आईपीसी की धारा 498-ए पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता करने पर दंडित करने के लिए बनाई गई, अब इसका दुरुपयोग हो रहा है: झारखंड हाईकोर्ट

Shahadat

27 July 2023 1:22 PM GMT

  • आईपीसी की धारा 498-ए पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता करने पर दंडित करने के लिए बनाई गई, अब इसका दुरुपयोग हो रहा है: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और कई हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के दुरुपयोग को देखा, जो महिला के खिलाफ उसके पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता से संबंधित है।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई मौकों पर आईपीसी की धारा 498-ए के दुरुपयोग और इसके दीर्घकालिक प्रभावों का विश्लेषण किए बिना वैवाहिक विवाद में पति के रिश्तेदारों को फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है।

    पीठ ने कहा,

    "भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए को पति या उसके रिश्तेदारों के हाथों क्रूरता करने पर दंडित करने के प्रशंसनीय उद्देश्य के साथ क़ानून में शामिल किया गया। हालांकि, आजकल उक्त धाराओं का दुरुपयोग किया जा रहा है, जिसे कई हाईकोर्ट और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने देखा है। अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य [(2014) 8 एससीसी 273] में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर विचार किया गया कि पति या रिश्तेदारों को उक्त धारा के तहत अनावश्यक रूप से आरोपी बनाया जाता है।"

    अदालत ने यह टिप्पणी महिला के देवर और ननद द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, साहिबगंज की अदालत में अपने पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज कराई।

    अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि शिकायत में कथित यातना की प्रकृति के बारे में विशिष्ट विवरण के बिना याचिकाकर्ताओं के खिलाफ सामान्य और सर्वव्यापी आरोप शामिल हैं।

    यह देखते हुए कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ केवल सामान्य और सर्वव्यापी आरोप है, अदालत ने कहा,

    "इन याचिकाकर्ताओं द्वारा की गई यातना की प्रकृति क्या है, शिकायत याचिका के साथ-साथ गंभीर प्रतिज्ञान में भी इसका खुलासा नहीं किया गया।"

    उपरोक्त पर विचार करते हुए अदालत ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग किया और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, साहिबगंज की अदालत में लंबित मामले के संबंध में पारित संज्ञान लेने के आदेश सहित पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी।

    हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि उसके फैसले का शिकायत मामले या महिला के पति के खिलाफ संज्ञान के आदेश पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

    पीठ ने कहा,

    पति के खिलाफ मुकदमा कानून के मुताबिक जारी रहेगा।

    केस टाइटल: उमेश कुमार और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य सीआरएमपी नंबर 257/2012

    अपीयरेंस: याचिकाकर्ताओं के लिए: राजेश कुमार, ओ.पी. संख्या 2 के लिए: ललन कुमार सिंह और राज्य के लिए: शैलेश कुमार सिन्हा, ए.पी.पी.।

    फैसले को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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