सुप्रीम कोर्ट में माओवादियों को फंडिंग करने के आरोपी की जमानत को दी गई NIA की चुनौती खारिज

Update: 2024-05-10 06:12 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा, जिसमें निर्माण फर्म के भागीदार को जमानत दी गई। उक्त व्यवसायी पर प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) को कथित रूप से वित्त पोषण करने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA Act) के तहत मामला दर्ज किया था।

जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने कहा कि आरोपी को जमानत देने के हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। हालांकि, अभियोजन पक्ष (NIA) को यह छूट दी गई कि यदि आरोपी द्वारा जमानत शर्तों का दुरुपयोग किया जाता है तो वह उसकी जमानत रद्द करने की मांग कर सकता है।

पिछले साल, NIA ने UAPA Act के तहत फर्म और उसके विभिन्न भागीदारों से संबंधित 152 बैंक अकाउंट्स की विशेष सावधि जमा रसीदें और 20 करोड़ रुपये से अधिक के म्यूचुअल फंड खाते को जब्त कर लिया था।

NIA द्वारा यह आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता/मृत्युंजय कुमार सिंह उर्फ सोनू सिंह की शीर्ष सीपीआई (माओवादी) कैडरों के साथ घनिष्ठ सांठगांठ है और उसने माओवादी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए सीपीआई (माओवादी) को नकदी मुहैया कराई।

NIA द्वारा यह भी आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता ने आतंकवादी संगठन के अवैध धन को फर्म के अकाउंट से अन्य व्यक्तियों के कई अकाउंट में स्थानांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे धन के मूल स्रोत को छिपाने के लिए कई स्रोत बनाए गए।

हालांकि, अपीलकर्ता द्वारा अपीलकर्ता के घर से भारी मात्रा में धन की बरामदगी के संबंध में स्पष्टीकरण प्रदान किया गया। अपीलकर्ता ने कहा कि वह सड़क निर्माण कंपनी चलाता है और व्यवसाय में पूंजी लगाने से यह निष्कर्ष नहीं निकलेगा कि अपीलकर्ता द्वारा आतंकी फंड का उपयोग किया जा रहा था।

हाईकोर्ट ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद अपीलकर्ता को जमानत दे दी कि अपीलकर्ता के खिलाफ UAPA Act की धारा 43-डी (5) के तहत प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता।

केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मृत्युंजय कुमार सिंह @मृत्युंजय @सोनू सिंह, डायरी नंबर 27308-2023

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