प्रतिबंधित पदार्थ की प्रकृति की जानकारी न होना NDPS Act के तहत बचाव का आधार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

29 Sept 2025 6:46 PM IST

  • प्रतिबंधित पदार्थ की प्रकृति की जानकारी न होना NDPS Act के तहत बचाव का आधार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कथित मादक पदार्थ तस्करी सिंडिकेट मामले में दो लोगों को जमानत देने से इनकार किया। न्यायालय ने कहा कि प्रतिबंधित पदार्थ की प्रकृति की जानकारी न होना स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 के तहत बचाव का आधार नहीं है।

    जस्टिस अजय दिगपॉल ने NDPS Act की धारा 8, 21, 23 और 29 के तहत दर्ज मामले में नाइजीरियाई नागरिक एकोह कॉलिन्स चिदुबेम और प्रदीप कुमार झा को जमानत देने से इनकार किया।

    एनसीबी का कहना था कि दिल्ली स्थित डीएचएल एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड के कार्यालय पर छापेमारी के दौरान, 376 ग्राम और 374 ग्राम वजन की हेरोइन से भरे दो पैकेट मिले और प्रतिबंधित पदार्थ जब्त कर लिया गया।

    झा को माल प्राप्तकर्ता बताया गया और उन्होंने पार्सल के बारे में जानकारी होने की बात स्वीकार की। जब एनसीबी टीम उनके आवास पर पहुंची तो उन्होंने अपने मोबाइल फोन पर एयरवे बिल भी दिखाया। अपने स्वैच्छिक बयान में उन्होंने खुलासा किया कि मार्टिन गैरी नामक व्यक्ति द्वारा दक्षिण अफ्रीका से पार्सल भेजे जा रहे थे और पैसे के बदले में वे नियमित रूप से दिल्ली में एक नाइजीरियाई नागरिक को सौंपे जाते थे।

    उन्होंने यह भी बताया कि एक और पार्सल पहुंचाया जाना था। उक्त स्थान पर चिदुबेम को गिरफ्तार कर लिया गया। अपने स्वैच्छिक बयान में उन्होंने खुलासा किया कि उन्होंने पहले अपने दक्षिण अफ्रीकी सहयोगी के निर्देश पर झा से 7-8 पार्सल लिए थे। दोनों आवेदकों को मई 2022 में गिरफ्तार किया गया।

    उनका तर्क था कि चिदुबेम को केवल झा द्वारा किए गए खुलासे के आधार पर गिरफ्तार किया गया और उनके पास से व्यक्तिगत रूप से कोई प्रतिबंधित वस्तु या आपत्तिजनक सामग्री बरामद नहीं हुई थी।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि झा केवल लॉजिस्टिक्स एजेंसी के कर्मचारी के रूप में पार्सल के परिवहन में शामिल थे। उनके बीच कथित नाममात्र के मौद्रिक लेनदेन ने उन्हें प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी में शामिल नहीं किया।

    ज़मानत याचिकाओं को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि प्रक्रिया का कोई उल्लंघन नहीं हुआ और किसी भी कथित देरी को अभियोजन पक्ष के मामले को कमज़ोर करने वाली अवैधता नहीं माना जा सकता।

    प्रतिबंधित सामग्री के रंग में कथित विसंगति पर अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को केवल रंग में मामूली अंतर के आधार पर ज़मानत का दावा करने की अनुमति देना और जांच अधिकारी को विसंगति स्पष्ट करने का अवसर न देना, स्पष्ट रूप से अनुचित होगा।

    इसके अलावा, जज ने कहा कि कॉल डिटेल रिकॉर्ड से पता चलता है कि घटना के समय याचिकाकर्ता एक-दूसरे के साथ-साथ उस पार्सल के प्राप्तकर्ता के साथ भी नियमित रूप से संपर्क में थे, जिससे प्रतिबंधित सामग्री बरामद की गई।

    अदालत ने कहा कि उक्त संचार जब व्हाट्सएप चैट के साथ पढ़ा जाता है तो प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ताओं को फंसाने वाली पर्याप्त सामग्री प्रदान करता है।

    अदालत ने कहा,

    "यह पाया गया कि प्रकटीकरण विवरण ही वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता की संलिप्तता का एकमात्र आधार नहीं है, बल्कि प्रतिबंधित सामग्री की ज़ब्ती, स्वतंत्र गवाहों के बयान, सीडीआर, वित्तीय लेनदेन और डिजिटल संचार से भी इसकी पुष्टि होती है, जो सामूहिक रूप से याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनाते हैं।"

    इसमें यह भी कहा गया कि प्रतिबंधित सामग्री की व्यावसायिक मात्रा, जिस गुप्त तरीके से साजिश को अंजाम दिया गया और रिकॉर्ड में उपलब्ध संचयी सामग्री, जिसमें स्वैच्छिक बयान, बैंक लेनदेन, सीडीआर और याचिकाकर्ताओं को माल से जोड़ने वाली व्हाट्सएप चैट शामिल हैं, से यह स्पष्ट है कि NDPS Act की धारा 37 के तहत वैधानिक शर्तें पूरी नहीं होती हैं।

    अदालत ने कहा कि चिदुबेम एक विदेशी नागरिक है, जो बिना वैध दस्तावेज़ों के रह रहा है, जिससे फरार होने या न्याय की प्रक्रिया से बचने का पर्याप्त जोखिम पैदा हो गया।

    यह निष्कर्ष निकाला गया,

    "याचिकाकर्ता प्रदीप कुमार झा की भूमिका इस हद तक सामने आई कि उन्हें उक्त प्रतिबंधित सामग्री प्राप्त करनी थी। अपने खुलासे में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि इसे याचिकाकर्ता एकोह कॉलिन्स चिदुबेम को सौंपने का इरादा था। ये परिस्थितियां प्रथम दृष्टया, वर्तमान लेनदेन में अपनाई गई कार्यप्रणाली का संकेत देती हैं। प्रतिबंधित सामग्री की प्रकृति या सामग्री के बारे में अनभिज्ञता को बचाव के तौर पर नहीं लिया जा सकता और यह अभियुक्त के लिए लाभकारी नहीं होगा।"

    Title: EKOH COLLINS CHIDUBEM v. NCB & other connected matter

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