सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के मुख्य सचिव को एक्टिंग DGP की नियुक्ति के खिलाफ अवमानना ​​याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2024-09-09 04:22 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर को झारखंड राज्य के मुख्य सचिव से उस अवमानना ​​याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें आईपीएस अनुराग गुप्ता की एक्टिंग पुलिस महानिदेशक (DGP) के रूप में नियुक्ति को प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ मामले में दिए गए फैसले का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने अवमानना ​​याचिका पर नोटिस जारी किया। साथ ही राज्य के मुख्य सचिव के साथ-साथ एक्टिंग DGP से दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा। हालांकि कोर्ट ने प्रतिवादियों की शारीरिक उपस्थिति की आवश्यकता को समाप्त कर दिया।

बेंच ने कहा,

“पहले और दूसरे प्रतिवादियों को नोटिस जारी करें, जिसका जवाब दो सप्ताह में दिया जाए। कथित प्रतिवादी-अवमाननाकर्ताओं की व्यक्तिगत उपस्थिति को फिलहाल समाप्त किया जाता है।”

सीनियर एडवोकेट माधवी दीवान द्वारा प्रस्तुत याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि झारखंड के मुख्य सचिव (प्रतिवादी नंबर 1) लालबियाक्तलुआंगा खियांगते आईएएस और आईपीएस अनुराग गुप्ता (प्रतिवादी नंबर 2) को प्रकाश सिंह निर्णय और जुलाई 2018 और मार्च 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के साथ-साथ 16 जनवरी, 2023 के हालिया आदेश का पालन न करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए।

याचिका में कहा गया कि 25 जुलाई की अधिसूचना के माध्यम से गुप्ता की एक्टिंग DGP (पुलिस बल के प्रमुख) के रूप में 'तदर्थ आधार' पर नियुक्ति ने समानता और गैर-मनमानी के सिद्धांतों का उल्लंघन किया। इसमें कहा गया कि ऐसा करने से यूपीएससी पैनल के माध्यम से नियुक्त पिछले DGP को भी उनके कर्तव्यों से मुक्त कर दिया गया।

उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने 2018 में पुलिस सुधारों से संबंधित प्रकाश सिंह के फैसले के आलोक में कई निर्देश पारित किए और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को किसी भी पुलिस अधिकारी को एक्टिंग DGP के रूप में नियुक्त करने से रोक दिया, जिससे इस तरह की उच्च-स्तरीय नियुक्तियों में पक्षपात और भाई-भतीजावाद से बचा जा सके।

न्यायालय ने बार-बार दोहराया कि राज्य विभाग के तीन सबसे सीनियर अधिकारियों में से एक DGP की नियुक्ति करेंगे, जिन्हें यूपीएससी द्वारा उनकी सेवा की अवधि, बहुत अच्छे रिकॉर्ड और पुलिस बल का नेतृत्व करने के अनुभव की सीमा के आधार पर उस पद पर पदोन्नति के लिए सूचीबद्ध किया गया।

16 जनवरी, 2023 को न्यायालय ने इसी तरह की अवमानना ​​कार्यवाही की सुनवाई करते हुए यूपीएससी अध्यक्ष और झारखंड के मुख्य सचिव के बयान को रिकॉर्ड में लिया, जिसमें कहा गया कि निर्देशों और पैनल की सिफारिशों के अनुसार DGP की नियुक्ति पूरी कर ली जाएगी और 12 फरवरी, 2023 से प्रभावी रूप से अधिसूचित कर दी जाएगी।

तत्कालीन सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ झारखंड राज्य के खिलाफ अवमानना ​​के इसी तरह के मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें तत्कालीन DGP केएन चौबे को मनमाने ढंग से हटाने का आरोप लगाया गया, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित निर्देशों के अनुसार 31 मई, 2019 को नियुक्त किया गया था।

याचिकाकर्ता द्वारा निम्नलिखित राहत मांगी गई है:

A. इस माननीय न्यायालय द्वारा W.P.(C) नंबर 310/1996 में पारित दिनांक 22.09.2006, 03.07.2018 और 13.03.2019 के निर्णयों/आदेशों तथा अवमानना ​​याचिका नंबर 403/2021 में पारित दिनांक 16.01.2023 के आदेश की जानबूझकर अवहेलना करने के लिए कथित अवमाननाकर्ताओं के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू की जाए।

B. अवमाननाकर्ता नंबर 1 द्वारा जारी दिनांक 25.07.2024 की अधिसूचना को रद्द करें।

मामला अब 23 सितंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

प्रकाश सिंह का 2006 का निर्णय और उसके बाद का घटनाक्रम क्या था

सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में दो पूर्व DGP प्रकाश सिंह और एन के सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर निर्णय लेते हुए कई निर्देश जारी किए, जिसमें राज्य सुरक्षा आयोग का गठन करना भी शामिल था, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकार पुलिस पर अनुचित प्रभाव न डाले।

तत्कालीन सीजेआई वाई के सभरवाल, जस्टिस सी के ठक्कर और जस्टिस पी के बालासुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि DGP और पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति योग्यता आधारित और पारदर्शी होनी चाहिए। DGP और पुलिस अधीक्षक (एसपी) जैसे अधिकारियों का न्यूनतम निश्चित कार्यकाल दो साल होना चाहिए।

जुलाई 2018 में न्यायालय ने सभी राज्यों को पुलिस महानिदेशक (DGP) को कार्यकारी क्षमता में नियुक्त करने से रोक दिया था, यह देखते हुए कि प्रकाश सिंह के मामले में उसके 2006 के फैसले के किसी भी विश्लेषण पर ऐसी अवधारणा बोधगम्य नहीं है।

तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस ए. एम. खानविलकर की पीठ ने कहा कि सभी संबंधित पक्षों को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि इस तरह से चयनित और नियुक्त व्यक्ति अपनी रिटायरमेंट के बाद भी पद पर बने रहें।

हालांकि, यह स्पष्ट किया गया कि उक्त निर्देश का यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता कि यूपीएससी DGP के रूप में चयन के उद्देश्य से केवल उन्हीं अधिकारियों को नियुक्त कर सकता है, जिनकी सेवा के 2 वर्ष शेष हैं।

पीठ ने आगे कहा कि सभी राज्यों को रिक्तियों की प्रत्याशा में अपने प्रस्ताव समय से पहले यूपीएससी को भेजने के लिए बाध्य किया गया, अर्थात वर्तमान पदधारी की सेवानिवृत्ति से 3 महीने पहले, जिसके बाद यूपीएससी प्रकाश सिंह निर्णय के अनुसार पुलिस बल का नेतृत्व करने के लिए उनकी सेवा अवधि, बहुत अच्छे रिकॉर्ड और अनुभव की सीमा के आधार पर विभाग के तीन वरिष्ठतम अधिकारियों का पैनल तैयार करेगा।

अंत में, इस प्रकार तैयार किए गए पैनल की सूचना राज्य को दी जाएगी, जो तुरंत पैनल में शामिल व्यक्तियों में से एक का चयन और नियुक्ति करेगा।

पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि राज्यों द्वारा बनाए गए ऐसे कोई भी कानून/नियम जो 2006 के निर्णय को प्रभावित करते हैं, स्थगित रहेंगे, जिससे इन निर्देशों से किसी भी राज्य को संशोधन के लिए आवेदन में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता मिलेगी।

13 मार्च, 2019 को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की पीठ ने 2018 के निर्देशों को स्पष्ट करते हुए कहा कि पुलिस महानिदेशक (DGP) के पद के लिए केवल उन्हीं अधिकारियों पर विचार किया जाना चाहिए, जिनका सेवा में कम से कम छह महीने का कार्यकाल बचा हो। इसने आगे कहा कि संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा DGP के पद के लिए सिफारिश और पैनल की तैयारी पूरी तरह से योग्यता के आधार पर होनी चाहिए।

अवमानना ​​याचिका एओआर विकास मेहता की सहायता से दायर की गई।

केस टाइटल: नरेश मकानी बनाम लालबियाकटलुंगा खियांगटे और अन्य। अवमानना ​​याचिका (सिविल) डायरी नंबर 35226/2024

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