असम समझौते के तहत माइग्रेंट्स के 'गैर-कानूनी' रहने और 'कम डिपोर्टेशन' के खिलाफ याचिका हाईकोर्ट ने बंद की, SC के फैसले का इंतजार
Shahadat
6 Dec 2025 10:41 AM IST

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बुधवार को एक पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) याचिका बंद की, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के सामने इसी तरह के बड़े मुद्दों के पेंडिंग होने को देखते हुए असम समझौते, 1985 के डिपोर्टेशन क्लॉज़ को सख्ती से लागू करने की मांग की गई।
जस्टिस माइकल ज़ोथनखुमा और जस्टिस एन. उन्नी कृष्णन नायर की बेंच ने असम आंदोलन संग्रामी मंच की फाइल की गई याचिका का निपटारा कर दिया, जिसमें असम समझौते के लीगल फ्रेमवर्क के बावजूद "कम संख्या में डिपोर्टेशन" पर चिंता जताई गई।
बेंच ने कहा,
"क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने आज तक उन मुद्दों पर फैसला नहीं किया, जिन पर इस मामले में भी बात हो रही है, हमारा मानना है कि इस PIL को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करते हुए बंद कर देना चाहिए। इसलिए हम माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करते हुए PIL बंद करते हैं।"
याचिकाकर्ता का कहना था कि यूनियन और स्टेट अथॉरिटीज़ असमिया लोगों की कल्चरल, सोशल और लिंग्विस्टिक पहचान को बचाने और बढ़ावा देने में फेल रही हैं।
PIL में डिपोर्टेशन की बहुत कम संख्या और असम राज्य में गैर-कानूनी माइग्रेंट्स के लगातार रहने की भी चिंता थी।
इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मूल निवासियों की पहचान को सुरक्षित रखने के लिए असम समझौते को "पूरी ईमानदारी" से लागू करना होगा।
याचिकाकर्ता ने खास तौर पर असम समझौते, 1985 के क्लॉज़ 5.1 से 5.5 को लागू करने की रिक्वेस्ट की, जो पता लगाने और डिपोर्टेशन प्रोसेस की रीढ़ हैं।
ये क्लॉज़ इस तरह हैं:
5.1 विदेशियों का पता लगाने और उन्हें हटाने के मकसद से, 1.1.1966 बेस डेट और साल होगा।
5.2 1.1.1966 से पहले असम आए सभी लोगों को रेगुलर किया जाएगा, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं, जिनका नाम 1967 के चुनावों में इस्तेमाल हुई वोटर लिस्ट में था।
5.3 1.1.1966 (समेत) के बाद और 24 मार्च, 1971 तक असम आए विदेशियों का पता फॉरेनर्स एक्ट, 1946 और फॉरेनर्स (ट्रिब्यूनल) ऑर्डर 1964 के नियमों के अनुसार लगाया जाएगा।
5.4 इस तरह पकड़े गए विदेशियों के नाम मौजूदा वोटर लिस्ट से हटा दिए जाएंगे। ऐसे लोगों को रजिस्ट्रेशन ऑफ़ फॉरेनर्स एक्ट, 1939 और रजिस्ट्रेशन ऑफ़ फॉरेनर्स रूल्स, 1939 के नियमों के अनुसार अपने-अपने ज़िलों के रजिस्ट्रेशन ऑफिसर के सामने खुद को रजिस्टर कराना होगा।
5.5 इस मकसद के लिए भारत सरकार सरकारी मशीनरी को सही तरीके से मज़बूत करेगी।
अपने ऑर्डर में कोर्ट ने देखा कि याचिकाकर्ता की एक खास प्रार्थना थी कि "हिंदू धर्म के विदेशियों के रेगुलराइज़ेशन के लिए प्रपोज़्ड बिल" (जो 2016 तक माइग्रेट कर गए) को गैर-कानूनी घोषित किया जाए। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि सिटिज़नशिप अमेंडमेंट एक्ट, 2019 के लागू होने के बाद वह प्रार्थना 'बेकार' हो गई।
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का 'इंतज़ार' करते हुए PIL याचिका बंद कर दी गई, क्योंकि बेंच के सामने पार्टियों ने यह भी माना कि इसी तरह के मामले टॉप कोर्ट के सामने निपटारे के लिए पेंडिंग हैं।
Case title - Asom Andolan Sangrami Manch vs. UOI and 13 others

