एनडीपीएस- जांच के लिए समय बढ़ाने का आदेश आरोपी को उचित रूप से सतर्क करने के बाद पारित करना चाहिएः केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

16 July 2021 8:00 AM GMT

  • एनडीपीएस- जांच के लिए समय बढ़ाने का आदेश आरोपी को उचित रूप से सतर्क करने के बाद पारित करना चाहिएः केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा है कि एनडीपीएस एक्ट के तहत किसी मामले में जांच के लिए समय बढ़ाने का आदेश केवल आरोपी को उचित रूप से सतर्क करने के बाद ही पारित किया जाना चाहिए।

    न्यायमूर्ति के हरिपाल ने यह भी कहा कि एक स्वतंत्र वैधानिक प्राधिकरण होने के नाते लोक अभियोजक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अदालत को रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले जांच एजेंसी के अनुरोध पर स्वतंत्र रूप से अपना दिमाग लगाए।

    याचिकाकर्ताओं ने विशेष अदालत के उस आदेश को रद्द करने की मांग की थी जिसमें लोक अभियोजक को एनडीपीएस एक्ट की धारा 36ए(4) के तहत जांच के लिए दो महीने का समय बढ़ाने की अनुमति दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व एडवोकेट के. निर्मलन ने किया।

    याचिकाकर्ताओं के अनुसार, वे 3 अक्टूबर 2020 से न्यायिक हिरासत में हैं। 180 दिनों की वैधानिक अवधि पूरी होने के बाद भी अभियोजन पक्ष जांच पूरी करके अंतिम रिपोर्ट दायर नहीं कर पाया। इसलिए जांच अधिकारी ने एक आवेदन और लोक अभियोजक ने एक रिपोर्ट 31 मार्च 2021 को अदालत के दायर की और मामले में जांच के लिए समय बढ़ाने की मांग की गई। उनका प्राथमिक तर्क यह है कि आक्षेपित आदेश रिपोर्ट या आवेदन की एक प्रति उनको दिए बिना ही पारित किया गया था। इसलिए उन्हें आवेदन का विरोध करने का अवसर भी नहीं मिल पाया और आदेश पारित कर दिया गया।

    यह भी कहा गया कि सब कुछ उन्हें विश्वास में लिए बिना किया गया था और आदेश पारित करने से पहले उन्हें अंधेरे में नहीं रखा जाना चाहिए था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि विशेष लोक अभियोजक ने बिना दिमाग लगाए जांच अधिकारी के अनुरोध का समर्थन किया था।

    आदेशों का अवलोकन करने पर, अदालत ने दोनों तर्कों को दुर्जेय पाया।

    हितेंद्र विष्णु ठाकुर व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य ((1994) 4 एससीसी 6) के मामले का हवाला देते हुए एकल पीठ ने कहा कि एक लोक अभियोजक से अपेक्षा की जाती है कि वह समय के विस्तार के लिए अदालत में रिपोर्ट जमा करने से पहले जांच एजेंसी के अनुरोध पर स्वतंत्र रूप से अपना दिमाग लगाए। उनसे यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह सिफारिश करने से पहले जांच की प्रगति के बारे में अपना आकलन दें,जो इस मामले में नहीं किया गया था।

    इसके अलावा, आधिकारिक घोषणाओं के अनुसार, न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा 36 ए (4) के तहत एक आवेदन पर विचार करते समय, निम्नलिखित चार शर्तों को निर्दिष्ट अदालत द्वारा देखा जाना आवश्यक थाः

    (1) लोक अभियोजक की एक रिपोर्ट

    (2) जो जांच की प्रगति को इंगित करती हो

    (3) 180 दिनों की अवधि से परे अभियुक्त की हिरासत की मांग करने के लिए बाध्यकारी कारणों को निर्दिष्ट करना

    (4) आरोपी को नोटिस के बाद

    हालांकि अंतिम शर्त कानून में नहीं है, इसे न्यायाधीश द्वारा बनाए गए कानून का हिस्सा बनाने के लिए स्थापित किया गया था। बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न फैसलों में इस आवश्यकता पर जोर दिया है और यह देश का कानून बन गया है और इसलिए, सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी है।

    वर्तमान मामले में, यह पता चला कि अभियुक्त के वकील को भी मौखिक रूप से लोक अभियोजक द्वारा दी गई उस रिपोर्ट या जांच अधिकारी के अनुरोध के बारे में सूचित नहीं किया गया था, जिसमें विशेष न्यायालय के समक्ष समय बढ़ाने की मांग की गई थी। दूसरे शब्दों में समय बढ़ाने की रिपोर्ट व आदेश के संबंध में उन्हें पूरी तरह से अंधेरे में रखा गया था, जो कि गलत है। इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि,

    ''मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऐसा आदेश आरोपी व्यक्तियों को उचित रूप से सतर्क/ सूचित करने के बाद पारित किया जाना चाहिए था, कम से कम आरोपी की ओर से पेश होने वाले संबंधित वकील को मौखिक नोटिस दिया जाना चाहिए था या आदेश पारित करते समय आरोपियों को अदालत में लाया जाना चाहिए था। इसलिए, दिनांक 31.03.2021 का आदेश कायम नहीं रह सकता है और रद्द किए जाने योग्य है। इसे रद्द किया जाता है।''

    केस का शीर्षकः जे मिधुन व अन्य बनाम केरल राज्य

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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