पहले हाईकोर्ट जाओ : MBBS स्टूडेंट की एडमिशन टर्मिनेशन के खिलाफ याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने MBBS स्टूडेंट की उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें उसने बिना किसी नोटिस या सुनवाई के एडमिशन रद्द किए जाने को चुनौती दी थी।
जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए याचिका को स्वेच्छा से वापस लेने की अनुमति दी। स्टूडेंट को संबंधित हाईकोर्ट में जाने की छूट दी।
स्टूडेंट ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर 2024-2029 सत्र के लिए MBBS कोर्स में पुनः प्रवेश (Re-Admission) की मांग की थी। साथ ही यह भी घोषणा चाही थी कि बिना कोई नोटिस या सुनवाई के प्रवेश रद्द करना गैर-कानूनी है।
स्टूडेंट ने मेडिकल कॉलेजों में अनुशासनात्मक मामलों में समान और पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश तय करने की मांग भी की।
सुनवाई के दौरान जब खंडपीठ ने पूछा कि याचिकाकर्ता पहले हाईकोर्ट क्यों नहीं गया तो वकील ने जवाब दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अन्य MBBS स्टूडेंट की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें इसी तरह के मामले में अंतरिम संरक्षण वापस लेने को चुनौती दी गई। उन्होंने यह भी बताया कि इस मुद्दे से जुड़ी एक ट्रांसफर याचिका 14 जुलाई को सूचीबद्ध है।
रिकॉर्ड देखने के बाद खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि पहले के आदेश केवल अंतरिम प्रकृति के हैं और मामले के गुण-दोषों (merits) पर नहीं हैं।
जस्टिस बिंदल ने कहा,
"हम सीधे यहां दाखिल रिट याचिका पर सुनवाई नहीं करेंगे।"
इसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने और हाईकोर्ट में जाने की अनुमति मांगी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
केस टाइटल: हर्षित अग्रवाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य, वाद संख्या W.P.(C) No. 609/2025