संपत्ति खरीदना कठिन: सुप्रीम कोर्ट ने भूमि रजिस्ट्रेशन में ब्लॉकचेन तकनीक अपनाने का सुझाव दिया
सुप्रीम कोर्ट ने भारत की भूमि पंजीकरण और स्वामित्व प्रणाली में व्यापक सुधार की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा है कि देश का मौजूदा ढांचा अब भी औपनिवेशिक कानूनों — ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882, इंडियन स्टैम्प एक्ट, 1899 और रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 — पर आधारित है, जिसने भ्रम, भ्रष्टाचार, देरी और मुकदमों की भरमार पैदा की है।
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि रजिस्ट्रेशन एक्ट केवल दस्तावेज़ का पंजीकरण करता है, स्वामित्व की गारंटी नहीं देता, जिसके कारण संपत्ति खरीदना आम नागरिक के लिए एक कठिन और “ट्रॉमैटिक” अनुभव बन गया है। अदालत ने बताया कि देश के लगभग 66% सिविल मुकदमे भूमि विवादों से जुड़े हैं और वर्तमान “अनुमानित स्वामित्व प्रणाली” (presumptive title system) ने जनता का भरोसा कमजोर किया है।
कोर्ट ने फर्जी दस्तावेज़ों, भूमि अतिक्रमण, बिचौलियों की भूमिका और राज्यों में बिखरे नियमों को इस अव्यवस्था का कारण बताया। डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड्स मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम (DILRMP) और नेशनल जेनेरिक डॉक्युमेंट रजिस्ट्रेशन सिस्टम (NGDRS) जैसी पहल की सराहना करते हुए भी अदालत ने कहा कि केवल डिजिटलीकरण से समस्या हल नहीं होगी, क्योंकि यदि मूल रिकॉर्ड गलत हैं तो उनका डिजिटल रूप भी त्रुटिपूर्ण रहेगा।
अदालत ने ब्लॉकचेन तकनीक को भूमि पंजीकरण में पारदर्शिता, सुरक्षा और अपरिवर्तनीयता लाने वाला एक क्रांतिकारी विकल्प बताया, जो फर्जीवाड़े को रोक सकता है और स्वामित्व प्रणाली में भरोसा बढ़ा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह राज्यों की भागीदारी से एक राष्ट्रीय पहल शुरू करे और संबंधित कानूनों — जैसे ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, रजिस्ट्रेशन एक्ट, इंडियन स्टैम्प एक्ट, एविडेंस एक्ट, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और डेटा प्रोटेक्शन एक्ट — में सुधार कर एक तकनीक-सक्षम, निश्चित स्वामित्व प्रणाली (conclusive title system) विकसित करे।
अदालत ने विधि आयोग (Law Commission) को इस विषय पर विस्तृत अध्ययन करने और सुधार संबंधी सिफारिशें प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। अंत में कोर्ट ने बिहार रजिस्ट्रेशन नियम, 2008 के नियम 19 को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि यह रजिस्ट्रेशन एक्ट की भावना के विपरीत है। अदालत ने कहा, “हमें नए विकल्पों की कल्पना करने का साहस करना चाहिए,” और भारत को अपने औपनिवेशिक अनुमानित स्वामित्व ढांचे से आगे बढ़कर एक तकनीकी रूप से मजबूत और पारदर्शी संपत्ति पंजीकरण व्यवस्था की ओर बढ़ने का आह्वान किया।