क्या PMLA के तहत ट्रिब्यूनल में न्यायिक सदस्य होना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

Update: 2024-10-18 04:21 GMT

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने आदेश पारित किया। उक्त आदेश में निर्देश दिया गया कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत ट्रिब्यूनल में न्यायिक सदस्य होना चाहिए या नहीं, इस मुद्दे को उठाते हुए 6 मामलों को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) के समक्ष रखा जाए, ताकि उन्हें एक पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जा सके।

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने यह आदेश प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका में पारित किया, जिसमें सिक्किम हाईकोर्ट के उस आदेश की आलोचना की गई, जिसके तहत भारत संघ को एए में न्यायिक सदस्य की नियुक्ति के लिए कदम उठाने के निर्देश में संशोधन करने से इनकार किया गया।

यह इंगित किए जाने पर कि इसी तरह का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 5 अन्य मामलों में लंबित है, जस्टिस ओक और जस्टिस मसीह की खंडपीठ ने निम्नलिखित निर्देश दिए:

"हम रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश देते हैं कि वे इस एसएलपी को पांच अन्य मामलों के साथ सीजेआई के समक्ष रखें, जिससे इन मामलों को एक ही पीठ को सौंपा जा सके।"

केस टाइटल: संयुक्त निदेशक बनाम ईस्टर्न इंस्टीट्यूट फॉर इंटीग्रेटेड लर्निंग इन मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 265/2024

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