगा भले ही इसके विपरीत कोई भी प्रथा या प्रथा क्यों न हो।

    न्यायालय ने माना कि अधिनियम के अधिनियमन के बाद 2010 में सत्यापित म्यूटेशन नंबर 538, प्रथागत कानून पर आधारित नहीं हो सकता था।

    न्यायालय ने कहा,

    "मूल संपत्ति धारक सतार राथर की भूमि संपदा के उत्तराधिकार का मामला उनकी मृत्यु के तुरंत बाद खुल गया। फिर भी इस तरह की विरासत का ट्रांसफर, जिसमें उसमें शामिल शेयर शामिल हैं, मुसलमानों के उत्तराधिकार कानून के तहत उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को ट्रांसफर होना चाहिए।”

    अजीजी के कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा दायर लंबित मुकदमा स्वीकार करते हुए, जिसमें खाना निशान बेटी के रूप में उनके उत्तराधिकार के अधिकार का दावा किया गया, न्यायालय ने इस विशिष्ट दावे पर टिप्पणी करने से परहेज किया। कोर्ट कहा कि इसका निर्णय सक्षम सिविल न्यायालय द्वारा किया जाएगा।

    इस प्रकार, याचिका खारिज करते हुए जस्टिस वानी ने 2007 के अधिनियम की सही व्याख्या का हवाला देते हुए निचली अदालतों के निर्णयों को बरकरार रखा।

    केस टाइटल- गुलाम मोहम्मद भट उर्फ ​​गुल भट बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश

    Next Story