अगर वैध कारण हों तो हाईकोर्ट धारा 482 सीआरपीसी का प्रयोग करके आदेश वापस ले सकता हैः केरल हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
2 Jun 2020 9:33 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि पार्टी द्वारा कानूनी आधार ठीक से स्थापित हो जाए तो आपराधिक न्यायक्षेत्र के तहत हाईकोर्ट द्वारा पारित एक आदेश को धारा 482 सीआरपीसी के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करके वापस लिया जा सकता है।
न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने जमानत के आदेश को वापस लेते हुए कहा कि वस्तुतः शिकायतकर्ता की सुनवाई नहीं की गई थी और जमानत आवेदन के निस्तारण के समय अभियोग चलाने की का उसका आवेदन लंबित है।
वास्तविक शिकायतकर्ता ने आदेश को वापस लेने के लिए एक अर्जी दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि भले ही उसने जमानत अर्जी में एक अर्जी दायर की थी, लेकिन कारण सूची में उसका नाम दिखाए बिना, जमानत की अर्जी अदालत के समक्ष सुनवाई के लिए लगा दी गई थी और जमानत आवेदन की अनुमति दी गई थी।
कोर्ट ने पुराने फैसलों का [रॉबिन बनाम केरल राज्य और अन्य (2018 केएचसी 158)] पुष्पानगथन बनाम केरल राज्य (2015(3) केएलटी 105)] का उल्लेख किया, जिसमें वापसी, समीक्षा और/या बदलाव के अंतरों पर चर्चा की गई है।
उनमें कहा गया था कि जब किसी आदेश को वापस लिया जाता है तो सभी चीजों को निरस्त कर दिया जाता है और पार्टियों को मूल स्थिति पर वापस लौटना होता है यानी मामले में किसी फैसले या अंतिम आदेश के पारित करने से पहले की स्थिति।
कोर्ट ने कहा, "उपरोक्त निर्णयों की रोशनी में, यह स्पष्ट है कि यदि पार्टी द्वारा कानूनी आधार उचित तरीके से स्थापित किए जाते हैं तो आपराधिक क्षेत्राधिकार के तहत इस कोर्ट द्वारा पारित आदेश को धारा 482 सीआरपीसी के तहत प्रदत्त शक्तियों को उपयोग करके वापस लिया जा सकता है।
यह भी स्पष्ट है कि यदि सुनवाई के दौराना, पार्टी की सुनवाई के बिना कोई आदेश पारित किया गया है और जिसमें पार्टी की गलती नहीं है, तो यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। ऐसी परिस्थितियों में न्यायालय आदेश को वापस ले सकता है।"
जमानत आदेश को रद्द करने और वापस लेने के बीच अंतर
न्यायालय ने कहा कि किसी आदेश को वापस लेना जमानत आदेश को रद्द करने के बराबर नहीं है।
"जमानत आदेश को रद्द करना वकील को सुनने और मामले की मेरिट पर सुनवाई के बाद ही संभव है। हालांकि धारा 438 सीआरपीसी के तहत पारित आदेश को वापस लेने के लिए मामले की मेरिट पर कोई विचार नहीं होता है। यह अदालत इस आदेश को वापस ले रही है क्योंकि याचिकाकर्ता / डिफैक्टो शिकायतकर्ता की सुनवाई नहीं की गई थी और जमानत अर्जी के निस्तारा के समय उसकी मुकदमे की अर्जी लंबित है। ऐसी परिस्थितियों में, किसी आदेश को वापस लेना जमानत आदेश रद्द करने के बराबर नहीं है। इस न्यायालय द्वारा पारित किया गया जमानत आदेश धारा 482 सीआरपीसी के तहत रद्द नहीं किया जा सकता है। जमानत आदेश को रद्द करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत प्रावधान हैं। इस मामले में यह न्यायालय धारा 427 सीआरपीसी के तहत पारित आदेश को वापस लेने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत प्रदत्त अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर रहा है, जिसका साधारण कारण यह है कि प्रभावित पक्ष को नहीं सुना गया है।"
"धारा 438 सीआरपीसी के तहत दिए गए आदेश में परिवर्तन या समीक्षा धारा 362 सीआरपीसी के आलोक में संभव नहीं है, लेकिन धारा 438 सीआरपीसी के तहत पारित आदेश को वापस लेना संभव है, यदि आदेश एक आवश्यक पार्टी को सुने बिना पारित किया गया है तो। जब किसी आदेश को वापस लिया जाता है, तो सभी चीजें निरस्त हो जाती हैं और मामला किसी निर्णय या अंतिम आदेश को पारित करने से पहले की स्थिति में वापस पहुंच जाता है। समीक्षा / परिवर्तन किए गए आदेश की अवैधानिकता या अनौचित्य का पता लगाने के लिए बारीकी से जांच की जानी चाहिए। ऐसा करने के लिए, आदेश या निर्णय के अस्तित्व को मान्यता दी जानी चाहिए।"
जब किसी निर्णय या अंतिम आदेश को वैध कारणों से वापस लिया जाता है, तो परिणामी कानूनी प्रभाव उस आदेश के साथ ही निरस्त हो जाते हैं और पक्षकारों दोबार कार्यवाही शुरू होने पर से पहले की स्थिति में पहुंच जाते हैं।
इसलिए, "जमानत आदेश वापस लेने का आदेश" " जमानत के रद्द करने के आदेश" से अलग है। यह न्यायालय धारा 482 सीआरपीसी के तहत जमानत आदेश को रद्द नहीं कर सकती है। यह न्यायालय धारा 438 सीआरपीसी के तहत पारित आदेश को रद्द करने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर आवेदन को स्वीकार नहीं कर सकती है। ऐसी स्थिति में, न्यायालय निश्चित रूप से आदेश की शुद्धता को देखेगा। इस तरह की कवायद तब नहीं की जा सकती है, जब यह आदेश धारा 438 सीआरपीसी के तहत पारित किया गया हो।"
आदेश डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें