सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर LG को विधानसभा में सदस्यों को नामित करने से रोकने की याचिका पर विचार करने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल (LG) द्वारा जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 5 सदस्यों को नामित करने के प्रस्तावित कदम के खिलाफ याचिका पर विचार करने से इनकार कfया। हालांकि, याचिकाकर्ता को उचित राहत के लिए हाईकोर्ट जाने की छूट दी गई।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने कहा,
"हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत मौजूदा याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। याचिकाकर्ता को भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका के माध्यम से क्षेत्राधिकार वाले हाईकोर्ट जाने की छूट देते हैं। हम स्पष्ट करते हैं कि हमने गुण-दोष के आधार पर कोई राय व्यक्त नहीं की है।"
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के अनुसार, जम्मू-कश्मीर संभागों के लिए 90 सीटें आरक्षित हैं। 5 सीटें ऐसी हैं, जिन पर उपराज्यपाल विधायकों को नामित कर सकते हैं।
हाल ही में जम्मू-कश्मीर में 90 सीटों के लिए हुए चुनावों में एनसी-कांग्रेस गठबंधन ने 48 सीटें जीतीं।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता-रवींद्र कुमार शर्मा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा,
“यह बुनियादी ढांचे का मुद्दा है। जब आपके पास 90 से अधिक नामांकन की यह प्रणाली होती है तो क्या होता है। 48 सीटे मेरे गठबंधन के पास हैं। यह बहुमत से तीन अधिक है। अन्य सभी का कुल योग 42 है। यदि आप पाँच नामांकन करते हैं (और यह पहले केवल 2 था। आप कश्मीर के मूल राज्य का दर्जा लेने के बाद संशोधनों द्वारा उस 2 को बढ़ाते हैं) तो आप 47 हो जाते हैं और मैं 48 हो जाता हूं। आपको केवल एक और व्यक्ति को लाना है। फिर आप निर्वाचित जनादेश को नकार सकते हैं। संख्याओं के चुनावी फैसले को नकारा जा सकता है। केंद्र सरकार के नामांकन का मतलब है कि चुनाव जीतने वाले व्यक्ति को नकारा जा सकता है। यह 90 से बाहर है! मान लीजिए कि संशोधन के माध्यम से कल ये पाँच दस हो जाते हैं?”
सिंघवी की बात सुनने के बाद जस्टिस खन्ना ने कहा कि जिस शक्ति पर आपत्ति जताई गई, उसका अभी तक प्रयोग नहीं किया गया। पहले हाई कोर्ट जाना चाहिए, क्योंकि कई बार सुप्रीम कोर्ट ने सीधे फैसला सुनाया है, लेकिन कुछ मुद्दे छोड़ दिए गए हैं।
जज ने आश्वासन दिया,
"अगर वे कुछ करते हैं, अगर हाई कोर्ट आपको स्थगन नहीं देता है तो आप यहां आ सकते हैं।"
इस मामले को कोर्ट से अलग करने से पहले सिंघवी ने जोर देकर कहा कि आदेश में एक लाइन जोड़ी जानी चाहिए, जिससे अगर हाईकोर्ट द्वारा मामले पर फैसला सुनाने में देरी होती है तो याचिकाकर्ता फिर से संपर्क कर सके।
उन्होंने कहा,
"कोई फैसला न होना एक फैसला है। आप कल नामांकन करें, आप 47 पर हैं।"
हालांकि आदेश में इस तरह की कोई बात दर्ज नहीं की गई, लेकिन जस्टिस खन्ना ने मौखिक रूप से कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए।
केस टाइटल: रविंदर कुमार शर्मा बनाम जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल और अन्य, डायरी नंबर 46862-2024