सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा में 2010 की सिविल जज भर्ती में दखल देने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पंजाब और हरियाणा में वर्ष 2010 के लिए सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की भर्ती को चुनौती देने वाली याचिका में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, यह कहते हुए कि अब 15 वर्ष बीत जाने के बाद इस मामले में कोई राहत नहीं दी जा सकती।
जस्टिस जे. के. महेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए हस्तक्षेप से इनकार किया,
“अब वर्ष 2025 में समय को पीछे नहीं मोड़ा जा सकता कि 15 वर्ष बाद न्यायिक अधिकारी की नियुक्ति की जाए या इस समय पर कोई आनुषंगिक राहत दी जाए।”
पीठ पंजाब सिविल सेवा (न्यायिक शाखा) हरियाणा संशोधन नियम 2010 की व्याख्या से संबंधित मुद्दे पर विचार कर रही थी, जो वर्ष 2010 के सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की भर्ती से जुड़ा था।
अदालत ने दो आधारों पर मामला निपटाया:
यह मामला हाल ही के फैसले डॉ. कविता कंबोज बनाम पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट व अन्य द्वारा कवर किया गया।
15 वर्षों का समय बीत चुका है और 2010 की भर्तियों के लिए अब नियुक्ति नहीं की जा सकती।
पहले आधार पर कोर्ट ने डॉ. कविता कंबोज केस पर भरोसा जताया जिसमें कोर्ट ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा तय किए गए मानदंड को सही ठहराया, कि जिला जज के पद पर पदोन्नति के लिए न्यायिक अधिकारियों को इंटरव्यू में कम से कम 50% अंक प्राप्त करने होंगे।
इस केस में 65% कोटा, जो हरियाणा सुपीरियर जुडिशियल सर्विस रूल्स, 2007 के तहत मेरिट-कम-सीनियॉरिटी के आधार पर पदोन्नति से संबंधित था, की वैधता पर विचार किया गया।
वर्तमान पीठ ने उपरोक्त फैसले का हवाला देते हुए कहा,
“उस निर्णय का सिद्धांत इस मामले पर भी पूरी तरह से लागू होता है और यहां का मुद्दा कुछ हद तक समान है।”
दूसरे आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब यह तय करना अनुचित होगा कि 2010 के लिए निर्धारित न्यायिक नियुक्तियां कैसे हों।
कोर्ट ने कहा,
“दूसरा कारण हस्तक्षेप से इनकार का यह है कि यह चयन वर्ष 2010 के सिविल जज पद के लिए था लेकिन अब वर्ष 2025 में 15 वर्षों बाद न्यायिक अधिकारी की नियुक्ति नहीं की जा सकती। इस समय पर कोई भी राहत देना संभव नहीं है।”
इन दोनों बिंदुओं के आधार पर कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया।
केस टाइटल: मुकेश कुमार एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य, मुख्य सचिव के माध्यम से व अन्य