समान कार्य के लिए समान वेतन की याचिका दायर करते समय कर्मचारी पर कार्य की प्रकृति में पर्याप्त समानता साबित करने का दायित्व आता है: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट

Amir Ahmad

22 March 2024 8:17 AM GMT

  • समान कार्य के लिए समान वेतन की याचिका दायर करते समय कर्मचारी पर कार्य की प्रकृति में पर्याप्त समानता साबित करने का दायित्व आता है: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट

    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16(1) के तहत निहित "समान कार्य के लिए समान वेतन" के मूल सिद्धांत की पुष्टि करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया कि "समान कार्य के लिए समान वेतन" सिद्धांत के तहत समानता की मांग करने वाले कर्मचारी पर किए गए कार्य की प्रकृति में पर्याप्त समानता साबित करने का दायित्व आता है।

    पदनाम कार्य की प्रकृति और अन्य प्रासंगिक कारकों के बीच जटिल संतुलन पर प्रकाश डालते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा,

    “जो व्यक्ति यह दावा करता है कि कार्य में समानता है उसे इसे साबित करना होगा। हालांकि, समानता पदनाम या कार्य की प्रकृति पर आधारित नहीं है, बल्कि कई अन्य कारकों जैसे कि ज़िम्मेदारियां, विश्वसनीयता, अनुभव, गोपनीयता, कार्यात्मक आवश्यकता और पदानुक्रम में स्थिति के अनुरूप आवश्यकताएं आवश्यक योग्यता पर आधारित है।”

    जस्टिस वानी ने तीन याचिकाकर्ताओं - जगदीश कुमार, रेयाज अहमद और प्रिंसी थप्लू द्वारा दायर मामले में ये टिप्पणियां कीं। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) में डेटा ऑपरेटर के रूप में नियुक्त तीनों ने कृषि, वानिकी और स्वयं हाइकोर्ट जैसे अन्य सरकारी विभागों में समान-पदों पर कार्यरत कर्मचारियों की तुलना में वेतनमान में असमानता को चुनौती दी।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16(1), अनुच्छेद 14 और 39(डी) के साथ पढ़ा जाए तो "समान कार्य के लिए समान वेतन" की गारंटी देता है। उन्होंने दावा किया कि उपर्युक्त विभागों में डेटा एंट्री ऑपरेटर/कंप्यूटर ऑपरेटर के लिए विज्ञापित पदों पर उनके वेतनमान से अधिक वेतनमान है।

    हालांकि एडिशनल एडवोकेट जनरल अमित गुप्ता द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए प्रतिवादियों ने इन दावों का खंडन करते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं के पदों की प्रकृति और कार्यभार उन पदों से अलग है, जिनके साथ वे समानता चाहते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने बिना किसी आपत्ति के स्वेच्छा से अपनी नियुक्तियों को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उनके पास उच्च वेतन मांगने का कोई आधार नहीं है।

    तर्कों की जांच करने पर न्यायालय ने इस सिद्धांत पर जोर दिया कि समान वेतन केवल मात्रा के बजाय किए गए कार्य की प्रकृति पर निर्भर होना चाहिए।

    जस्टिस वानी ने "स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और अन्य बनाम एम. आर. गणेश बाबू और अन्य" (2002) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए जोर दिया कि समान वेतन किए गए कार्य की प्रकृति पर निर्भर होना चाहिए, क्योंकि केवल पदनाम समानता पर्याप्त नहीं होगी। न्यायालय ने रेखांकित किया कि जिम्मेदारियां, विश्वसनीयता अनुभव और गोपनीयता जैसे कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

    मत्स्य विभाग में "कंप्यूटर सहायक" और "कंप्यूटर विश्लेषक" तथा वन विभाग में "कंप्यूटर ऑपरेटर" जैसे पदों के लिए विज्ञापनों पर याचिकाकर्ताओं की निर्भरता अपर्याप्त मानी गई।

    न्यायालय ने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ता यह स्थापित करने में विफल रहे कि इन पदों में एसपीसीबी में उनके डेटा ऑपरेटर की भूमिकाओं के समान जिम्मेदारियां और जटिलताएं शामिल हैं।

    पीठ ने टिप्पणी की,

    "यद्यपि याचिकाकर्ता ने अपने दावों को पुष्ट करने के लिए उपरोक्त तथ्यों और दस्तावेजों का हवाला दिया, फिर भी वे यह दिखाने में विफल रहे कि वे जिन पदों के लिए नियुक्त हैं और जिन पदों के साथ याचिकाकर्ता समानता की मांग कर रहे हैं। वे कार्य, जिम्मेदारी, विश्वसनीयता और गोपनीयता के संबंध में समान और समान हैं।”

    अंततः न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के दावे को योग्यता में कमी पाया और इसलिए उसे खारिज कर दिया।

    केस टाइटल- जगदीश कुमार बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

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