'MPDA Act के तहत प्रिवेंटिव डिटेंशन का इस्तेमाल पहले से ज़मानत पर चल रहे व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए नहीं किया जा सकता': बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

17 Nov 2025 8:42 AM IST

  • MPDA Act के तहत प्रिवेंटिव डिटेंशन का इस्तेमाल पहले से ज़मानत पर चल रहे व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र खतरनाक गतिविधि निवारण अधिनियम, 1981 (MPDA Act) के तहत प्रिवेंटिव डिटेंशन (Preventive Detention) तब लागू नहीं किया जा सकता, जब बंदी उसी अपराध में पहले से ही ज़मानत पर हो, जिसके लिए उसे हिरासत में लिया गया, बिना हिरासत प्राधिकारी द्वारा यह विचार किए कि ज़मानत की शर्तें कथित पूर्वाग्रही गतिविधियों को रोकने के लिए पर्याप्त हैं या नहीं। कोर्ट ने कहा कि जब किसी व्यक्ति को सक्षम आपराधिक न्यायालय द्वारा ज़मानत पर रिहा किया जाता है तो प्रिवेंटिव डिटेंशन के आदेश की वैधता की जांच में अत्यधिक सावधानी बरती जानी चाहिए।

    जस्टिस एम.एस. कार्णिक और जस्टिस अजीत बी. कडेथांकर की खंडपीठ पुलिस आयुक्त द्वारा जारी 14 अप्रैल 2025 के प्रिवेंटड ऑर्डर को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हिरासत प्राधिकारी को यह जांच करनी चाहिए थी कि ज़मानत देने वाली उक्त शर्तें याचिकाकर्ता की पूर्वाग्रही गतिविधियों में आगे की संलिप्तता को रोकने के लिए पर्याप्त थीं या नहीं, और हिरासत आदेश इस पहलू पर पूरी तरह से मौन है।

    कोर्ट ने नोट किया कि प्रतिवादी नंबर 1 ने गवाहों के बंद कमरे में दिए गए बयानों पर भरोसा किया, जिनसे उसने यह राय बनाई कि उन घटनाओं के संबंध में याचिकाकर्ता की गतिविधियां समुदाय के लिए आवश्यक वस्तुओं (अर्थात घरेलू एल.पी.जी. सिलेंडर की आपूर्ति) की आपूर्ति के लिए प्रतिकूल हैं, जिससे सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

    कोर्ट ने कहा कि हिरासत प्राधिकारी ज़मानत आदेश पर विचार करने या यह जांचने में विफल रहा कि क्या ज़मानत की शर्तें भविष्य में किसी भी कथित कदाचार को रोकने के लिए पर्याप्त थीं।

    कोर्ट ने टिप्पणी की:

    “जब किसी व्यक्ति को सक्षम आपराधिक न्यायालय द्वारा ज़मानत पर रिहा किया जाता है तो प्रिवेंटिव डिटेंशन ऑर्डर की वैधता की जांच में अत्यधिक सावधानी बरती जानी चाहिए, जो उसी आरोप पर आधारित है, जिस पर आपराधिक न्यायालय द्वारा विचार किया जाना है। रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि ज़मानत पर रिहा होने के बाद याचिकाकर्ता किसी आपराधिक गतिविधि में लिप्त रहा हो या अभियोजन पक्ष ने ज़मानत रद्द करने के लिए कोई आवेदन दिया हो।”

    कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्य के पास कोई उपाय नहीं है। यदि बंदी समाज के लिए ऐसा ख़तरा है जैसा कि आरोप लगाया गया तो अभियोजन पक्ष को ज़मानत रद्द करने की मांग करनी चाहिए थी।

    कोर्ट ने कहा,

    “राज्य के पास कोई उपाय नहीं है। यदि बंदी समाज के लिए ऐसा ख़तरा है जैसा कि आरोप लगाया गया तो अभियोजन पक्ष को ज़मानत रद्द करने की मांग करनी चाहिए और/या हाईकोर्ट में अपील करनी चाहिए। हालांकि, वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए प्रिवेंटिव डिटेंशन कानून का सहारा लेना निश्चित रूप से उचित उपाय नहीं है।”

    तदनुसार, हाईकोर्ट ने डिटेंशन ऑर्डर रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को तत्काल रिहा किया जाए। इसके साथ ही रिट याचिका का निपटारा कर दिया गया।

    Case Title: Haridas Shankar Gaikwad v. Commissioner of Police, Solapur & Ors. [WRIT PETITION NO.3071 OF 2025]

    Next Story