सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के कारण एफआईआर रद्द करने की याचिका 'निरर्थक' बताते हुए खारिज करने का आदेश खारिज किया

Update: 2024-09-21 05:31 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस निर्णय की आलोचना की, जिसमें एफआईआर रद्द करने की मांग करने वाली याचिका केवल इसलिए "निरर्थक" घोषित की गई, क्योंकि याचिकाकर्ता को गिरफ्तार कर लिया गया था।

जस्टिस अभय ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने हाईकोर्ट का आदेश खारिज किया, जिसमें याचिका के गुण-दोष पर विचार किए बिना उसे खारिज कर दिया गया था।

अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

"हाईकोर्ट ने बहुत ही अजीब दृष्टिकोण अपनाया। प्रार्थना एफआईआर रद्द करने की थी। याचिका के गुण-दोष के आधार पर निर्णय करना हाईकोर्ट का कर्तव्य था।"

अपीलकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 226 और सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट में अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए याचिका दायर की।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7ए और आईपीसी की धारा 419 और 467 के तहत अपीलकर्ता की गिरफ्तारी की जानकारी मिलने के बाद इस आधार पर उसकी याचिका खारिज कर दी कि गिरफ्तारी के कारण याचिका निरर्थक हो गई। इसलिए उसने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वर्तमान एसएलपी दायर की।

सुनवाई के दौरान, जस्टिस अभय ओक ने टिप्पणी की,

"सिर्फ इसलिए कि उसे गिरफ्तार कर लिया गया, यह निरर्थक कैसे हो गया? प्रार्थना एफआईआर रद्द करने के लिए है। हम इसे वापस भेज देंगे। यह हाईकोर्ट का बहुत ही अजीब दृष्टिकोण है।"

कोर्ट ने निरस्तीकरण याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में बहाल कर दिया और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को 14 अक्टूबर, 2024 को सुनवाई के लिए बहाल याचिका सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की रिहाई की अनुमति देने वाला 9 अगस्त, 2024 का उसका अंतरिम आदेश तब तक लागू रहेगा, जब तक कि हाईकोर्ट बहाल याचिका पर निर्णय नहीं ले लेता।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस अंतरिम राहत से केवल अपीलकर्ता को ही लाभ होगा। मामले के गुण-दोष पर सभी प्रश्नों को विचार के लिए खुला छोड़ दिया गया।

केस टाइटल- विधु गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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