सुप्रीम कोर्ट ने डीके शिवकुमार के खिलाफ CBI जांच के लिए सहमति वापस लेने के खिलाफ दायर याचिका पर नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) विधायक बसंगौड़ा पाटिल यतनाल द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया। उक्त याचिका में आय से अधिक संपत्ति के मामले में Congress नेता और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार पर मुकदमा चलाने के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा CBI को दी गई सहमति वापस लेने का विरोध किया गया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने आदेश पारित करते हुए मामले को नवंबर में सूचीबद्ध किया। याचिकाकर्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी, जिसमें CBI के लिए सहमति वापस लेने पर सवाल उठाने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
बता दें, CBI और बी पाटिल यतनाल द्वारा दायर दो याचिकाओं को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि इस मामले पर संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णय लिया जा सकता है, क्योंकि यह राज्य और संघ के बीच का विवाद है।
हाईकोर्ट ने कहा था,
“हम मानते हैं कि वर्तमान रिट याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं। यह विवाद केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाली CBI और राज्य सरकार के बीच है। ऐसे विवाद जिनमें केंद्र सरकार का अधिकार और राज्य सरकार की स्वायत्तता शामिल है, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के मूल अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत अधिक उचित तरीके से निपटाया जाता है। तदनुसार, रिट याचिकाओं को सुनवाई योग्य न मानते हुए खारिज किया जाता है। याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उचित उपाय करने की स्वतंत्रता दी गई है।"
इस निर्णय का विरोध करते हुए बी पाटिल यतनाल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन CBI द्वारा अभी तक कोई अपील दायर नहीं की गई।
सुनवाई की शुरुआत में सीनियर एडवोकेट डॉ अभिषेक मनु सिंघवी (शिवकुमार की ओर से उपस्थित) ने बताया कि CBI, जिससे सहमति वापस ले ली गई, अपील में नहीं आई है। बल्कि, निजी याचिकाकर्ता द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की गई, "जो राजा से भी अधिक शाही है।"
सीनियर एडवोकेट ने आरोप लगाया कि इस श्रेणी के मामलों को लेने, मुकदमा चलाने का निर्णय केंद्र सरकार का विशेषाधिकार है।
याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने इन दावों का खंडन किया, जिन्होंने कहा कि आरोपित निर्णय में याचिकाकर्ता के स्थान के बारे में एक शब्द भी नहीं था।
जस्टिस कांत ने प्रस्तुतियां सुनने के बाद संविधान के अनुच्छेद 131 की प्रयोज्यता पर पक्षों से सवाल किया।
आदेश लिखने के बाद न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा,
"यदि गुण-दोष पर कुछ हो तो यह हमेशा आदर्श होता है। लोगों के मन में इस तरह का संदेह क्यों पैदा किया जाए?"
केस टाइटल: बसनगौड़ा आर. पाटिल (यतनाल) बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 12282/2024