मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग को लेकर वकील ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की

LiveLaw News Network

13 Nov 2020 6:03 AM GMT

  • मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग को लेकर वकील ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कथित रूप से कृष्ण जन्मभूमि पर बनी मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने के लिए एक याचिका दायर की गई है।

    एडवोकेट महेक माहेश्वरी द्वारा दायर याचिका में मांंग की गई है कि मंदिर की जमीन हिंदुओं को सौंप दी जाए और कृष्ण जन्मभूमि जन्मस्थान के लिए एक उचित ट्रस्ट बनाया जाए, जो उक्त जमीन पर मंदिर का निर्माण कर सके।

    याचिका में मांंग की गई है कि याचिका के निपटारे तक अंतरिम रूप से हिंदुओं को सप्ताह में कुछ दिन और जन्माष्टमी के दिन मस्जिद में पूजा करने की अनुमति दी जाए।

    याचिका में कहा गया है कि भगवान कृष्ण का जन्म राजा कंस के कारागर में हुआ था और उनके जन्म का स्थान शाही ईदगाह ट्रस्ट द्वारा बनाए गए वर्तमान ढांचे के नीचे है। यह कहा गया कि 1968 में श्री कृष्णा जनमस्थान सेवा संघ ने मस्जिद ट्रस्ट की प्रबंधन समिति के साथ समझौता किया, जिसमें देवीय संबंधित संपत्ति का एक हिस्सा देना स्वीकार किया गया था।

    इस समझौते की वैधता को विवादित बताते हुए याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया:

    "मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट की प्रबंधन समिति ने 12.10.1968 को श्री कृष्ण जनमस्थान सेवा संघ के साथ अवैध समझौता किया और दोनों ने न्यायालय में इस संपत्ति को कब्जे में लेने के लिए धोखाधड़ी की। वास्तव में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट 1958 से अक्रिय (Non-Functional) है।"

    उन्होंने कहा,

    "मथुरा जिले की सरकारी वेबसाइट पर भी यह कहा गया है कि शाही ईदगाह मस्जिद औरंगज़ेब द्वारा कृष्ण जन्मभूमि के विध्वंस के बाद बनाई गई है।"

    याचिका में आगे दावा किया गया है कि शाही ईदगाह मस्जिद के आंगन के नीचे नक्काशीदार स्तंभों और पुरावशेषों का अस्तित्व कुछ श्रमिकों द्वारा बताया गया था।

    इस पृष्ठभूमि में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा कथित विवादित ढांचे के कथित तौर पर कृष्ण जन्मस्थान के ऊपर बने कोर्ट-मॉनीटर GPRS आधारित खुदाई के लिए प्रार्थना की गई है।

    यह तर्क दिया गया है कि मस्जिद इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है और इसलिए विवादित भूमि को हिंदुओं को सौंप दिया जाना चाहिए, जिससे वे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत स्वतंत्र रूप से धर्म अभ्यास और प्रचार के अपने अधिकार का उपयोग कर सकेंं।

    याचिका में अदालत से आग्रह किया गया है कि वह उपासना स्‍थल (विशेष उपबंध) अधिनियम 1991 की धारा 2,3, 4 को असंवैधानिक करार दे। यह कहा गया है कि लगाए गए प्रावधानों ने लंबित मुकदमे / कार्यवाही को समाप्त कर दिया है, जिसमें 15 अगस्त, 1947 से पहले कार्रवाई का कारण उत्पन्न हुआ था और इस प्रकार अदालत के माध्यम से पीड़ित व्यक्ति के लिए उपलब्ध उपाय से इनकार कर दिया गया है।

    याचिका में कहा गया है कि उपर्युक्त स्थानों की उपासना स्‍थल (विशेष उपबंध) अधिनियम 1991 भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन है। जैसा कि ये प्रावधान मनमाना है, न्याय को अस्वीकार करता है इसलिए असंवैधानिक घोषित किया जाए।

    यह भी प्रस्तुत किया गया है कि प्रावधान हिंदू कानून के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं कि मंदिर की संपत्ति कभी नहीं खोती है भले ही अजनबियों द्वारा वर्षों तक आनंद लिया जाए और यहां तक ​​कि राजा संपत्ति को छीन नहीं सकते क्योंकि देवता ईश्वर का अवतार है और न्यायिक व्यक्ति है, 'अनंत काल' का प्रतिनिधित्व करता है 'और समय की सीमाओं द्वारा सीमित नहीं किया जा सकता।

    उल्लेखनीय है कि कथ‌ित रूप से श्रीकृष्ण जन्म भूमि पर बनी मस्जिद ईदगाह को हटाने के मामले में दायर मुकदमे को खार‌िज करने के सिविल जज, मथुरा के फैसले के खिलाफ दायर अपील को मथुरा जिला अदालत में लंबित है।

    उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड, ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह, श्रीकृष्ण जनमस्थान ट्रस्ट और श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ को मामले में नोटिस जारी किए गए और 19 नवंबर, 2020 को इस पर सुनवाई होनी है।

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