सुप्रीम कोर्ट ने शेयर एस्क्रो एग्रीमेंट विवाद को लेकर स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के खिलाफ FIR खारिज की
Shahadat
2 Jun 2025 3:25 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दो संस्थाओं के बीच शेयर एस्क्रो एग्रीमेंट के संबंध में स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक और स्टारशिप इक्विटी होल्डिंग लिमिटेड के खिलाफ दर्ज FIR खारिज की।
कोर्ट ने पाया कि बैंक के खिलाफ आपराधिक मामला "कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग" है।
कोर्सेयर और कटरा तथा स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, मॉरीशस के बीच 2007 में एस्क्रो और सेटलमेंट ट्रांजैक्शन एग्रीमेंट किया गया। प्रतिवादी-विक्टर प्रोग्राम प्राइवेट लिमिटेड ने तमिलनाडु मर्केंटाइल बैंक के 13455 शेयर बिना शर्त और अपरिवर्तनीय रूप से कॉर्सेयर द्वारा पहचानी गई संस्थाओं को 32,53,68,810/- रुपये में बेचने पर सहमति व्यक्त की।
शेयरों की खरीद के लिए स्टारशिप इक्विटी होल्डिंग लिमिटेड (स्टारशिप) को एक स्वतंत्र निवेशक के रूप में पहचाना गया।
13.05.2007 को तमिलनाडु मर्केंटाइल बैंक ने प्रतिवादी-वेक्टर के पक्ष में शेयरों के हस्तांतरण को मंजूरी दे दी। उसी दिन शेयरों को आगे स्थानांतरित कर दिया गया और उन्हें स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, भारत में जमा कर दिया गया, जिसकी मुंबई में शाखा है। प्रतिवादी-वेक्टर ने उक्त लेनदेन के पूरा होने के बाद 15.05.2007 को 32,53,68,810/- रुपये की राशि प्राप्त की।
इसके बाद शेयरों का मूल्यांकन कई गुना बढ़ गया। अपने स्वयं के निर्णय से एक बड़ी राशि खोने के बाद प्रतिवादी-वेक्टर ने एस्क्रो समझौते को समाप्त करने और उक्त शेयरों को वापस करने की मांग करते हुए वर्ष 2011 में एक दीवानी मुकदमा दायर करके एक असफल प्रयास किया। बॉम्बे हाईकोर्ट ने दीवानी कार्यवाही में उसे राहत देने से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा उसकी अपील खारिज करने के कुछ दिनों बाद वेक्टर ने 2016 में आपराधिक शिकायत दर्ज की। CrPC की धारा 93 के अनुसार आपराधिक कार्यवाही में शेयर प्रमाणपत्र जब्त कर लिए गए। इंदिरानगर पुलिस स्टेशन, बेंगलुरु द्वारा दर्ज की गई FIR में भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 की धारा 406, 409, 420, 108-ए, 109 और 120-बी के तहत अपराध दर्ज किए गए।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने जब FIR रद्द करने से इनकार कर दिया तो बैंक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने कहा कि यह उपयुक्त मामला था, जहां हाईकोर्ट IPC की धारा 406, 409, 420, 108ए और 109 और 120बी के तहत अपीलकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए CrPC की धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर सकता था।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि FIR का समर्थन करने के लिए कोई सामग्री नहीं थी। साथ ही, कई लेन-देन को दबा दिया गया था।
न्यायालय ने टिप्पणी की:
"इसमें कोई विवाद नहीं है कि प्रतिवादी-वेक्टर ने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए, शेयरों को हस्तांतरित किया और धन प्राप्त किया। ये सभी लेन-देन 15.05.2007 को ही पूरे हो गए थे।
इसके बाद ही बाद में विचार करके प्रतिवादी-वेक्टर ने एस्क्रो समझौते को समाप्त करने और एस्क्रो शेयरों को वापस करने की मांग करते हुए सिविल मुकदमा दायर करके असफल प्रयास किया। सिंगल जज और बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ दोनों से प्रतिकूल आदेश प्राप्त करने के बाद उसके तुरंत बाद जल्दबाजी में एक आपराधिक शिकायत दर्ज की गई।
आगे कहा गया,
"यह मानने के लिए कोई विरोधाभासी सामग्री नहीं है कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ कोई अन्य आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई। यह प्रतिवादी-वेक्टर ही है जो लेन-देन का लाभार्थी था और जिसने प्रासंगिक समय पर धन प्राप्त किया। इसलिए हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि हाईकोर्ट ने प्रासंगिक सामग्रियों पर उनके सही परिप्रेक्ष्य में विचार न करके एक गलती की, खासतौर पर हाईकोर्ट के सुयोग्य निर्णयों पर। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत शक्ति, जैसा कि प्रासंगिक समय पर थी, हालांकि इसका संयम से प्रयोग किए जाने की उम्मीद है, लेकिन इसका प्रयोग तब किया जाएगा जब आपराधिक कार्यवाही के लंबित रहने से कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग होगा। यह एक उपयुक्त मामला है, जहां हाईकोर्ट को उक्त शक्ति का प्रयोग करना चाहिए था।"
Case : Standard Chartered Bank v State of Karnataka and others, Starship Equity Holding Ltd v State of Karnataka and othes

