खुला मांगना मुस्लिम महिला का पूर्ण अधिकार, पति की मंजूरी पर निर्भर नहीं: तेलंगाना हाईकोर्ट

Update: 2025-06-25 07:31 GMT

तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में यह स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिला को 'खुला' यानी तलाक मांगने का जो अधिकार प्राप्त है, वह पूर्ण (absolute) है। इसके लिए पति की सहमति आवश्यक नहीं है।

जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और जस्टिस बी.आर. मधुसूदन राव की खंडपीठ ने कहा,

"पत्नी को 'खुला' की मांग करने का जो अधिकार है, वह न तो किसी कारण पर आधारित होना आवश्यक है और न ही पति की स्वीकृति पर निर्भर है। न्यायालय की भूमिका केवल विवाह-विच्छेद को कानूनी रूप से मान्यता देना है, जिससे वह दोनों पक्षों पर बाध्यकारी हो सके।"

कोर्ट ने आगे कहा कि खुला सर्टिफिकेट (खुलानामा) के लिए मुफ्ती या दारुल-क़ज़ा से प्रमाण लेना अनिवार्य नहीं है, क्योंकि मुफ्ती की राय केवल परामर्शात्मक होती है। लेकिन जब यह निजी विवाद अदालत के समक्ष आता है तो न्यायिक फैसला आवश्यक हो जाता है।

इस मामले में पति ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें कोर्ट ने उसकी पूर्व पत्नी द्वारा 'खुला' के तहत विवाह-विच्छेद को वैध माना था। महिला ने 'सादा-ए-हक़ शरई काउंसिल' से तलाक प्रमाणपत्र प्राप्त किया था।

मामला

दोनों की शादी 2012 में हुई थी और पत्नी लगभग पांच वर्षों तक ससुराल में रही। उसने शारीरिक हिंसा के आरोप लगाए और फिर 'खुला' की मांग की, जिसे पति ने अस्वीकार कर दिया। इसके बाद पत्नी ने उक्त काउंसिल से संपर्क किया, जिसमें इस्लामी कानून के जानकार मुफ्ती, प्रोफेसर, इमाम शामिल थे। उन्होंने तीन बार पति को सुलह के लिए बुलाया, लेकिन पति ने काउंसिल की वैधता पर प्रश्न उठाते हुए उपस्थित होने से इनकार कर दिया।

इसके बाद काउंसिल ने 5 अक्टूबर 2020 को महिला को 'खुला' सर्टिफिकेट जारी कर दिया। पति ने इसे मानने से इनकार किया और फैमिली कोर्ट में चुनौती दी, जहां उसकी याचिका खारिज कर दी गई। इसी निर्णय के विरुद्ध वह हाईकोर्ट पहुंचा।

हाईकोर्ट का निष्कर्ष:

हाईकोर्ट ने माना कि 'खुला' तलाक, पति द्वारा 'तलाक' के समानांतर अधिकार है। दोनों ही बिना शर्त (Unconditional) हैं। कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए तथ्यों और निर्णय में कोई त्रुटि नहीं है और न ही अपीलकर्ता पति यह साबित कर सका कि काउंसिल द्वारा दिए गए खुलानामा में कोई कानूनी दोष है।

अंततः हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के निर्णय को सही ठहराते हुए पति की अपील खारिज कर दी।

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