दिल्ली हाईकोर्ट ने फील्ड टेस्ट के दौरान ड्रग की पहचान में अंतर होने पर NDPS आरोपी को ज़मानत दी
Shahadat
6 Dec 2025 3:38 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS Act) के तहत पकड़े गए एक आदमी को ज़मानत दी, क्योंकि ज़ब्त की गई ड्रग की फील्ड टेस्टिंग और फोरेंसिक टेस्टिंग में पहचान में अंतर था।
जस्टिस अमित महाजन ने इस बात को भी ध्यान में रखा कि याचिकाकर्ता दो साल से ज़्यादा समय से जेल में था, लेकिन ट्रायल शुरू नहीं हुआ और सिर्फ़ आरोप तय किए गए।
प्रॉसिक्यूशन ने आवेदक की जेब से मिली एक पॉलीथीन से 67g MDMA मिलने का आरोप लगाया। बाद में FSL में ड्रग को मेथामफेटामाइन बताया गया।
प्रॉसिक्यूशन ने इस अंतर को दूर करने के लिए यह कहा कि फील्ड टेस्टिंग किट में कुछ ही सैंपल होते हैं और उनसे बहुत ज़्यादा सिंथेसाइज़्ड सॉल्ट का पता नहीं लगाया जा सकता।
हालांकि, कोर्ट ने कहा,
“हालांकि इस बारे में प्रॉसिक्यूशन की सफाई की सच्चाई सिर्फ़ ट्रायल के दौरान ही परखी जा सकती है, लेकिन इस स्टेज पर ऊपर कही गई बात को साबित करने के लिए कोई सपोर्टिंग मटीरियल न होने पर प्रॉसिक्यूशन की दलील को सिर्फ़ एक आपत्ति के तौर पर नहीं लिया जा सकता और एक्स फेसी अंतर का फ़ायदा एप्लीकेंट को दिया जाना चाहिए, खासकर तब जब प्रॉसिक्यूशन का केस एप्लीकेंट के ख़िलाफ़ असल में उससे की गई रिकवरी पर आधारित हो।”
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि पब्लिक जगह से रिकवरी होने के बावजूद, कोई इंडिपेंडेंट गवाह मौजूद नहीं था, जिससे प्रॉसिक्यूशन के केस पर शक होता है।
कोर्ट ने कहा कि प्रॉसिक्यूशन के केस को सिर्फ़ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि केस सरकारी गवाहों की गवाही पर टिका है। इंडिपेंडेंट गवाहों से पूछताछ नहीं हुई है या रिकवरी की फ़ोटोग्राफ़ी और वीडियोग्राफ़ी नहीं हुई।
हालांकि, उसने यह भी कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इंडिपेंडेंट गवाहों और फ़ोटोग्राफ़ी या वीडियोग्राफ़ी की कमी, कुछ हालात में, प्रॉसिक्यूशन के केस पर असर डालती है।
इस मामले मे, एप्लीकेंट को रात करीब 12:40 बजे एक पब्लिक जगह पर पकड़ा गया।
इस पर कोर्ट ने कहा,
“कोई फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी न करने के लिए कोई सफाई नहीं दी गई और सिर्फ एक मैकेनिकल सफाई दी गई। हालांकि रेडिंग पार्टी ने एप्लीकेंट को पकड़ने से पहले और उसकी तलाशी से पहले इंडिपेंडेंट गवाहों को जोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन वे लोग अपने कारण बताकर चले गए। इससे यह साफ हो जाता है कि इंडिपेंडेंट गवाहों का न जुड़ना उस समय इलाके में लोगों की कमी की वजह से नहीं था। हालांकि इंडिपेंडेंट गवाहों के न जुड़ने और फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी न होने के लिए प्रॉसिक्यूशन की सफाई की सच्चाई ट्रायल के दौरान टेस्ट की जाएगी, लेकिन इस स्टेज पर, एप्लीकेंट को कन्फर्मेशन की कमी का फायदा देने से मना नहीं किया जा सकता।”
इसलिए कोर्ट ने याचिकाकर्ता को बताई गई शर्तों के तहत जमानत दे दी।
Case title: Sahil Sharma alias Maxx v. State Govt Of NCT Of Delhi

