COFEPOSA के तहत निवारक निरोध रद्द करने के केरल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर केंद्र सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोट‌िस जारी किया

LiveLaw News Network

19 Nov 2020 1:07 PM GMT

  • COFEPOSA के तहत निवारक निरोध रद्द करने के केरल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर केंद्र सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोट‌िस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केरल हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर केंद सरकार की एक विशेष अवकाश याचिका पर नोटिस जारी किया है। केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (COFEPOSA) के तहत दो व्यक्तियों के खिलाफ निवारक निरोध आदेशों को रद्द कर दिया था।

    जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा ​​की खंडपीठ ने अतिरिक्त-सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज को सुनने के बाद, जिन्होंने कहा कि केरल हाईकोर्ट ने अपने डिटेंशन अथॉरिटी की व्यक्तिपरक संतुष्टि को अपने खुद के ज्ञान से प्रतिस्थापित करके अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है।

    तदनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम बीविकुंजू और अन्य की विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया।

    19 फरवरी, 2020 को दिए गए फैसले में जस्टिस के विनोद चंद्रन और वीजी अरुण की खंडपीठ ने अदनान खालिद और फैसल पीए की हिरासत को रद्द कर दिया था, जिन्हें सोने की कथित तस्करी के आरोप में हिरासत में लिया गया था।

    मामला उस हिरासत से संबंधित था, जिसमें एक सीमा शुल्क अधिकारी के पास से प्रतिबंधित सामग्री जब्त की गई थी। उसने अपने पैरों के बीच लगभग 3 किलोग्राम सोना छुपाया ‌था। पकड़े जाने पर अधिकारी ने स्वीकार किया था कि उसने एक आरोपी अदनान खालिद से प्र‌तिबंधित सामग्री प्राप्त की थी।

    खालिद और अध‌िकारी के बयान से खुलासा हुआ कि हवाई अड्डे के भीतर एक स्मगलिंग रिंग का संचालन किया जा रहा है। केरल हाईकोर्ट ने तब उल्लेख किया कि, एक पुराने मामले में, जो दूसरे आरोपी फैसल से संबंधित था, जिसमें एक अलग कार्यशैली अपनाई गई थी, में भी सीमा शुल्क अधिकारी की सक्रिय भागीदारी थी।

    हाईकोर्ट ने काउंसल की प्रस्तुतियों और अपने समक्ष रखी गई सामग्री को ध्यान में रखते हुए कहा कि स्मगलिंग रिंग के संबंध में, फैसल जिसका किंगपीन है, और खालिद मुख्य कोऑर्डिनेटर, COFEPOSA की धारा 108 के तहत स्पष्ट मूल्य होने के बावजूद, निष्कर्ष के लिए एक कनेक्टिंग लिंक की आवश्यकता है।

    अरविंद शेरगिल (2000) के मामले का हवाला देते हुए, केरल हाईकोर्ट ने देखा कि न्यायालय के पास ड‌िटेंशन ऑर्डर में आधार की जांच करने की शक्ति थी, यह देखने के लिए कि क्या वे कानून के उद्देश्य के लिए प्रासंगिक थे और क्या प्राधिकरण की व्यक्तिपरक संतुष्टि प्रासंगिक आधारों पर आधारित थी।

    मौजूदा मामले में, हाईकोर्ट ने पाया कि रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों, जिनकी हिरासत में रखे आरोपी को आपूर्ति की गई थी, के आधार पर की संतुष्ट‌ि नहीं प्राप्त की गई थी। हाईकोर्ट ने डिटेनिंग अथॉरिटीज द्वारा संबंधित कानून की समझ में कमी और आकस्मिक तरीके से ड‌िटेनिंग ऑर्डर पारित किए जाने पर सख्त अवलोकन भी किया था।

    यह देखते हुए कि निवारक निरोध मामलों में तकनीकी भी शामिल है, अदालत ने कहा कि " इसलि कड़ाई से पालन किए जाने के लिए कहा जाता है। और हम पाते हैं कि निरोधात्मक ड‌िटेंशन ऑर्डर देने के लिए दर्ज किए जाने वाले व्यक्तिपरक संतोष के संबंध में कानून की बहुत से ड‌िटेनिंग अधिकारियों को ठीक से शिक्षित नहीं किया गया है।

    "हालांकि, एक वस्तुगत संतुष्टि से अलग, एक व्यक्तिपरक संतुष्टि भी पुष्ट सामग्री पर होनी चाहिए, जो कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को भी आपूर्ति की जानी चाहिए।"

    इसी नोट पर, केरल हाईकोर्ट ने हिरासत में लिए गए आरोप‌ियों की बंदी याचिकाओं की अनुमति दी थी और उनकी शीघ्र रिहाई का आदेश दिया था।

    केरल हाईकोर्ट के फैसले को यहां पढ़ें

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