सुप्रीम कोर्ट ने 211 विदेशी नागरिकों के निर्वासन पर केंद्र और असम सरकार से जवाब मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और असम राज्य सरकार से जवाब मांगा कि असम के गोलपारा जिले के मटिया में ट्रांजिट कैंप में हिरासत में लिए गए 211 घोषित विदेशी नागरिकों को किस तरह से निर्वासित किया जाएगा।
न्यायालय ने 211 घोषित विदेशी नागरिकों, जिनमें से 66 बांग्लादेश से हैं, उनके संबंध में असम जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की रिपोर्ट पर असम सरकार से भी जवाब मांगा।
जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ असम में हिरासत केंद्रों की स्थिति से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। 26 जुलाई को इसने हिरासत केंद्रों की स्थिति को 'दयनीय' बताया। पीठ ने इसे 'दुखद स्थिति' बताया, क्योंकि वहां पर्याप्त पानी की आपूर्ति, उचित सफाई व्यवस्था, शौचालय आदि नहीं हैं।
ये टिप्पणियां असम विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा दायर रिपोर्ट पर आधारित थीं।
211 विदेशी नागरिकों के निर्वासन पर न्यायालय ने कहा कि विदेशी नागरिकों को निर्वासित करने के लिए संघ और असम राज्य को 'संयुक्त प्रयास' करना होगा। यह कदम केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा दायर हलफनामे के जवाब में उठाया गया, जिसमें कहा गया है कि निर्वासन का अधिकार राज्य सरकार को सौंप दिया गया।
गृह मंत्रालय ने 14 अगस्त को हलफनामा दायर किया, जिसके पैरा 5 में कहा गया:
"विदेशियों के निर्वासन, प्रत्यावर्तन का अधिकार केंद्र सरकार में निहित है, जिसके लिए [विदेशी अधिनियम] की धारा 3 के तहत आदेश दिए गए। केंद्र सरकार के अधिकार राज्य सरकार को सौंप दिए गए हैं।"
हलफनामा पढ़ते हुए जस्टिस ओक ने टिप्पणी की कि संघ ने पूरा भार राज्य पर डाल दिया। उन्होंने कहा कि अधिकार भले ही सौंप दिए गए हों, लेकिन यह दोनों पक्षों की जिम्मेदारी है। राज्य के वकील ने कहा कि असम सरकार इस संबंध में हलफनामा दायर करेगी।
उन्होंने कहा:
"राष्ट्रीयता स्थिति सत्यापन प्रपत्र 2019 के पत्र द्वारा विदेश मंत्रालय को पहले ही भेजे जा चुके हैं। सत्यापन रिपोर्ट अभी प्राप्त नहीं हुई है।"
वकील ने कहा कि राष्ट्रीयता सत्यापन के लिए भारत और बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के बीच कूटनीतिक बातचीत की आवश्यकता है, क्योंकि विदेशी नागरिक कथित तौर पर बांग्लादेश से हैं।
न्यायालय ने कहा कि मुद्दों पर आगे विचार करने के लिए रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर रखने की आवश्यकता है। इसलिए इसने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को समिति को रिपोर्ट रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया।
जस्टिस ओक ने कहा कि रिपोर्ट में इस बात का विशिष्ट विवरण दिया गया कि कितने घोषित विदेशी नागरिकों को निर्वासित किया जाना है।
न्यायालय ने कहा कि वह निर्देश जारी करेगा लेकिन केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार को घोषित विदेशी नागरिकों को निर्वासित करने के लिए एक साथ समन्वय करना होगा, जब तक कि कोई यह न कहे कि वे वापस नहीं जाना चाहते हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा:
"जब से सीएए-एनआरसी शुरू हुआ है, 10 साल बीत चुके हैं। अगर आप उनसे पूछें कि उन्होंने कितने लोगों को निर्वासित किया तो कुछ साल पहले दायर हलफनामे में 2 लाख में से छह लोग थे।"
जस्टिस ओक ने कहा कि रिपोर्ट में कहा गया कि कुछ विदेशी नागरिक अपने गृह राज्य वापस नहीं जाना चाहते हैं।
इस पर गोंजाल्विस ने जवाब दिया:
"उनमें से ज़्यादातर वापस नहीं जाना चाहते हैं। उनमें से कई ने विदेशी न्यायाधिकरण के आदेशों का विरोध किया है, जो एकतरफा हैं।"
जस्टिस ओक ने टिप्पणी की कि बांग्लादेश के वे विदेशी नागरिक वापस जाने के लिए बहुत इच्छुक हैं।
गोंजाल्विस ने कहा,
"शायद मुट्ठी भर लोग वापस जाएंगे। विदेशी नागरिक घोषित किए गए लोगों की संख्या 9 लाख है।"
संघ की ओर से एएसजी केएम नटराज ने कहा कि सभी विदेशी नागरिकों को भारत से निर्वासित किया जाएगा।
उन्होंने कहा:
"ऐसे सभी अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करना होगा।"
जस्टिस ओक और जस्टिस भुयान की पीठ ने 16 मई को 17 विदेशी नागरिकों को तत्काल निर्वासित करने का आदेश दिया, जिनमें से 4 को 7 साल से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया था।
केस टाइटल: राजुबाला दास बनाम यूओआई और अन्य, डब्ल्यूपी (सीआरएल) नंबर 234/2020