सुप्रीम कोर्ट ने बिशप जॉनसन स्कूल एंड कॉलेज, प्रयागराज के प्रिंसिपल के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द किया, शिकायत को 'दुर्भावनापूर्ण' बताया

Update: 2024-01-25 05:46 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने (24 जनवरी को) बिशप जॉनसन स्कूल एंड कॉलेज, प्रयागराज के प्रिंसिपल डॉ. विशाल नोबल सिंह के खिलाफ कथित जालसाजी और धोखाधड़ी पर आपराधिक मामला रद्द किया।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा कि एफआईआर और आरोपपत्र की सामग्री को पढ़ने पर अपीलकर्ता के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता।

अदालत ने कहा कि कोई भी अपराध नहीं किया गया और आरोप गलत इरादे से लगाए गए। तदनुसार, न्यायालय ने एफआईआर, आरोप पत्र और सभी परिणामी कार्यवाही रद्द कर दी।

शिकायत के अनुसार, अपीलकर्ताओं ने बिशप जॉनसन स्कूल एंड कॉलेज (बीजेएस) संबद्धता दस्तावेजों में जालसाजी करके स्टूडेंट के माता-पिता को धोखा दिया और बीजेएस की गर्ल्स विंग के लिए इसका इस्तेमाल किया। प्रासंगिक रूप से, आईपीसी के कई प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें आपराधिक विश्वासघात, धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश शामिल है।

हालांकि, अपीलकर्ता का रुख यह है कि बीजेएस की गर्ल्स विंग बीजेएस के सेक्शन के रूप में शुरू हुई थी, न कि नए स्कूल के रूप में। ऐसा ही सोसाइटी, डायोसीज़ एजुकेशन बोर्ड ऑफ़ डायोसीज़ ऑफ़ लखनऊ (डीईबी) की मंजूरी पर किया गया, जो बीजेएस का प्रबंध निकाय है।

इसके अलावा, गर्ल्स विंग के लिए बीजेएस के सीआईएससीई (काउंसिल फॉर इंडिया स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन) संबद्धता दस्तावेज की कथित जालसाजी के संबंध में कोई जाली दस्तावेज सामने नहीं रखा गया।

इस मामले में शामिल अपीलकर्ताओं में से एक सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज (पूर्व में इलाहाबाद कृषि संस्थान) के निदेशक विनोद बिहारी लाल थे। लाल कथित सामूहिक धर्म परिवर्तन के अन्य मामले में भी उलझे हुए हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम सुरक्षा प्रदान की है।

पक्षकारों की संक्षिप्त प्रस्तुतियां

अपीलकर्ताओं की ओर से उपस्थित सीनियर वकीलों ने प्रस्तुत किया कि कथित अपराधों के लिए कोई भी सामग्री लागू नहीं होगी। इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि आरोप पत्र एफआईआर की प्रतिकृति के अलावा और कुछ नहीं है। यहां तक कि उक्त दस्तावेजों को संयुक्त रूप से पढ़ने पर भी अपीलकर्ताओं के खिलाफ कोई अपराध नहीं किया गया।

यह प्रस्तुत किया गया कि यह ऐसा मामला है, जहां पूरी तरह से पूर्वाग्रह के कारण और दुर्भावनापूर्ण इरादे से अपीलकर्ताओं के खिलाफ शिकायतें दर्ज की गईं।

हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल 1992 एससीसी सप्ल (1) 335 पर भी भरोसा रखा गया। उसमें न्यायालय ने उन मामलों की श्रेणियों को सूचीबद्ध किया जहां हाईकोर्ट शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 द्वारा निहित अपनी अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

इनमें शामिल हैं:

“(सी) जहां एफआईआर या शिकायत में लगाए गए निर्विवाद आरोप और उसके समर्थन में एकत्र किए गए सबूत किसी अपराध के घटित होने का खुलासा नहीं करते हैं और आरोपी के खिलाफ मामला बनाते हैं; छ) जहां किसी आपराधिक कार्यवाही में स्पष्ट रूप से दुर्भावना के साथ भाग लिया जाता है और/या जहां कार्यवाही दुर्भावनापूर्ण रूप से आरोपी पर प्रतिशोध लेने और निजी और व्यक्तिगत द्वेष के कारण उसे परेशान करने की दृष्टि से शुरू की जाती है।

इसके विपरीत, प्रतिवादी राज्य के सीनियर वकील ने हाईकोर्ट के आक्षेपित आदेश का समर्थन किया, जिसके तहत उसने अपीलकर्ताओं के खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार कर दिया। वकील ने दलील दी कि स्कूल एक स्वतंत्र स्कूल के रूप में मान्यता या संबद्धता के बिना चलाया जा रहा है।

कोर्ट का आदेश

सुनवाई के दौरान, अदालत ने यह भी कहा कि दूसरा प्रतिवादी (शिकायतकर्ता), हालांकि तामील हो चुका है, उपस्थित नहीं हुआ है। परिणामस्वरूप, न्यायालय ने मौखिक रूप से आदेश सुनाया। अदालत ने दलीलों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया और पाया कि कोई भी अपराध नहीं बनता। इसके अलावा, कोर्ट ने उस मंशा पर भी सवाल उठाया जिसके साथ एफआईआर दर्ज की गई।

कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ गलत इरादे से आरोप लगाया गया। न्यायालय ने कहा कि भजन लाल का मामला पूरी तरह से इस मामले के तथ्यों पर लागू होगा।

कोर्ट ने कहा,

“…हमने आगे दी गई दलीलों पर अपना चिंतित (विचार) दिया है… एफआईआर के अवलोकन पर… यह ध्यान दिया गया कि दूसरे प्रतिवादी ने आईपीसी की धारा 406, 419, 420, 467, 468, 471 और धआरा 120बी का इस्तेमाल करते हुए शिकायत दर्ज की गई। एफआईआर की सामग्री के साथ ही आरोप पत्र को उपरोक्त धाराओं में उल्लिखित सामग्री और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के प्रकाश में पढ़ा जाना चाहिए। इसे पढ़ने पर हम पाते हैं कि यहां अपीलकर्ताओं के खिलाफ कथित कोई भी अपराध नहीं बनता। वास्तव में, हमने पाया कि यहां अपीलकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक इरादे और अन्य आरोप दुर्भावनापूर्ण इरादे से लगाए गए हैं। इसलिए भजन लाल के मामले में इस न्यायालय का निर्णय... इस मामले के तथ्यों पर बिल्कुल लागू होता है। इन परिस्थितियों में एचसी के आक्षेपित आदेश रद्द किया जाता है। परिणामस्वरूप एफआईआर, आरोप पत्र और सभी परिणामी कार्यवाही को रद्द कर दिया जाता है…।”

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए सीनियर वकील वी. गिरी, कविन गुलाटी और सिद्धार्थ दवे हैं। उनकी सहायता वकील अरुण डेनियल सॉन्डर्स, गौरव अग्रवाल, सृष्टि गुप्ता, हर्षेद सुंदर, रंजीत बिसेन, कुमार विक्रांत, मोनिशा हांडा, राजुल श्रीवास्तव, अनुभव शर्मा, स्थवि अस्थाना ने की। एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड शशांक सिंह और मोहित डी. राम रहे।

राज्य की ओर से सीनियर एडवोकेट अर्धेंधुमौली कुमार प्रसाद रहे।

केस टाइटल: विशाल नोबल सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य। (एसएलपी(सीआरएल) नंबर 2389/2023) और विनोद बिहारी लाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य। (एसएलपी(सीआरएल) नंबर 3337/2023)

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