सुप्रीम कोर्ट ने Congress कार्यकर्ता की हत्या की CBI जांच खारिज करने के फैसले में हस्तक्षेप करने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फरवरी 2018 में केरल में युवा कांग्रेस (Congress) कार्यकर्ता शुहैब की हत्या की केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से जांच कराने की मांग वाली याचिका खारिज की।
कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसने शुहैब की हत्या की CBI जांच के लिए एकल पीठ के निर्देश को खारिज कर दिया था।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने शुहैब के माता-पिता सीपी मोहम्मद और एसपी रजिया द्वारा केरल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका खारिज की। हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि मुकदमे के दौरान किसी अन्य आरोपी की भूमिका सामने आती है तो पक्ष कानून के अनुसार कदम उठाने के लिए स्वतंत्र होंगे। पीठ ने कहा कि राज्य पुलिस ने पहले ही कई लोगों को आरोपी बनाते हुए आरोपपत्र दाखिल कर दिया है। इस समय मामले में हस्तक्षेप करना अविवेकपूर्ण होगा।
मार्च 2018 में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने CBI को इस मामले की जांच करने का आदेश दिया था, जो कथित तौर पर केरल राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से जुड़े सदस्यों के इशारे पर की गई राजनीतिक हत्या है। हालांकि, कुछ महीने बाद अगस्त 2018 में खंडपीठ ने एकल पीठ का निर्देश खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे यह माना जा सके कि राज्य पुलिस की जांच पक्षपातपूर्ण थी।
अपीलकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सीनियर एडवोकेट वी गिरी ने पीठ द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए बताया कि अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी गई। राज्य की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट जयदीप गुप्ता ने कहा कि हालांकि आरोपपत्र दाखिल किया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान मामले के लंबित होने के कारण मुकदमा आगे नहीं बढ़ पाया।
जस्टिस गवई ने कहा,
"2018 में यह घटना हुई थी। अगर हम एकल पीठ के आदेश को बहाल करते हैं तो इतने सालों बाद अब क्या होगा? ऐसा नहीं है कि इसमें कई आरोपी शामिल पाए गए हैं। उनमें से कुछ राजनीतिक पदाधिकारी हैं। 160 सीडीआर की जांच की गई है। "
गिरी ने कहा,
"आशंका यह है कि जो लोग राजनीतिक दल के शीर्ष पर हैं, उन पर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा। इसमें राजनीतिक रंग है। राज्य के उस हिस्से में यह पहली घटना नहीं है। एक समय में यह नियमित रूप से होता था, आजकल इसमें कुछ कमी आई है। जब माता-पिता कहते हैं कि ऐसी परिस्थितियां हैं, जो यह संकेत देती हैं कि यह पार्टी के शीर्ष पदाधिकारियों के इशारे पर हुआ है, तो राज्य की जांच एजेंसी उस सवाल में जाने से हिचकेगी।"
जस्टिस गवई ने कहा,
"इस चरण में कोई भी हस्तक्षेप मामले के लिए हानिकारक होगा। जांच पूरी हो चुकी है। बहुत से आरोपी हैं। ऐसा नहीं है कि उन्होंने क्लीन चिट दी। बहुत से आरोपी राजनीतिक पदाधिकारी भी हैं।"
आगे कहा गया,
"जिम्मेदार लोगों को आरोपी नहीं बनाया गया और जो जिम्मेदार नहीं हैं, उन्हें आरोपी बनाया गया। तो मुकदमा किस दिशा में जाएगा? माता-पिता की आशंका वास्तविक है। एक राजनीतिक जुलूस निकाला गया था कि शुहैब को खत्म कर दिया जाएगा। माता-पिता के अनुसार, जो लोग वास्तव में जिम्मेदार हैं, उन्हें आरोपी नहीं गया। हम कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं।"
जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि यदि मुकदमे के दौरान माता-पिता अन्य आरोपियों की संलिप्तता के बारे में गवाही देते हैं तो उन्हें बुलाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के तहत कदम उठाए जा सकते हैं।
जस्टिस विश्वनाथन ने कहा,
"एक बार जब वे बॉक्स में आ जाते हैं और अन्य आरोपियों की संलिप्तता के बारे में बात करते हैं तो अन्य आरोपियों के खिलाफ धारा 319 लगाई जा सकती है।"
गिरि ने अनुरोध किया कि उक्त अधिकार को संरक्षित रखा जाए।
इसके बाद पीठ ने निम्नलिखित आदेश सुनाया:
"हम विवादित आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। किसी भी मामले में यदि मुकदमे के दौरान किसी अन्य आरोपी की भूमिका सामने आती है तो पक्ष हमेशा कानून के तहत अनुमेय कदम उठाने के लिए स्वतंत्र हैं।"
केस टाइटल: सी.पी. मोहम्मद बनाम केरल राज्य | एसएलपी (सीआरएल) नंबर 10308/2019