Arbitration Act की धारा 23(3) के तहत आदेश मात्र प्रक्रियात्मक, धारा 34 के तहत चुनौती योग्य नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Praveen Mishra

18 March 2025 4:50 AM

  • Arbitration Act की धारा 23(3) के तहत आदेश मात्र प्रक्रियात्मक, धारा 34 के तहत चुनौती योग्य नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद की पीठ ने निर्णय दिया है कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम (Arbitration & Conciliation Act) की धारा 23(3) के तहत आवेदन को खारिज करने का आदेश केवल एक प्रक्रियात्मक आदेश है और इसे धारा 34 के तहत चुनौती देने योग्य 'अंतरिम पुरस्कार' नहीं माना जा सकता।

    पुरा मामला:

    याचिकाकर्ता ने सोलापुर एसटीपीपी में सड़कों और नालियों के निर्माण के लिए 22,35,16,730 रुपये के कुल आदेश मूल्य के साथ एक निविदा जारी की थी। इसके बाद, उत्तरदाता के पक्ष में एक स्वीकृति पत्र (Letter of Award) जारी किया गया और दोनों पक्षों के बीच एक अनुबंध समझौता किया गया। बाद में, दोनों पक्षों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ और मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11(6) के तहत एक याचिका दायर की गई। इसके बाद, एक एकल मध्यस्थ नियुक्त किया गया और याचिकाकर्ता ने धारा 23(3) के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें उसने दावा संख्या 1 और प्रत्युत्तर- दावा संख्या 5 को वापस लेने की मांग की, क्योंकि अनुबंध के अनुसार मध्यस्थ केवल 25 करोड़ रुपये तक के दावों और प्रत्युत्तर-दावों का ही निर्णय कर सकता है।

    मध्यस्थ ने धारा 23(3) के तहत दायर आवेदन को खारिज कर दिया और यह माना कि एक बार दावे और प्रत्युत्तर-दावे दायर हो जाने के बाद, अनुबंध समझौते के अनुसार उनमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इस आदेश से असंतुष्ट होकर, याचिकाकर्ता ने मध्यस्थीय न्यायाधिकरण के आदेश को अधिनियम की धारा 34 के तहत चुनौती दी।

    कोर्ट का निर्णय:

    न्यायालय ने माना कि एक अंतरिम पुरस्कार वही हो सकता है जो पक्षकारों के बीच किसी विवाद के बिंदु से संबंधित हो और उस विवाद को न्यायाधिकरण द्वारा हल किया जाना आवश्यक हो। यदि कोई आदेश पक्षकारों के बीच विवाद के किसी बिंदु से संबंधित नहीं है, तो उसे अंतरिम पुरस्कार नहीं माना जा सकता, जिसे अधिनियम की धारा 34 के तहत चुनौती दी जा सके।

    इसके अलावा, न्यायालय ने सतवंत सिंह सोढ़ी बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य (1999) के निर्णय पर भरोसा करते हुए कहा कि किसी आदेश को अंतरिम पुरस्कार तभी माना जा सकता है जब वह अंतिम रूप से पक्षकारों के अधिकारों का निर्धारण करता हो। ऐसा कोई भी आदेश जो पक्षकारों के अधिकारों पर कोई अंतिम निर्णय नहीं देता, उसे अंतरिम पुरस्कार नहीं कहा जा सकता।

    नतीजतन, न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया और यह निर्णय दिया कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 23(3) के तहत किसी आवेदन को खारिज करने का आदेश मात्र एक प्रक्रियात्मक आदेश है और इसे अधिनियम की धारा 34 के तहत चुनौती देने योग्य 'अंतरिम पुरस्कार' नहीं माना जा सकता।

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