गुवाहाटी हाईकोर्ट ने विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय के समक्ष खुद को पंजीकृत करने की अवधि बढ़ाने के लिए घोषित 'विदेशी' की ओर से किए गए अनुरोध को स्वीकार किया
Avanish Pathak
18 March 2023 7:06 PM IST
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ) के समक्ष खुद को पंजीकृत करने की अवधि को विस्तारित करने के लिए एक घोषित 'विदेशी' की ओर से किए गए अनुरोध को स्वीकार कर लिया। उसने 1966 और 1971 की अवधि के बीच असम में प्रवेश किया था।
जस्टिस अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ और जस्टिस रॉबिन फुकन की खंडपीठ ने सकट अली को एक महीने का समय देते हुए कहा, "यदि याचिकाकर्ता उक्त अवधि के भीतर खुद को पंजीकृत नहीं करवाता है, तो काननू के वो नतीजे, जिन्हें उसे भारत का नागरिक नहीं मानने के बाद भुगतना होगा, उस पर लागू किए जाएंगे।"
याचिकाकर्ता को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने 20 सितंबर, 2022 को विदेशी घोषित किया था। फैसले वह इस हद तक व्यथित रहा कि एफआरआरओ के साथ पंजीकृत होने का समय समाप्त हो गया।
नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए(3) सहपठित धारा 6ए(6) (बी) में प्रावधान है कि एक व्यक्ति, जिसे इस आधार पर 'विदेशी' के रूप में चिन्हित किया गया है कि उसने एक जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच असम में प्रवेश किया था, उसे चिन्हित किए जाने के बाद 60 दिनों के भीतर संबंधित प्राधिकरण (यहां एफआरआरओ) के समक्ष पंजीकृत करना होगा और यदि उसका नाम किसी विधानसभा या संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के लिए किसी मतदाता सूची में शामिल है, तो उसे हटा दिया जाएगा।
इसके अलावा, 1955 के अधिनियम की धारा 6ए(4) में कहा गया है कि एक व्यक्ति जिसे विदेशी घोषित किया गया है और 1955 के अधिनियम की धारा 6ए(3) के तहत खुद को पंजीकृत किया है, उसके पास घोषित किए जाने की तारीख से 10 वर्ष की अवधि समाप्त होने तक भारत के नागरिक के समान अधिकार और दायित्व होंगे, लेकिन वह दस वर्ष की उक्त अवधि की समाप्ति से पहले किसी भी विधानसभा या संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के लिए किसी भी मतदाता सूची में अपना नाम शामिल करने का हकदार नहीं होगा।
हालांकि, 1955 के अधिनियम की धारा 6ए(5) में यह व्यवस्था है कि धारा 6ए(3) के तहत पंजीकृत एक व्यक्ति को सभी उद्देश्यों के लिए विदेशी के रूप में चिन्हित किए जाने की तारीख से दस वर्ष की अवधि की समाप्ति की तारीख तक भारत का नागरिक माना जाएगा।
मामले में याचिका दायर करने का यही कारण था।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के एक व्यक्ति के रूप में पंजीकृत होने पर, जिसने 1966 और 1971 की अवधि के बीच असम में प्रवेश किया था, इसका निहितार्थ यह है कि याचिकाकर्ता पंजीकरण की तारीख से अगले दस वर्षों तक वोट देने का हकदार नहीं होगा।
कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A (3) के अनुसार जहां कहीं भी उसका नाम हो सकता है, याचिकाकर्ता का नाम किसी भी मतदाता सूची से हटा दिया जाए।
अदालत ने आगे ईसीआई और एफआरआरओ को अदालत के उपरोक्त निर्देश का पालन करने का निर्देश दिया, भले ही याचिकाकर्ता एक महीने के भीतर खुद को एफआरआरओ के साथ पंजीकृत न करवाए।
केस टाइटल: सकट अली @ चक्कत अली बनाम In Re- असम राज्य और 7 अन्य।