सुप्रीम कोर्ट ने बिहार नगर निकायों में आरक्षण से OBC को बाहर करने की याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2024-03-18 04:55 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (15 मार्च) को बिहार के नगर निगम चुनावों में आरक्षण के लिए 'ट्रिपल टेस्ट' के दायरे से अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को बाहर करने का मुद्दा उठाने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने यह आदेश 31 जनवरी को पारित पटना हाईकोर्ट के फैसले को याचिकाकर्ता की चुनौती पर पारित किया, जिसने इस मुद्दे से संबंधित उनकी रिट याचिका खारिज कर दी।

यह प्रश्न प्रारंभ में पटना हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष आया था, जिसने 4 अक्टूबर, 2022 के फैसले में घोषित किया कि राज्य के शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में OBC और अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिए सीटों का आरक्षण अवैध है, क्योंकि विकास किशनराव गवली बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य एलएल 2021 एससी 13 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कोटा "तीन में से दो परीक्षणों में विफल रहा"। हाईकोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) को स्थानीय चुनावों में OBC के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य श्रेणी की सीटों के रूप में फिर से अधिसूचित करने का निर्देश दिया।

जब प्रतिवादी-राज्य द्वारा निर्णय के संबंध में पुनर्विचार कार्यवाही शुरू की गई तो 'ट्रिपल टेस्ट' अभ्यास को पूरा करने के लिए 'समर्पित आयोग' का गठन किया गया। इस आयोग ने OBC को सर्वेक्षण के दायरे से बाहर करते हुए ईबीसी पर रिपोर्ट प्रस्तुत की। व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष नई रिट याचिका दायर की, जिसमें विवादित निर्णय पारित किया गया। इस फैसले से यह निष्कर्ष निकला कि अक्टूबर, 2022 के पहले फैसले में केवल ईबीसी के लिए आरक्षण को अवैध और बुरा नहीं माना गया।

ट्रिपल टेस्ट की उत्पत्ति डॉ के कृष्ण मूर्ति बनाम भारत संघ (2010) में संविधान पीठ के फैसले में निहित है, जो संविधान के अनुच्छेद 243डी(6) और अनुच्छेद 243टी(6) की व्याख्या पर केंद्रित है। ये अनुच्छेद क्रमशः पंचायतों और नगर निकायों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की अनुमति देने वाले कानूनों के अधिनियमन को अधिकृत करते हैं।

इस फैसले की पृष्ठभूमि में विकास किशनराव गवली मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट का प्रस्ताव रखा, जिसका पालन OBC श्रेणी को आरक्षण प्रदान करने से पहले किया जाना है।

इस टेस्ट के संदर्भ में सरकार यह करेगी:

क) स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की कठोर अनुभवजन्य जांच करने के लिए समर्पित आयोग का गठन।

बी) आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्थानीय निकायों में आवश्यक आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करें, ताकि अतिशयोक्ति न हो।

ग) सुनिश्चित करें कि एससी/एसटी/ओबीसी के लिए आरक्षण कुल सीटों के 50 प्रतिशत से अधिक न हो।

याचिका एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड राहुल श्याम भंडारी द्वारा दायर की गई।

केस टाइटल: सुनील कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 5864/2024

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