जांच का आदेश देने से पहले लोकपाल को सरकारी कर्मचारी की बात सुननी होगी: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

21 Nov 2025 10:14 AM IST

  • जांच का आदेश देने से पहले लोकपाल को सरकारी कर्मचारी की बात सुननी होगी: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भारत का लोकपाल, लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट 2013 के तहत अपनी शक्तियों के अनुसार, किसी सरकारी कर्मचारी को सुनवाई का मौका दिए बिना उसके खिलाफ जांच का आदेश नहीं दे सकता।

    जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की डिवीजन बेंच ने कहा,

    “सेक्शन 20 का कानूनी ढांचा इस बात में कोई शक नहीं छोड़ता कि जांच से पहले और जांच के बाद सुनवाई का मौका देना ज़रूरी है।”

    इसमें आगे कहा गया,

    “सेक्शन 20(3) में साफ तौर पर यह कहा गया कि जानकार लोकपाल संबंधित सरकारी कर्मचारी को सुनवाई का मौका देने के बाद यह तय करेगा कि पहली नज़र में कोई मामला बनता है या नहीं और उसके बाद जांच का निर्देश देगा।”

    यह बात रेलवे में काम करने वाले एक सरकारी कर्मचारी की अर्जी पर सुनवाई करते हुए कही गई। वह लोकपाल के उस आदेश से नाराज़ था, जिसमें उसे CBI की कथित जांच के बारे में सेक्शन 20(7) के तहत कमेंट्स देने के लिए कहा गया।

    आसान शब्दों में कहें तो लोकपाल के पास एक शिकायत दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि वेस्ट सेंट्रल रेलवे द्वारा आयोजित डिपार्टमेंटल प्रमोशन एग्जाम में कुछ कैंडिडेट्स के पक्ष में OMR शीट में हेराफेरी की गई।

    इसके बाद लोकपाल ने पांच सरकारी कर्मचारियों को नोटिस जारी किए और उन्हें लोकपाल एक्ट के सेक्शन 20(3) के तहत सुनवाई का मौका दिया। पिटीशनर इन पांच अधिकारियों में से एक नहीं था।

    इसके बाद सीबीआई ने एक शुरुआती जांच की और पिटीशनर के खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश करते हुए अपनी रिपोर्ट जमा की। इसके बाद लोकपाल ने विवादित आदेश पास करते हुए पिटीशनर से सेक्शन 20(7) के तहत अपने कमेंट्स देने के लिए कहा।

    पिटीशनर ने कहा कि लोकपाल एक्ट के सेक्शन 20 के तहत तय प्रोसेस के मुताबिक, जिस भी पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ लोकपाल कार्रवाई करने का प्रस्ताव रखते हैं, उसे जांच का निर्देश देने से पहले अपनी बात रखने का मौका दिया जाना चाहिए।

    इस बात से सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यह साफ है कि पिटीशनर लोकपाल एक्ट के सेक्शन 20(3) के तहत सोचे गए स्टेज पर कार्रवाई में हिस्सा नहीं ले रहा था।

    उन्होंने कहा,

    “कानूनी मकसद यह है कि एक्ट के तहत जांच का निर्देश देने के लिए ज़रूरी पहली नज़र में संतुष्टि संबंधित पब्लिक सर्वेंट के स्पष्टीकरण पर विचार करने के बाद ही मिलनी चाहिए। इस कदम को न मानना, खासकर जब इसका नतीजा FIR दर्ज होना और क्रिमिनल जांच शुरू होना हो, तो यह कानूनी आदेश और नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों का उल्लंघन है।”

    कोर्ट ने लोकपाल की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि सेक्शन 20(7) के तहत जारी नोटिस के जवाब में लिखित रिप्रेजेंटेशन फाइल करके पिटीशनर का बाद में कार्रवाई में हिस्सा लेना, पहले की प्रोसेस की कमी को ठीक करने का काम करता है।

    कोर्ट ने कहा,

    “एक बार जब सेक्शन 20(3) के तहत सुनवाई का कानूनी मौका नहीं दिया जाता है तो सेक्शन 20(7) के तहत जांच के बाद के स्टेज में बाद में हिस्सा लेना, सुनवाई की ज़रूरी शर्त को पूरा किए बिना पास किए गए ऑर्डर को पिछली तारीख से वैलिड नहीं कर सकता।”

    कोर्ट ने कहा कि लोकपाल एक्ट में सरकारी कर्मचारी की ज़िम्मेदारी से जुड़े कई नियम हैं, जिसमें ट्रांसफर, सस्पेंशन और यहां तक ​​कि संपत्ति की कुर्की जैसे कदम भी शामिल हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    “शिकायत में नाम आने पर होने वाले इन कड़े और सज़ा देने वाले नतीजों को देखते हुए हमारा मानना ​​है कि कानून के तहत बताए गए प्रोसेस से जुड़े और ज़रूरी सुरक्षा उपायों का सख्ती से पालन करना पूरी तरह से ज़रूरी है।”

    जाने से पहले इसमें आगे कहा गया,

    “लोकपाल, एक क्वासी-ज्यूडिशियल अथॉरिटी है, जिसके पास सज़ा और कलंक वाले नतीजे देने की ताकत है, इसलिए यह कानून के बताए गए तरीके के हिसाब से काम करने के लिए ज़िम्मेदार है। इसे यह पक्का करना होगा कि इसका तरीका फेयर, ट्रांसपेरेंट और नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों के हिसाब से बना रहे।”

    Case title: Mujahat Ali Khan v. Lokpal of India Through Under Secretary

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