एक कर्मचारी को ट्रेनी का दर्जा देकर, उसे ग्रेच्युटी एक्ट के लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता हैः केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

3 Nov 2020 10:10 AM GMT

  • एक कर्मचारी को ट्रेनी का दर्जा देकर, उसे ग्रेच्युटी एक्ट के लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता हैः केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि एक नियोक्‍ता, एक कर्मचारी को ट्रेनी का दर्जा देकर, जबकि उससे नियमित कर्मचारी जैसे काम लेते हुए, उसे ग्रेच्युटी एक्ट के लाभ से वंचित नहीं कर सकता है।

    जस्टिस एएम बदर ने कहा कि एक ट्रेनी को ग्रेच्युटी एक्ट के तहत 'कर्मचारी' शब्द की परिभाषा से बाहर नहीं किया गया है, बल्‍कि केवल एक 'अप्रेंटिस' को बाहर रखा गया है।

    अदालत ने आईआरईएल (इंडिया) लिमिटेड/ नियोक्ता की रिट याचिका रद्द करते हुए उक्त टिप्पणियां की हैं। याचिका के पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 के तहत नियंत्रण प्राध‌िकारी द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती गई दी थी।

    यह दलील दी गई थी कि ट्रेनी या शिक्षार्थी वास्तव में अप्रेंटिस है और इसलिए, ग्रेच्युटी एक्ट की धारा 2 (ई) के तहत परिभाषित एक कर्मचारी नहीं है। मामला यह था कि एक कर्मचारी के पास दो साल की शुरुआती अवधि के लिए, जब उसे ट्रेनी के रूप में नियुक्त किया जाता है, जो अप्रेंटिस की नियुक्ति के बराबर है, ग्रेच्युटी प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।

    नियोक्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया था, जिसमें कहा गया था कि ग्रेच्युटी एक्ट के तहत किसी भी वैधानिक प्रावधान के अभाव में, जिसे सेवा में लागू किया जा सकता है, एक ट्रेनी ग्रेच्युटी का हकदार नहीं हो सकता है।

    ज‌स्टिस बदर ने इस दृष्टिकोण से असहमति जताई और कहा कि एक ट्रेनी को ग्रेच्युटी एक्ट के तहत 'कर्मचारी' शब्द की परिभाषा से बाहर नहीं रखा गया है, बल्‍कि एक 'अप्रेंटिस' को बाहर रखा गया है।

    अदालत ने कहा, "ट्रेनी तथाकथित प्रशिक्षण की अव‌ध‌ि में विभिन्न प्रकार के कर्तव्यों का निर्वहन करता है और जिसे विशेष रूप से नामित व्यापार में प्रतिनियुक्त नहीं किया गया हैं, उसे अप्रेंटिस या शिक्षार्थी नहीं कहा जा सकता है। कल्याणकारी कानून के लाभकारी प्रावधानों की व्याख्या करते हुए पद का नामकरण अधिक परिणामदायक नहीं होता है।

    ग्रेच्युटी एक्ट निस्संदेह एक कल्याणकारी कानून है, जो केवल अप्रेंटिस को प्रशिक्षण अवधि में ग्रेच्युटी प्राप्त करने के लाभ से रोक देता है। हालांकि, एक कर्मचारी को ट्रेनी के रूप में नामित करना, उससे नियमित काम लेना और फिर उसे ग्रेच्युटी एक्ट के लाभ से इस बहाने से वंचित करना कि एसा कर्मचारी ट्रेनी है, निश्‍चित रूप से कल्याणकारी कानून के उद्देश्य को पराजित करेगा।"

    अदालत ने उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक, उड़ीसा खनन निगम लिमिटेड बनाम नियंत्रण प्राधिकरण, ग्रेच्युटी एक्ट भुगतान के संबंध में व्यक्त किए गए दृष्टिकोण से भी सहमति व्यक्त की कि रोजगार के अनुबंध के तहत नियोजित एक ट्रेनी अप्रेंटिस एक्ट के तहत अप्रेंटिस नहीं है, जब तक कि वह अप्रेंटिसशिप के अनुबंध के अनुसरण में एक विशेष ट्रेड में अप्रेंटिस ट्रेनिंग से गुजर रहा हो।

    अदालत ने कहा कि कर्मचारी इस प्रकार 16.07.1991 से 15.07.1993 तक की अवधि के लिए ग्रेच्युटी का हकदार था, जैसा कि उन्होंने साबित किया है कि, उक्त अवधि के दौरान, वह किसी भी प्रशिक्षण से हीं गुजर नहीं रहे थे और इस तरह से एक अप्रेंटिस नहीं थे ताकि उन्हें पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 के लाभकारी कानून से बाहर किया जा सके।

    केस: आआरईएल (इं‌डिया) ‌लिमिटेड बनाम पीएन राघव पनिक्कर [WP (C) .No.2254 of 2020]

    कोरम: जस्टिस एएम बदर

    प्रतिनिधित्व: एडवोकेट एम गोपीकृष्‍णन नांबियर, एडवोकेट सीएसअजीत प्रकाश

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