गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बलात्का के मामले में आरोपी 10 लोगों को जमानत रद्द करने की याचिका पर स्वत: संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया क्योंकि पीड़िता की बात नहीं सुनी गई

Avanish Pathak

26 May 2025 4:48 PM IST

  • गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बलात्का के मामले में आरोपी 10 लोगों को जमानत रद्द करने की याचिका पर स्वत: संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया क्योंकि पीड़िता की बात नहीं सुनी गई

    इटानगर स्थित गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बलात्कार और तस्करी के एक मामले में दस आरोपियों की जमानत रद्द करने की याचिका पर नोटिस जारी किया है। इस याचिका में पीड़िता या ‌शिकायतकर्ता को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था और निचली अदालत ने पीड़िता/‌शिकायतकर्ता की सुनवाई किए बिना ही जमानत दे दी थी।

    जस्टिस संजय कुमार मेधी प्रथम एपीपी बटालियन के निलंबित सहायक कमांडेंट (याचिकाकर्ता) के खिलाफ स्वप्रेरणा से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिन्हें 14 मई, 2024 को आईपीसी की धारा 373 (वेश्यावृत्ति आदि के लिए नाबालिग को खरीदना) के तहत गिरफ्तार किया गया था।

    साथ ही, उन्हें पोक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 6, 8, 12 और अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम, 1956 की धारा 3, 4, 5, 6 के तहत 48 घंटे से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया था। इसके बाद, राज्य प्रतिवादी अधिकारियों ने 2 जून, 2024 के आदेश द्वारा याचिकाकर्ता को 14 मई, 2024 से सेवा से निलंबित कर दिया।

    बाद में, विशेष न्यायाधीश (POCSO) ने 3 अक्टूबर, 2024 के आदेश द्वारा याचिकाकर्ता को अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया, जिसे समय-समय पर बढ़ाया गया। 18 जनवरी के आदेश के तहत ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दी गई अंतरिम जमानत को पूर्ण बना दिया।

    याचिकाकर्ता ने 1 एपीपी बटालियन के सहायक कमांडेंट के रूप में सेवा में बहाल करने के लिए प्रतिवादी अधिकारियों को निर्देश देने के लिए एक रिट याचिका दायर की। उक्त रिट याचिका पर विचार करते हुए, हाईकोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित जमानत के आदेश में यह नहीं दर्शाया गया था कि पीड़ितों की वास्तव में सुनवाई की गई थी।

    तदनुसार, वर्तमान स्वप्रेरणा कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया गया, जिस पर 09 मई, 2025 को सुनवाई हुई। उक्त तिथि को न्यायालय ने मामले के तथ्यों पर विस्तृत आदेश पारित किया और गौहाटी हाईकोर्ट द्वारा 15 मार्च की अधिसूचना में पारित दिशा-निर्देशों पर भी चर्चा की, जो दीपक नायक बनाम असम राज्य एवं अन्य सीआरएल आवेदन (जे)/40/2022 में न्यायालय द्वारा 23 जून, 2023 को पारित आदेश के अनुरूप था। तदनुसार, नोटिस जारी किया गया कि जमानत रद्द क्यों न की जाए। 19 मई को सुनवाई के दौरान स्थायी अधिवक्ता ने न्यायालय को सूचित किया कि अभिलेखों के अवलोकन से पता चलता है कि पीड़िता की सुनवाई के पहलू का पालन नहीं किया गया, जो कि अनिवार्य प्रकृति का है। आगे बताया गया कि वर्तमान याचिकाकर्ता के अलावा अन्य आरोपी भी हैं जिन्हें 10 जनवरी को ट्रायल कोर्ट ने जमानत दे दी थी।

    आरोपी-प्रतिवादी की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल की उस प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं थी जिसका पालन किया जाना था और जमानत कानून के अनुसार दी गई थी जिसे रद्द नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी दलील दी कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई जमानत के लिए उनके मुवक्किल को कोई दोष नहीं दिया जा सकता।

    एपीपी ने दलील दी कि दीपक नायक के मामले के बाद हाईकोर्ट द्वारा जारी अधिसूचना संख्या 17, दिनांक 15 मार्च, 2024 के तहत तैयार दिशा-निर्देश अनिवार्य प्रकृति के हैं क्योंकि इसका उद्देश्य पीड़ित को न केवल एक अवसर देना है बल्कि पोक्सो अधिनियम से जुड़े आरोपी व्यक्तियों द्वारा दायर आवेदन/अपील में कोई भी आदेश पारित करने से पहले प्रभावी सुनवाई करना है।

    इस प्रकार न्यायालय ने दस उल्लिखित आरोपियों को नोटिस जारी किया।

    न्यायालय ने आदेश दिया, "विद्वान ट्रायल कोर्ट को शेष अभियुक्तों को जमानत आदेशों की प्रतियां प्रेषित करने की भी आवश्यकता है, ताकि यह जांच की जा सके कि अधिसूचना संख्या 17, दिनांक 15.03.2024 में निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन किया गया था या नहीं, ताकि यह न्यायालय आगे के आदेश पारित कर सके।"

    मामला 3 जून को फिर से सूचीबद्ध किया गया है।

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