धार्म‌िक पुजारी विवाह के लिए धर्मांतरण की पूर्व सूचना जिला मजिस्ट्रेट को नहीं दे रहे,उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने दिए जांच के आदेश

LiveLaw News Network

25 Nov 2020 7:07 AM GMT

  • धार्म‌िक पुजारी विवाह के लिए धर्मांतरण की पूर्व सूचना जिला मजिस्ट्रेट को नहीं दे रहे,उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने दिए जांच के आदेश

    उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जिला मजिस्ट्रेट, देहरादून को उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 2018 की धारा 8 (2) का पालन न करने के बारे में विस्तृत जांच करने का निर्देश दिया है। उक्त कानून के तहत एक पुजारी को किसी व्यक्ति का धर्मांतरण कराने से पहले संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को पूर्व सूचना देना अनिवार्य होता है।

    जस्टिस आलोक कुमार वर्मा और सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने दो मामलों में अंतर-धार्मिक जोड़ों को पुलिस सुरक्षा प्रदान करते हुए उक्‍त निर्देश दिए। एक मामले में, एक हिंदू लड़की ने इस्लाम धर्म अपनाया था और दूसरे मामले में, एक मुस्लिम लड़की ने हिंदू धर्म अपनाया था।

    याचिकाओं पर आपत्ति जताते हुए, राज्य परामर्शदाता ने कहा कि (दोनों मामलों में) उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 2018 का स्पष्ट उल्लंघन किया गया है, जिसके तहत इस तरह के धर्मांतरण से पहले, संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को एक आवेदन देना होता है। वर्तमान मामलों में ऐसा नहीं किया गया है।

    धारा 8 (1) के अनुसार, जो धर्म परिवर्तन की इच्छा रखता है, वह निर्धारित प्रोफार्मा में, जिला मजिस्ट्रेट या कार्यकारी मजिस्ट्रेट, जिसे विशेष रूप से जिला मजिस्ट्रेट ने अध‌िकृत किया हो, के समक्ष कम से कम एक महीने पहले एक घोषणा देगा कि वह स्वतंत्र सहमति से और बिना किसी बल, जबरदस्ती, अनुचित प्रभाव या लोभ के, धर्म परिवर्तन का इच्छुक है।

    उप-धारा (2) के तहत, धार्मिक पुजारी, जो किसी भी धर्म के किसी व्यक्ति को दूसरे धर्म में परिवर्तित करने के लिए शुद्धिकरण संस्कार या रूपांतरण समारोह करता है, इस तरह के रूपांतरण की एक महीने पहले अग्रिम सूचना, निर्धारित प्रोफार्मा में, जिला मजिस्ट्रेट या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा उस उद्देश्य के लिए नियुक्त किसी अन्य अधिकारी को को देगा।

    'धार्मिक पुजारी' का अर्थ किसी भी धर्म का पुजारी होता है जो किसी भी धर्म का शुद्धिकरण संस्कार या रूपांतरण समारोह करता है और किसी भी नाम, जैसे पुजारी, पंडित, मुल्ला, मौलवी, फादर आदि जो भी कहा जाता हो।

    इन प्रावधानों का ध्यान रखते हुए, कोर्ट ने कहा, "यहां ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्तराखंड राज्य में एक कानून है, जिसे उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 2018 के रूप में जाना जाता है, जिसके धारा 8 की उप-धारा (2) के तहत संबंधित पुजारी का कर्तव्य है वह धर्मांतरण या विवाह से पहले संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को इस बात की पूर्व सूचना दे। जाहिर है, मौजूदा मामलों ऐसा नहीं किया गया है।

    हम इस मामले की विस्तृत जांच करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट, देहरादून को निर्देश देते हैं। हमारे सामने बार-बार इसी तरह के मामले आ रहे हैं। हमारा इरादा संबंधित व्यक्तियों को मामले की अवैधता और कानूनी निहितार्थों के बारे में सूचित करना है ताकि संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को पूर्व सूचना दी जाए, जो कानून का जनादेश है। ऐसे मामले, जो हमारे सामने आ रहे हैं, हम पाते हैं कि इस तरह की सूचना संबंधित पुजारी द्वारा नहीं दी गई है।"

    2018 में उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ ‌रिलीजन एक्ट का उद्देश्य "गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, खरीद-फरोख्त या किसी धोखाधड़ी से या शादी करके धर्म परिवर्तन कराने को प्रतिबंध‌ित कर की धर्म की स्वतंत्रता प्रदान करना था।"

    यदि कोई भी व्यक्ति अपने "पैतृक धर्म" में वापस आता है, तो इसे अधिनियम की धारा 3 के अनुसार रूपांतरण नहीं माना जाएगा। अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, विवाह उद्देश्य से किए गए धर्म परिवर्तन के मामले में, वैवाहिक पक्ष द्वारा याचिका दायर करने पर विवाहर को शून्य घोषित किया जा सकता है।

    हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले ,जिसमें कहा गया था कि केवल विवाह के लिए धार्मिक रूपांतरण अमान्य हैं, को खराब कानून घोषित किया था।

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