सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद झारखंड हाईकोर्ट ने करीब 3 साल से सुरक्षित 4 आपराधिक अपीलों पर फैसला सुनाया

Shahadat

13 May 2025 4:31 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद झारखंड हाईकोर्ट ने करीब 3 साल से सुरक्षित 4 आपराधिक अपीलों पर फैसला सुनाया

    सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हमें सिस्टम की विफलता पर खेद है।

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले पर संज्ञान लिए जाने के बाद झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में चार आपराधिक अपीलों पर फैसला सुनाया, जो करीब तीन साल से सुरक्षित थीं। हाईकोर्ट ने चार दोषियों को बरी कर दिया, जो एक दशक से भी ज्यादा समय से बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल में बंद थे।

    दोषियों की अपीलों पर करीब 2-3 साल पहले हाईकोर्ट ने सुनवाई की थी और उन्हें सुरक्षित रखा था, लेकिन आदेश सुनाए जाने बाकी थे। इसलिए दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्तमान रिट याचिका पर नोटिस जारी करने और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से रिपोर्ट मांगने के बाद हाईकोर्ट ने 3 दोषियों को बरी कर दिया और चौथे के मामले में विभाजित फैसला सुनाया। हालांकि, सभी 4 दोषियों को तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया गया।

    बता दें, दोषी अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग समुदायों से हैं और उन्हें आजीवन कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। तीन को हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था, जबकि एक को बलात्कार के आरोप में दोषी ठहराया गया था। चार में से एक दोषी 16 साल से अधिक समय से जेल में था, जबकि अन्य ने भी 11-14 साल की वास्तविक हिरासत अवधि का सामना किया था।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की खंडपीठ ने मामले पर विचार किया।

    एडवोकेट फौजिया शकील (याचिकाकर्ताओं के लिए) द्वारा वर्तमान सुनवाई के दौरान घटनाक्रम की जानकारी दी गई, जिन्होंने दावा किया कि हालांकि याचिकाकर्ताओं को तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन केवल 1 को जेल से रिहा किया गया, जबकि अन्य लगभग 7 दिन (फैसले सुनाए जाने के बाद) बीत जाने के बावजूद जेल में बंद हैं।

    जवाब में खंडपीठ ने पूछा कि क्या ऐसा इसलिए है, क्योंकि फैसले अपलोड नहीं किए गए। हालांकि, एडवोकेट शकील ने जवाब दिया कि लगातार फॉलो-अप के बावजूद कारण अज्ञात रहा। इस तरह खंडपीठ ने राज्य के वकील की ओर रुख किया, जिन्होंने निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगा। खंडपीठ ने उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि याचिकाकर्ताओं को आज ही रिहा किया जाए तथा मामले को राज्य द्वारा अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए दोपहर 2 बजे सूचीबद्ध किया।

    दोपहर 2 बजे पीठ को सूचित किया गया कि सभी 4 दोषियों को रिहा कर दिया गया। राज्य के वकील ने बताया कि 3 दोषियों के मामले में देरी इसलिए हुई, क्योंकि रिहाई के आदेश जेल अधिकारियों तक नहीं पहुंचे। शकील ने अपनी ओर से न्यायालय को इसके लिए धन्यवाद दिया तथा बताया कि पिछली तिथि पर झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को 10 ऐसे ही दोषियों को विधिक सहायता प्रदान करने के लिए कहा गया ताकि उनकी ओर से उचित कार्यवाही शुरू की जा सके।

    यह देखते हुए कि उठाए गए मुद्दे अत्यंत महत्वपूर्ण हैं तथा इनका गहन विश्लेषण करने की आवश्यकता होगी, न्यायालय ने अनिवार्य दिशा-निर्देश निर्धारित करने की इच्छा व्यक्त की ताकि विधिक न्याय प्रणाली में विश्वास तथा आस्था बनी रहे।

    मामले की पृष्ठभूमि

    याचिका में किए गए कथनों के अनुसार, दोषी बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार, होटवार, रांची में बंद हैं। उन्होंने रांची में झारखंड हाईकोर्ट के समक्ष अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए आपराधिक अपील दायर की थी। 2022 में फैसले सुरक्षित रखे गए, लेकिन आज तक भी हाईकोर्ट ने फैसला नहीं सुनाया। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि फैसले न सुनाए जाने से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होता है, जिसका एक पहलू 'शीघ्र सुनवाई का अधिकार' है।

    इससे पहले, मामले को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को सीलबंद लिफाफे में सुरक्षित रखे गए फैसलों के बारे में स्थिति रिपोर्ट पेश करने को कहा था। साथ ही दोषियों की ओर से सजा के निलंबन के लिए दिए गए आवेदनों पर भी नोटिस जारी किया गया, क्योंकि उनकी ओर से कहा गया था कि चूंकि हाईकोर्ट ने फैसले सुरक्षित रख लिए हैं, इसलिए वे छूट के लिए आवेदन नहीं कर सकते।

    इसके बाद निर्णय सुनाने में देरी पर चिंता व्यक्त करते हुए न्यायालय ने सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरलों को निर्देश दिया कि वे उन मामलों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करें, जिनमें 31 जनवरी, 2025 को या उससे पहले निर्णय सुरक्षित रखने के बावजूद अभी तक निर्णय नहीं सुनाए गए।

    केस टाइटल: पीला पाहन@ पीला पाहन एवं अन्य बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य, डब्ल्यू.पी.(सीआरएल.) नंबर 169/2025

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