सुप्रीम कोर्ट ने KSAT में रिक्त पदों को भरने की याचिका पर सुनवाई से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण (KSAT) में सदस्यों के रिक्त पदों को भरने के लिए केंद्र और कर्नाटक सरकार को निर्देश देने की मांग वाली रिट याचिका पर विचार करने से इनकार किया।
याचिकाकर्ताओं द्वारा वापस ली गई याचिका खारिज करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता वेकेशन बेंच ने याचिकाकर्ताओं को उचित राहत के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट जाने की स्वतंत्रता प्रदान की।
याचिकाकर्ता कर्नाटक हाईकोर्ट में वकील हैं। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत जनहित याचिका दायर की, जिसमें न्यायिक सदस्यों की सेवानिवृत्ति और समय पर रिक्तियों को दाखिल न करने के कारण KSAT के निष्क्रिय हो जाने के परिणामों पर प्रकाश डाला गया।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि चार न्यायिक सदस्यों के स्वीकृत पदों में से केवल दो सदस्य ही कार्यरत हैं, जिसमें से एक सदस्य 16.06.2024 को रिटायर हो गया। दूसरा सदस्य वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित दिनांक 10.10.2022 के आदेश के अनुसार अपनी सेवा अवधि से आगे भी कार्यरत है।
याचिकाकर्ता ने उन लोगों की दुर्दशा को भी शामिल किया, जो रिक्त पदों को न भरने के कारण अत्यधिक कठिनाई, पीड़ा और नुकसान में हैं, क्योंकि पेंशन, अनुकंपा नियुक्ति, सेवा से बर्खास्तगी, चयन, नियुक्ति आदि से संबंधित बड़ी संख्या में मामले केएसएटी की विभिन्न पीठों में लंबित हैं।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया,
“कई वादियों की मुकदमे के लंबित रहने के दौरान ही मृत्यु हो गई और वे उस अधिकार से वंचित हो गए, जिसके वे हकदार हैं। ऐसे उदाहरण कम नहीं हैं, जहां वादियों ने अंतहीन प्रतीक्षा के कारण अपने दावे को छोड़ दिया, जिसका वे सही दावा करते हैं। इसलिए यदि रिक्तियों को समय पर नहीं भरा जाता है तो कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण की स्थापना का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।”
प्रतिवादियों को रिक्त पदों को भरने के लिए निर्देश देने की मांग करने के अलावा, याचिकाकर्ताओं ने KSAT, बेंगलुरु में भविष्य में रिक्तियों की घटना की निगरानी करने और ऐसी रिक्तियों की घटना की तारीख से कम से कम 6 महीने पहले चयन प्रक्रिया शुरू करने के लिए विशेष समिति का गठन करने का निर्देश भी मांगा, जिससे रिक्तियों के दिन ही ऐसी रिक्तियों पर नियुक्तियां की जा सकें और ऐसी अन्य राहतें मिल सकें।
हालांकि, अदालत प्रतिवादियों को नोटिस जारी करने के लिए इच्छुक नहीं थी। इसके बजाय याचिकाकर्ताओं को उचित कार्यवाही के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा।
केस टाइटल: नरसिम्हाराजू और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य।