एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करने की पूर्व शर्त पूरी नहीं होती यदि मांग का वैधानिक नोटिस गलत पते पर भेजा गया हो: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

12 July 2022 10:20 AM IST

  • एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करने की पूर्व शर्त पूरी नहीं होती यदि मांग का वैधानिक नोटिस गलत पते पर भेजा गया हो: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट ने आज फैसला सुनाया कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट (एनआई) एक्ट की धारा 138 के तहत अनिवार्य रूप से चेक जारीकर्ता द्वारा वैधानिक डिमांड नोटिस प्राप्त करने का निष्कर्ष तभी निकाला जा सकता है जब नोटिस उसके सही पते पर भेजा गया हो। कोर्ट ने रेखांकित किया कि यदि चेक जारी करने वाले के गलत पते पर नोटिस भेजा गया है तो ऐसा निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।

    न्यायमूर्ति संजय धर की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी द्वारा उसके खिलाफ नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट ("एनआई एक्ट") के तहत अपराध के लिए श्रीनगर न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत के समक्ष दायर की गई शिकायत को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में उस आदेश को भी चुनौती दी थी जिसके तहत मजिस्ट्रेट ने अपराध का संज्ञान लेने के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया शुरू की थी।

    याचिकाकर्ता के वकील ने जोरदार दलील दी कि वैधानिक डिमांड नोटिस उनके मुवक्किल को नहीं दिया गया था, क्योंकि जिस पते पर प्रतिवादी ने उक्त नोटिस भेजा है, वह गलत था। वकील ने आगे तर्क दिया कि याचिकाकर्ता दिल्ली का निवासी है, लेकिन मांग की सूचना प्रतिवादी/शिकायतकर्ता द्वारा जम्मू में गलत पते पर भेजी गई है और इसलिए उस पर डिमांड नोटिस तामील हुए बिना, यह नहीं कहा जा सकता है कि उनके खिलाफ एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध का मामला बनता है। उन्होंने यह भी दलील दी कि जब तक चेक के आहर्ता को मांग की सूचना नहीं दी जाती है और वह वैधानिक अवधि के भीतर राशि का भुगतान करने में विफल रहता है, तब तक एनआई अधिनियम की धारा 138 के संदर्भ में आहर्ता के खिलाफ निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।

    दावों का विरोध करते हुए प्रतिवादी के वकील ने दलील दी कि कानून के लिए शिकायतकर्ता को केवल मांग की सूचना देने की आवश्यकता है, जबकि नोटिस तामील होना आवश्यक नहीं है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पार्टियों के बीच एक समझौता हुआ था और उक्त समझौते में, याचिकाकर्ता का वही पता लिखा गया था, जैसा कि डिमांड नोटिस और शिकायत में दर्ज किया गया है।

    अदालत के समक्ष उपलब्ध रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए पीठ ने दर्ज किया कि आक्षेपित शिकायत यह भी दर्शाती है कि याचिकाकर्ता/आरोपी का पता जम्मू के निवासी के रूप में दिखाया गया है। जब याचिकाकर्ता/अभियुक्त के खिलाफ ट्रायल मजिस्ट्रेट द्वारा प्रक्रिया जारी की गई थी, तो गलत पते के कारण उस पर सूचना तामील नहीं की जा सकी थी और ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड से पता चलता है कि प्रतिवादी/शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता/अभियुक्त का नया विवरण प्रस्तुत करते हुए उक्त न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दिया था।

    कोर्ट ने कहा,

    "उपरोक्त रिकॉर्ड से, यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी/शिकायतकर्ता ने मांग के वैधानिक नोटिस के साथ-साथ शिकायत में याचिकाकर्ता/अभियुक्त के गलत पते का उल्लेख किया था, क्योंकि प्रियाग अपार्टमेंट, वसुंधरा एन्क्लेव-96 दिल्ली में स्थित नहीं है, न कि जम्मू में।"

    इस विवादास्पद प्रश्न पर विचार करते हुए कि क्या एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत कानून शिकायतकर्ता को केवल डिमांड नोटिस देने की आवश्यकता है और नोटिस का तामील होना आवश्यक नहीं है, पीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सी.सी. अलावी हाजी बनाम पलापेट्टी मुहम्मद और अन्य, (2007) मामले में दिए गए फैसले का जिक्र किया, जिसमें यह कहा गया है कि जब नोटिस चेक जारी करने वाले को सही ढंग से संबोधित करके पंजीकृत डाक द्वारा भेजा जाता है, तो माना जाता है कि अधिनियम की धारा 138 के प्रावधान के खंड (बी) के अनुसार नोटिस जारी करने की अनिवार्य आवश्यकता का अनुपालन किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस बात पर जोर दिया है, वह यह है कि नोटिस चेक देने वाले के सही पते पर भेजा जाना चाहिए था। पीठ ने आगे कहा कि तभी यह कहा जा सकता है कि चेक जारी करने वाले को नोटिस तामील हुआ है।

    इस मुद्दे पर आगे विचार करते हुए कोर्ट ने हरमन इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम नेशनल पैनासोनिक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, (2009) पर भी भरोसा जताया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है:

    "एनआई अधिनियम की धारा 138 में संलग्न प्रावधान, कुछ और शर्तें लगाता है जिन्हें अपराध का संज्ञान लेने से पहले पूरा करना आवश्यक है। यदि एनआई अधिनियम की धारा 138 में संलग्न प्रावधान (ए), (बी) और (सी) में निर्धारित अपराध के गठन के कारकों को अभियुक्त के पक्ष में लागू करने का इरादा है, तो इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि नोटिस की प्राप्ति अंततः शिकायत दर्ज करने के लिए कार्रवाई के कारण को जन्म देगी। नोटिस की प्राप्ति पर ही आरोपी अपनी आपदा की स्थिति में राशि का भुगतान करने से इनकार कर सकता है। धारा 138 के परंतुक के खंड (बी) और (सी) को एक साथ पढ़ा जाना चाहिए। केवल नोटिस जारी करना अपने आप में वाद हेतुक को जन्म नहीं देगा, बल्कि उसे तामील होने के बाद ही ऐसा संभव होगा।"

    याचिका स्वीकार करते हुए और शिकायत को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री स्पष्ट रूप से बताती है कि प्रतिवादी/शिकायतकर्ता द्वारा गलत पते पर मांग का वैधानिक नोटिस भेजा गया था और इसलिए याचिकाकर्ता/अभियुक्त द्वारा नोटिस की प्राप्ति की धारणा का सवाल नहीं उठता है। कोर्ट ने कहा कि चूंकि एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत एक वैधानिक नोटिस भेजने की शिकायत दर्ज करने की पूर्व शर्त वर्तमान मामले में संतुष्ट नहीं है, इसलिए प्रतिवादी/शिकायतकर्ता के पक्ष में शिकायत दर्ज करने का कोई कारण नहीं बनता है।

    केस शीर्षक: इंजीनियरिंग कंट्रोल बनाम बंदे इंफ्राटेक प्रा. लिमिटेड

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