तेलंगाना हाईकोर्ट ने खूंखार जर्मन शेफर्ड कुत्ते को हिरासत में लेने पर अंतरिम रोक लगाई
तेलंगाना हाईकोर्ट ने पशु चिकित्सा अनुभाग के उप निदेशक को SHO द्वारा जारी निर्देशों पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया, जिसमें 2 वर्षीय जर्मन शेफर्ड ज़ोरो को खूंखार होने के कारण हिरासत में लेने के लिए कहा गया था।
न्यायालय ने कहा :
"प्रतिवादी नंबर 3, पुलिस उपनिरीक्षक, पुंजागुट्टा पुलिस स्टेशन हैदराबाद के दिनांक 19.06.2024 के पत्र के अनुसार सभी आगे की कार्यवाही पर अंतरिम रोक रहेगी। बशर्ते कि याचिकाकर्ता के पालतू कुत्ते 'ज़ोरो' के साथ हर समय याचिकाकर्ता या उसके परिवार के सदस्य मौजूद रहें।"
कुत्ते के मालिक डॉ. लोकदीप शर्मा द्वारा दायर रिट याचिका में जस्टिस बी. विजयसेन रेड्डी ने यह आदेश पारित किया।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ज़ोरो अच्छी तरह से प्रशिक्षित, आज्ञाकारी, टीकाकृत और मिलनसार कुत्ता है जिसने पहले कभी किसी दूसरे को चोट नहीं पहुंचाई।
13 जून को जब याचिकाकर्ता अपने कुत्ते को सैर पर ले जा रहा था, ज़ोरो ने सड़क पर एक और पालतू कुत्ते को देखा उसका पट्टा तोड़ दिया और चंचल तरीके से उत्साहित होकर कुत्ते की ओर दौड़ा। याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि हालांकि बातचीत दोस्ताना थी लेकिन दूसरे कुत्ते के मालिक को चोटें आईं और उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
आईपीसी की धारा 289 के तहत एफआईआर दर्ज की गई। इसके बाद पीएस के SHO ने उप-निदेशक पशु चिकित्सा अनुभाग को पत्र संबोधित किया, जिसमें कुत्ते को उसके क्रूर होने के कारण हिरासत में लेने के लिए कहा गया।
इसके बाद कुछ सरकारी पशु चिकित्सक यह निर्धारित करने के लिए याचिकाकर्ता के घर गए कि क्या कुत्ता क्रूर था और निष्कर्ष निकाला कि कुत्ता दोस्ताना था। उक्त निष्कर्ष के बावजूद 24 तारीख को कुछ पुलिस अधिकारी ज़ोरो को हिरासत में लेने के प्रयास में याचिकाकर्ता के घर आए। कई असफल प्रयासों के बाद पुलिस अधिकारी कुत्ते को बिना पकड़े ही चले गए।
इस डर से कि अधिकारी ज़ोरो को फिर से अवैध रूप से जब्त करने का प्रयास करेंगे, याचिकाकर्ता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
प्रस्तुत तर्क:
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि धारा 289 के संरक्षण के तहत अधिकारी जानवर को हिरासत में नहीं ले सकते और धारा केवल मालिक पर दंड लगाती है।
यह भी तर्क दिया गया कि भारतीय पशु कल्याण बोर्ड द्वारा जारी पालतू कुत्ते के दिशानिर्देश, 2015 में यह प्रावधान है कि किसी भी परिस्थिति में किसी पालतू जानवर को छोड़ने की कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।
यह कहा गया कि 2015 के दिशानिर्देश उचित और अनुचित दावों तथा वैध और अवैध दावों के बीच भी अंतर करते हैं।
यह तर्क दिया गया:
“केवल व्यक्तिगत प्रतिशोध और निराधार आरोपों के आधार पर, क्रूरता या उपद्रव के उचित सबूत के बिना पालतू कुत्ते को उसके मालिकों से अलग करना संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है। इस तरह के अलगाव से याचिकाकर्ता और उनके परिवार तथा पालतू कुत्ते को गंभीर मानसिक परेशानी होगी।”
इस प्रकार, जानवर को हिरासत में लेने के निर्देश पर रोक लगा दी गई तथा मामले को 18-07-2024 तक के लिए स्थगित कर दिया गया।
केस टाइटल- डॉ. लोकदीप शर्मा बनाम तेलंगाना राज्य