सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
23 July 2023 12:00 PM IST
Supreme Court Weekly Round Up
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (17 जुलाई, 2023 से 21 जून, 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
सीजीएसटी अधिनियम की धारा 69 के तहत बुलाया गया व्यक्ति सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत नहीं मांग सकता; एकमात्र उपचार अनुच्छेद 226 के तहत: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि यदि किसी व्यक्ति को उसका बयान दर्ज करने के लिए सीजीएसटी एक्ट, 2017 की धारा 69 (गिरफ्तार करने की शक्ति) के तहत बुलाया जाता है तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 438 (अग्रिम जमानत) का प्रावधान लागू नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने कहा, “इस प्रकार, कानून की स्थिति यह है कि यदि किसी व्यक्ति को उसके बयान दर्ज करने के उद्देश्य से सीजीएसटी एक्ट, 2017 की धारा 69 के तहत बुलाया जाता है, तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 438 के प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सीजीएसटी एक्ट, 2017 की धारा 69(1) के तहत गिरफ्तारी की शक्ति लागू होने से पहले कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है और ऐसी परिस्थितियों में, समनित व्यक्ति अग्रिम जमानत के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 438 का इस्तेमाल नहीं कर सकता है।''
केस टाइटल: गुजरात राज्य बनाम चूड़ामणि परमेश्वरन अय्यर
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'अपराधी इरादा या अपराधी ज्ञान ' : सुप्रीम कोर्ट ने धारा 304 आईपीसी के दोनों हिस्सों के बीच बारीक अंतर समझाया
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिए एक फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के दोनों हिस्सों के बीच बारीक अंतर समझाया। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि पहले भाग के तहत, पहले हत्या का अपराध स्थापित किया जाता है और फिर आरोपी को आईपीसी की धारा 300 के अपवादों में से एक का लाभ दिया जाता है, जबकि दूसरे भाग के तहत, हत्या का अपराध कभी स्थापित ही नहीं होता।
मामले का विवरण- अंबाजगन बनाम राज्य | 2023 लाइव लॉ (SC) 550 | 2023 INSC 632
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जब्त किए गए मादक पदार्थों के निस्तारण/नष्टीकरण से पहले एनडीपीएस अधिनियम की धारा 52ए के आदेश का विधिवत पालन किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब्त किए गए मादक पदार्थों के निस्तारण/नष्टीकरण से पहले एनडीपीएस एक्ट की धारा 52ए के आदेश का विधिवत पालन किया जाना चाहिए। जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 15 (सी) सहपठित धारा 8 (बी) के तहत समवर्ती रूप से दोषी ठहराए गए एक आरोपी द्वारा दायर अपील की अनुमति देते हुए यह टिप्पणी की। नोट किया गया कि इस मामले में कथित तौर पर जब्त किए गए नशीले पदार्थों के निपटान के लिए मजिस्ट्रेट ने कोई आदेश पारित नहीं किया था।
केस डिटेलः मांगीलाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य | 2023 लाइव लॉ (एससी) 549 | 2023 आईएनएससी 634
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कृष्ण जन्मभूमि मामला: ट्रायल कोर्ट के बजाय हाईकोर्ट फैसला करे तो क्या बेहतर नहीं होगा? सुप्रीम कोर्ट ने शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी से कहा
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार से मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद के संबंध में दायर सिविल मुकदमों का विवरण मांगा, जिन्हें समेकित करने और ट्रायल कोर्ट से हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की गई थी। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद से संबंधित सभी लंबित मुकदमों को मथुरा न्यायालय से अपने पास स्थानांतरित करने के 26 मई को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
[केस टाइटल: प्रबंधन ट्रस्ट समिति शाही मस्जिद ईदगाह बनाम भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और अन्य एसएलपी (सी) संख्या 14275/2023]
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सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाने की याचिका पर नोटिस जारी किया; 4 अगस्त को अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद (सांसद) राहुल गांधी द्वारा आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सजा को निलंबित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की। राहुल गांधी को सजा के परिणामस्वरूप सांसद के रूप में अयोग्य ठहराया गया था। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 4 अगस्त को तय की है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ गांधी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 'मोदी चोर' टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने से गुजरात हाईकोर्ट के इनकार को चुनौती दी गई थी।
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सरकारी अधिकारियों को बिना सोचे समझे अदालत में नहीं बुलाया जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य के अधिकारियों को बिना सोचे-समझे अदालत में बुलाने की प्रथा अदालत की महिमा को कमजोर करती है। शीर्ष न्यायालय का विचार था कि अदालत में अधिकारियों की उपस्थिति पर जोर देने से कीमती समय बर्बाद होता है जो समय उनके कर्तव्यों के निर्वहन में लगाया जा सकता है और इस तरह की प्रथा को नियमित रूप से नहीं अपनाया जाना चाहिए।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य के अधिकारी हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। ऐसे मामले में जहां न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों की अवहेलना और अवज्ञा होती है, न्यायालय अधिकारियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने में न्यायसंगत होगा।"
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कामगार मुआवजा अधिनियम | पूर्ण विकलांगता का दावा करने के लिए शारीरिक विकलांगता नहीं, कार्यात्मक विकलांगता निर्णायक कारक: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने श्रमिक मुआवजा अधिनियम 1923 के तहत एक घायल मजदूर को मुआवजा बढ़ाते हुए दोहराया कि कार्यात्मक विकलांगता निर्धारण कारक है, न कि शारीरिक विकलांगता। पीड़िता एक मजदूर थी, जब एक खंभा उसकी बायीं बांह पर गिर गया और उसकी नसों को नुकसान पहुंचा, जिसके कारण उसने अपनी बांह की पकड़ खो दी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने विकलांगता का आकलन 40% किया। हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे "पूर्ण विकलांगता" माना जाना चाहिए क्योंकि दावेदार वह काम नहीं कर सकती जो वह पहले कर रही थी।
केस टाइटल: इंद्रा बाई बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
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'बेहद दुख, हिंसा के साधन के रूप में महिलाओं का इस्तेमाल अस्वीकार्य': सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर वीडियो पर स्वत: संज्ञान लिया
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उस भयावह वीडियो पर स्वत: संज्ञान लिया, जिसमें मणिपुर में दो महिलाओं को नग्न अवस्था में घुमाने और राज्य में जातीय संघर्ष के बीच यौन हिंसा का शिकार होते दिखाया गया। कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि वह अपराधियों को कानून के दायरे में लाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी कोर्ट को दे। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की उपस्थिति की मांग की।
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दुर्घटनावश गोलीबारी से मौत : सुप्रीम कोर्ट ने पुलिसकर्मी की आईपीसी की धारा 302 के तहत सजा को धारा 304 में बदला
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दुर्घटनावश गोलीबारी के कारण एक कांस्टेबल की मौत से संबंधित मामले में दिल्ली पुलिस के एक गार्ड की सजा को आईपीसी की धारा 302 (हत्या) को धारा 304 ए (लापरवाही से मौत) में बदल दिया। सेमी-ऑटोमैटिक हथियार से लैस अपीलकर्ता मृतक कांस्टेबल को फोन बंद करने के लिए कह रहा था, तभी हाथापाई के कारण ये दुखद घटना हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही यह मान लिया जाए कि सेमी-ऑटोमैटिक हथियार पिस्तौल सुरक्षा स्थिति में नहीं थी, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि अपीलकर्ता को पता था कि हथियार को सुरक्षा स्थिति में न रखने से मृतक की मौत होने की संभावना थी।
केस : अरविंद कुमार बनाम राज्य, एनसीटी दिल्ली
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रिया चक्रवर्ती मामले में एनडीपीएस प्रावधानों की बॉम्बे हाईकोर्ट की व्याख्या को मिसाल नहीं माना जाएगा : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि रिया चक्रवर्ती मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए दिए गए फैसले को किसी अन्य मामले में मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2021 में अभिनेता रिया चक्रवर्ती को जमानत देते समय एनडीपीएस अधिनियम की धारा 27ए के दायरे की व्याख्या करते हुए कहा था कि उक्त धारा के अनुसार केवल ड्रग्स खरीदने के लिए रुपए देने का मतलब "अवैध व्यापार का वित्तपोषण" नहीं होगा और किसी व्यक्ति द्वारा नशीली दवाओं के उपयोग को छिपाना उक्त धारा के अनुसार अवैध व्यापार और अपराधी को शरण देने की श्रेणी में नहीं आएगा।
केस टाइटल : भारत संघ बनाम रिया चक्रवर्ती
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एनआई एक्ट | चेक डिसऑनर के मामले में अंतरिम मुआवजा देने का आदेश तभी दिया जा सकता है, जब आरोपी दोषी न होने की बात कहे: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जहां कोई चेक डिसऑनर हो जाता है, वहां अंतरिम मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश तभी दिया जा सकता है, जब आरोपी ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 143ए(1) के तहत खुद को दोषी न मानने की दलील दी हो।
वर्तमान मामले में, अदालत ने नोट किया गया कि मजिस्ट्रेट ने आरोपी की याचिका दर्ज होने से पहले चेक राशि का 10% भुगतान करने का निर्देश दिया था। अदालत ने माना कि याचिका पर विचार करने से पहले इस तरह के आदेश पारित करना कानून की दृष्टि से टिकाऊ नहीं है।
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गोहत्या पर प्रतिबंध का फैसला विधायिका को लेना है, कोर्ट कानून बनाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गोहत्या पर रोक के संबंध में निर्णय विधायिका को लेना है। न्यायालय विधायिका को अपने रिट अधिकार क्षेत्र में भी कोई विशिष्ट कानून लाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। कोर्ट ने गायों की सुरक्षा के लिए राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों पर भी गौर किया।
जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस संजय करोल की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ एनजीटी के फैसले के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने गोहत्या पर प्रतिबंध के लिए एक विशिष्ट निर्देश की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया था।
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एनडीपीएस एक्ट | लंबे समय तक कारावास के मामले में, स्वतंत्रता धारा 37 के तहत प्रतिबंध को ओवरराइड करेगी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत एक अपराध में जमानत याचिका पर विचार करते हुए कहा कि लंबे समय तक कारावास की स्थिति में, सशर्त स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 37 के तहत वैधानिक प्रतिबंध को खत्म कर देगी। कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि लंबे समय तक कारावास अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार, यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के खिलाफ है।
केस डिटेल: रबी प्रकाश बनाम ओडिशा राज्य, Special Leave to Appeal (Crl.) No(s).4169/2023