कर्नाटक हाईकोर्ट ने अभियुक्त की मृत्यु पर अपील समाप्त करने के लिए सीआरपीसी की धारा 394 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा

Shahadat

20 Aug 2022 5:32 AM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 394(1) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। उक्त धारा में अभियुक्त की मृत्यु पर आपराधिक अपीलों को समाप्त करने का प्रावधान है।

    जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की एकल पीठ ने जी वरदराजू द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा,

    "अपराधियों के आपराधिक अभियोजन की कार्यवाही में मेन्स री जैसे व्यक्तिगत तत्व शामिल होते हैं, जो विवेक से संबंधित होते हैं; यदि अपराध साबित हो जाता है तो अपराधी के व्यक्ति को अपराध को शुद्ध करने के लिए सजा भुगतने की आवश्यकता होती है। इसलिए , आमतौर पर अभियुक्त की मृत्यु पर आपराधिक कार्यवाही समाप्त हो जाती है।"

    इसमें कहा गया है,

    "शिकायतकर्ता की मृत्यु पर मृतक शिकायतकर्ता के कानूनी उत्तराधिकारी चेक बाउंस मामले में मुकदमा चलाने के लिए 1973 की संहिता की धारा 302 के तहत आवेदन दायर कर सकते हैं।"

    व्यक्तिगत रूप से पेश होने वाले याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सीआरपीसी की धारा 394 के जो प्रावधान अभियुक्त की मृत्यु पर आपराधिक अपील को कम करने का प्रावधान करते हैं, चेक बाउंस मामलों पर लागू नहीं होते हैं। उक्त प्रावधान परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 द्वारा शासित होते हैं और अपने आप में संपूर्ण संहिता के रूप में मौजूद है।

    इसके अलावा, यदि उक्त प्रावधानों को लागू माना जाता है तो उन्हें भेदभावपूर्ण और मनमाना होने के आधार पर रद्द किया जा सकता है। यह कहा गया कि जिस हद तक संसद ने सामान्य रूप से आपराधिक कार्यवाही और विशेष रूप से आपराधिक अपीलों को जारी रखने के लिए उपयुक्त प्रावधान नहीं बनाया है तो ऐसे मामलों में अदालत को कदम उठाना चाहिए।

    हालांकि, कोर्ट ने कहा,

    "अधिकांश न्यायालयों में कानूनी व्यवस्था इस आधार पर संचालित होती है कि किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके जन्म से शुरू होता है और मृत्यु के साथ समाप्त होता है। कुछ प्रणालियों में व्यक्तित्व को 'गर्भ में बच्चे' के लिए भी माना जा सकता है। हालांकि यह अधिक प्रासंगिक नहीं है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यदि अधिकार सृजन के लिए जन्म आवश्यक है तो मृत्यु सामान्य रूप से अधिकारों को समाप्त कर देती है।"

    पीठ ने डरहम बनाम यूएस, 401 यूएस 481 (1971) में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया। यह फैसला अपील सहित अभियुक्त या अपराधी की आपराधिक कार्यवाही को करने पर शुरू से ही कमी के सिद्धांत को मान्यता देता है।

    पीठ ने कहा,

    "कानून के प्रावधान जैसे दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 394 में कार्यवाही को कम करने का प्रावधान सार्वभौमिक है।"

    पीठ ने आगे कहा,

    "अभियुक्त की मृत्यु पर अपील की अंतिम समाप्ति का प्रावधान करने वाली कानूनों में अधिनियमित राज्य की नीति विधायी ज्ञान और तर्क से अनुप्राणित है। यह शुद्ध विधायी नीति का विषय है कि अभियुक्त की मृत्यु से अपराधी कार्यवाही का अंत होना चाहिए। इसलिए, उक्त प्रावधान को रद्द नहीं किया जा सकता।"

    इसमें कहा गया,

    "किस परिस्थितियों में छूट होनी चाहिए, यह सदियों के अनुभव के माध्यम से प्राप्त विधायी ज्ञान पर छोड़ दिया गया है। ऐसा नहीं है कि हाल के दिनों में इस तरह के प्रावधान को लागू किया गया है। एक ईमानदार शिकायतकर्ता के लिए यह एकदम अप्रत्याशित साबित हो रहा है।"

    इस तर्क के संबंध में कि दोषसिद्धि और मौत की सजा या कारावास के खिलाफ अपील समाप्त नहीं होती है, यदि निकट संबंधी इसे जारी रखने के लिए छुट्टी प्राप्त करते हैं और समान सुविधा प्रदान नहीं की जा रही है तो मामले में संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।

    बेंच ने कहा,

    "यह दूर की कौड़ी है। इस सजा के परिणामस्वरूप मौत या कारावास की सजा एक अलग स्तर पर होती है। साथ ही ऐसे मामले कानून निर्माताओं के विचार में बाकी हिस्सों से एक अलग वर्ग का गठन करते हैं। यह इस तथ्य को प्रस्तुत नहीं करता कि कानून समानता खंड का उल्लंघन कर रहा है।"

    अंत में पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि सीआरपीसी के प्रावधान चेक बाउंस के मामलों की सुनवाई पर लागू नहीं होते हैं। इसलिए इसमें दर्ज बरी होने के खिलाफ अपील का निपटारा नहीं किया जा सकता, क्योंकि आरोपी की मौत की सजा पर रोक लगा दी गई है।

    पीठ ने कहा,

    "एनआई अधिनियम की धारा 4 और सपठित धारा 143 अपने साथ भारतीय दंड संहिता, 1862 (आईपीसी) के अलावा अन्य कानून के तहत दंडनीय अपराधों के ट्रायल के लिए भी अपने प्रावधानों लागू करती है। संहिता के कुछ प्रावधानों को आवेदन से बाहर रखा गया है। इसका मतलब यह नहीं कि अन्य प्रासंगिक प्रावधान एनआई अधिनियम के तहत आपराधिक कार्यवाही को नियंत्रित नहीं करते।"

    केस टाइटल: जी वरदराजू बनाम भारत संघ

    केस नंबर: रिट याचिका नंबर 13145/2022

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 327

    आदेश की तिथि: अगस्त, 2022 का 12वां दिन

    उपस्थिति: जी वरदराजू, व्यक्तिगत रूप से पक्षकरा; कुमार एम एन, सीजीसी फॉर आर1 और आर2

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