सुप्रीम कोर्ट ने जलगांव मस्जिद विवाद पर अपने आदेश को संशोधित करने से किया इनकार

Update: 2024-08-30 12:15 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल का अपना आदेश संशोधित करने से इनकार किया, जिसमें उसने निर्देश दिया था कि जलगांव के एरंडोल तालुका में मस्जिद की चाबियां नगर परिषद के पास रहेंगी।

हालांकि, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने की छूट दी।

जस्टिस कांत ने सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत (आवेदक-मस्जिद समिति के लिए) से कहा कि आदेश पक्षों की मौजूदगी में पारित किया गया था। जब कामत ने कहा कि इस आदेश के कारण नई घटनाएं होने लगी हैं, तो जस्टिस कांत ने कहा, “उन घटनाओं को चुनौती दें।”

इसके बाद कामत ने जोर देकर कहा कि आदेश में केवल एक शब्द की कठिनाई थी।

जस्टिस कांत ने इस पर कहा,

“हम 'मंदिर या अन्य मंदिर' कह रहे थे। अब इन शब्दों का इस्तेमाल आपके वकील की मौजूदगी में तीन बार किया गया।”

हालांकि, कामत ने जवाब दिया कि इस बात का कोई वैधानिक सबूत नहीं है कि वहां मंदिर है।

कहा गया,

“अगर कोई वैधानिक सबूत नहीं है तो हमें इस बारे में बताया जाना चाहिए था। हाईकोर्ट के आदेश में यह मौजूद था और हमारे आदेश में भी वकील की मौजूदगी में इसका उल्लेख किया गया।”

आखिरकार, कामत ने कहा कि वह पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे।

इसे देखते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया गया:

“आवेदक के वकील ने समीक्षा आवेदन दाखिल करने की स्वतंत्रता के साथ विविध आवेदन वापस लेने की मांग की है और उन्हें इसकी अनुमति है।”

आक्षेपित आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया कि नगर परिषद सुबह नमाज शुरू होने से पहले और सभी नमाज अदा होने तक गेट खोलने के लिए अधिकारी को नियुक्त करेगी। इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि मस्जिद परिसर अगले आदेश तक वक्फ बोर्ड या याचिकाकर्ता के नियंत्रण में होना चाहिए।

मामले की पृष्ठभूमि

कलेक्टर ने अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें लोगों को उक्त मस्जिद में नमाज अदा करने से रोक दिया गया था। जुम्मा मस्जिद ट्रस्ट समिति को मस्जिद की चाबियां एरंडोल नगर परिषद के मुख्य अधिकारी को सौंपने का निर्देश दिया था।

यह आदेश हिंदू समूह पांडववाड़ा संघर्ष समिति (PSS) द्वारा दायर की गई शिकायत की पृष्ठभूमि में आया था, जिसमें दावा किया गया कि विचाराधीन मस्जिद एक मंदिर है और स्थानीय मुस्लिम समुदाय पर अतिक्रमण का आरोप लगाया गया।

याचिकाकर्ता ट्रस्ट ने कलेक्टर के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने शुरू में इस आदेश पर रोक लगा दी। प्रथम दृष्टया पाया कि कलेक्टर ने शांति भंग होने की संभावना से संतुष्ट हुए बिना यह आदेश पारित किया। हालांकि, हाईकोर्ट ने अंततः समिति की याचिका को निरर्थक बताते हुए खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को परिषद को चाबियां सौंपने का निर्देश दिया।

हाईकोर्ट ने ओसेफ मथाई एवं अन्य बनाम एम. अब्दुल खादिर (2002) 1 एससीसी 31 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा करते हुए कहा कि स्थगन प्रदान करना स्वतः ही वैधानिक संरक्षण के विस्तार के बराबर नहीं है।

यही वह आदेश था, जिसे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी।

नोटिस जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने (10 अप्रैल को) इन चाबियों को लौटाने पर रोक लगा दी थी।

हालांकि, 19 अप्रैल के आदेश में खंडपीठ ने अपने पहले के आदेश को स्पष्ट किया और कहा:

“पूरे परिसर के मुख्य प्रवेश द्वार की चाबी नगर परिषद के पास रहेगी। मस्जिद परिसर के संबंध में यथास्थिति रहेगी। यह अगले आदेश तक वक्फ बोर्ड या याचिकाकर्ता समाज के नियंत्रण में रहेगा। मंदिरों या स्मारकों में प्रवेश और निकास सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त होगा और विभिन्न धर्मों के लोगों को बिना किसी व्यवधान के आने-जाने की अनुमति होगी। (पीछे की तरफ) गेट की चाबी भी परिषद के पास रहेगी और परिषद का यह कर्तव्य होगा कि वह सुबह नमाज शुरू होने से पहले और दिन में सभी नमाज अदा होने तक गेट खोलने के लिए अधिकारी को नियुक्त करे।

हालांकि, पक्षकारों द्वारा किसी भी तरह का कोई अतिक्रमण नहीं किया जाएगा।

केस टाइटल: जुम्मा मस्जिद ट्रस्ट कमेटी बनाम महाराष्ट्र राज्य, डायरी नंबर- 16176 - 2024

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