नशीली दवाओं से संबंधित 'गुप्त' लेनदेन के लिए तकनीकी का उपयोग, एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 के तहत जमानत याचिका पर निर्णय लेने के लिए एक प्रासंगिक विचार: केरल हाईकोर्ट
Avanish Pathak
4 Sept 2023 6:12 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने प्रतिबंधित सामग्री की खरीद के लिए आधुनिक तकनीक के उपयोग की आलोचना की है। कोर्ट ने माना है कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 के तहत जमानत के लिए आवेदनों पर निर्णय लेते समय ऐसे कृत्यों विचार किया जाना चाहिए।
मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता-अभियुक्त ने प्रतिबंधित पदार्थ प्राप्त करने के लिए विकर ऐप और बिनेंस जैसे ऐप्स का इस्तेमाल किया था और यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया था कि उसकी ओर से किए गए लेनदेन का पता न चले।
जस्टिस जियाद रहमान एए की एकल पीठ ने जमानत से इनकार करते हुए कहा,
"इस स्तर पर गोपनीयता बनाए रखने की उत्सुकता बहुत महत्वपूर्ण है और एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 ('अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती होना') के तहत परिकल्पित 'उचित आधार' पर विचार करने के लिए प्रासंगिक है। याचिकाकर्ता की उन ऐप्स पर निर्भरता, जिन्होंने उसे गोपनीय तरीके से लेनदेन करने में सक्षम बनाया और ऐसे लेनदेन के उद्देश्यों के बारे में उसकी चुप्पी, महत्वपूर्ण परिस्थितियों में से एक है।''
न्यायालय ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि जब तक एनडीपीएस एक्ट के तहत अपराध करने में उन्नत तकनीक का उपयोग करने के ऐसे प्रयासों को शुरू में ही नहीं रोका जाएगा, तब तक अधिनियम के कड़े प्रावधानों के पीछे का उद्देश्य विफल हो जाएगा। साथ ही अधिनियमन के उद्देश्य को पाना भी आसान नहीं होगा।
मामले में 29 वर्षीय आरोपी ने कथित तौर पर 'विकर मी' ऐप के माध्यम से 51.32 ग्राम एमडीएमए और 7.23 ग्राम कोकीन का ऑर्डर किया था। इन ऐप्स पर डार्क नेट के माध्यम से गुमनाम रूप से लेनदेन किया जाता है।
हालांकि, विदेश से प्राप्त पार्सल पर संदेह होने पर डाकघर ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को सूचित किया।
याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर उपरोक्त ऐप पर डार्क नेट के माध्यम से प्रतिबंधित वस्तुओं के लिए ऑर्डर देने और मोनेरो (एक्सएमआर) मुद्रा का उपयोग करके बिनेंस क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग ऐप के माध्यम से भुगतान करने की बात स्वीकार की है। उसने बिनेंस ऐप के जरिए किए गए लेनदेन के स्क्रीनशॉट भी उपलब्ध कराए। उसके मोबाइल फोन को बाद में एनसीबी ने जब्त कर लिया और विश्लेषण के लिए भेज दिया। वर्तमान जमानत याचिका के समय, एनसीबी ने जांच पूरी कर ली थी और एर्नाकुलम में सत्र न्यायालय के समक्ष एक शिकायत प्रस्तुत की थी।
इस मामले में न्यायालय का विचार था कि याचिकाकर्ता के बयान के अलावा, याचिकाकर्ता की स्वीकारोक्ति को स्थापित करने के लिए कई अन्य सामग्रियां भी थीं। कोर्ट ने कहा कि कुल मिलाकर पांच लेनदेन किए गए थे, जिनका कुल मूल्य 55,000 रुपये के बराबर था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐप एक पेमेंट वॉलेट है, जो बैंक खाते में दर्शाए बिना पेमेंट को सक्षम बनाता है, जिसकी वजह से प्राप्तकर्ताओं का विवरण प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ता के पते पर पार्सल भेजे जाने से ठीक दो दिन पहले लेनदेन हुआ था।
विकर मी ऐप के संबंध में न्यायालय ने इस बात पर ध्यान दिया कि ऐप टेक्स्ट, पिक्चर, ऑडियो, वीडियो और मैसजों का एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन प्रदान करता है, और एन्क्रिप्टेड मैसेज अस्थायी रूप से सर्विस प्रोवाइडर के सर्वर में संग्रहीत होते हैं, और एक बार प्राप्तकर्ता इसे डाउनलोड करता है, तो मैसेज ओटोमैटिक रूप से डिलीट हो जाता है।
न्यायालय की सुविचारित राय थी कि सामग्री का सावधानीपूर्वक विश्लेषण केवल मुकदमे के समय ही किया जाना आवश्यक है, और इस समय, उसे केवल इस बात की चिंता है कि क्या याचिकाकर्ता एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 में शर्तों के मद्देनजर को जमानत दी जानी चाहिए।
इस पहलू पर विचार करने पर कि याचिकाकर्ता ने उन ऐप्स पर भरोसा किया जो उसे बिना किसी ट्रेस के लेनदेन करने में सक्षम बनाते थे और लेनदेन के उद्देश्यों के बारे में उसने चुप्पी बनाए रखी थी, न्यायालय का विचार था कि ये महत्वपूर्ण परिस्थितियां थीं।
एनडीपीएस एक्ट के कड़े प्रावधानों के पीछे के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय का दृढ़ विचार था कि मामले में किसी भी तरह की नरमी की आवश्यकता नहीं है और इसे सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
इस प्रकार जमानत याचिका खारिज कर दी गई।
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (केर) 447