सुप्रीम कोर्ट ने वाहन बीमा के लिए पीयूसी सर्टिफिकेट अनिवार्य करने वाले 2017 के आदेश को संशोधित करने के लिए सुझाव मांगे
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने 2017 के आदेश पर फिर से विचार करने का इरादा व्यक्त किया, जिसमें तीसरे पक्ष के वाहन बीमा के लिए प्रदूषण नियंत्रण (पीयूसी) सर्टिफिकेट बनाया गया था। न्यायालय ने पीयूसी मानदंडों और तीसरे पक्ष के बीमा को संतुलित करने की आवश्यकता के संबंध में प्रथम दृष्टया टिप्पणी की।
न्यायालय ने 2017 के निर्देशों को प्रभावी ढंग से संशोधित करने के लिए इस मुद्दे का समाधान प्रस्तावित करने के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एमिक्स क्यूरी सीनियर एडवोकेट सिंह से सुझाव मांगे हैं।
जस्टिस एएस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ जनरल इंश्योरेंस काउंसिल द्वारा दायर आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 10 अगस्त, 2017 के न्यायालय के आदेश का अनुपालन न करने की चिंता व्यक्त की गई।
2017 के आदेश में कहा गया,
''यह स्पष्ट किया जाता है कि बीमा कंपनियां किसी वाहन का बीमा तब तक नहीं करेंगी, जब तक कि उसके पास बीमा पॉलिसी के नवीनीकरण की तारीख पर वैध पीयूसी सर्टिफिकेट न हो।''
उक्त आदेश के अनुसार, न्यायालय ने दर्ज किया कि वार्षिक वाहन बीमा को पीयूसी (प्रदूषण नियंत्रण में) सर्टिफिकेट के साथ जोड़कर 100% अनुपालन सुनिश्चित किया जाएगा। यह निर्देश दिल्ली एनसीआर में पीयूसी कार्यक्रम के मूल्यांकन पर पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) द्वारा दायर 73वीं रिपोर्ट के आलोक में दिया गया।
जनरल इंश्योरेंस काउंसिल की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (एसजी) ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले निर्देश के आलोक में 55% वाहनों ने गैर-अनुपालन किया है, जिन्होंने तीसरे पक्ष के बीमा के लिए साइन अप नहीं किया। इस प्रकार दुर्घटनाओं की स्थिति में दावेदारों को मुआवजा प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
उसी पर ध्यान देते हुए न्यायालय ने कहा कि पीयूसी मानदंडों के अनुपालन और तीसरे पक्ष के बीमा वाले वाहनों के बीच संतुलन सुनिश्चित करने के लिए बीच का रास्ता अपनाया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
"प्रथम दृष्टया, हमारा विचार है कि यह सुनिश्चित करते समय सही संतुलन बनाना होगा कि वाहन पीयूसी मानदंडों के अनुरूप रहें। लेकिन साथ ही सभी वाहनों के पास तीसरे पक्ष का बीमा होना चाहिए। हम एमिक्स क्यूरी और सॉलिसिटर जनरल को समाधान निकालने की अनुमति देते हैं, जिससे 10 अगस्त, 2017 के आदेश में उचित संशोधन किया जा सके।"
यह मामला अब 15 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाएगा।
केस टाइटल: एमसी मेहता बनाम भारत संघ एवं अन्य, डब्ल्यूपी(सी) नंबर 13029/1985