सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक की नियुक्ति से इनकार करने पर मध्य प्रदेश सरकार पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना करने और अनुबंध के आधार पर चयनित 'संविदा शिक्षक' को वैध नियुक्ति से इनकार करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार पर 10,00,000/- (दस लाख रुपये) का जुर्माना लगाया। अदालत ने राज्य सरकार को शिक्षक को राहत देने से इनकार करने के लिए जानबूझकर, अवैध, दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई करने के लिए जिम्मेदार दोषी अधिकारियों से उक्त राशि वसूलने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश के उस हिस्से को पलटते हुए, जिसमें अपीलकर्ता/शिक्षक को प्रतिपूरक राहत देने से इनकार किया गया, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा कि यह स्वीकार करने के बावजूद कि अपीलकर्ता की नियुक्ति गलत तरीके से अस्वीकार की गई, जो उसके अपने आदेश का उल्लंघन है, हाईकोर्ट अपीलकर्ता को प्रतिपूरक राहत प्रदान करने में विफल रहा, जबकि उसने यह माना कि उसे अवैध रूप से उसके वैध अधिकार से वंचित किया गया।
जस्टिस संदीप मेहता द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया,
“31 अगस्त, 2008 को संविदा शाला शिक्षक ग्रेड-III के पद के लिए आयोजित चयन परीक्षा उत्तीर्ण करने के बावजूद, अपीलकर्ता को अपनी सफलता का फल नहीं मिला। राज्य सरकार ने अपीलकर्ता को राहत देने से इनकार करने के लिए 29 जुलाई, 2009 को जारी संशोधित नियम यानी नियम 7-ए की ढाल ली, जबकि उक्त नियम का कोई पूर्वव्यापी आवेदन नहीं है। इतना ही नहीं, हाईकोर्ट द्वारा उक्त नियम को निरस्त करने तथा अपीलकर्ता के पक्ष में बार-बार आदेश पारित करने के बावजूद, 21 मार्च, 2018 को एक और अधिसूचना जारी की गई, जिससे संशोधित नियम 1 जनवरी, 2008 से प्रभावी हो गया, अर्थात भर्ती की तिथि से पहले।''
न्यायालय ने राज्य सरकार की कार्रवाई को हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों को किसी भी तरह से दरकिनार करने का प्रयास बताया, जिससे अपीलकर्ता तथा उसके साथियों को नियुक्ति के उनके वैध दावे से वंचित किया जा सके, जो बहुत पहले से ही स्पष्ट है।
मनोज कुमार बनाम भारत संघ तथा अन्य के मामले का संदर्भ देते हुए न्यायालय ने माना कि अपीलकर्ता राज्य सरकार तथा उसके अधिकारियों की मनमानी तथा अत्याचारपूर्ण कार्रवाई के कारण उस पर आए दुख के लिए प्रतिपूरक राहत के साथ-साथ मुआवजे की हकदार है।
अपीलकर्ता को प्रतिपूरक राहत प्रदान करने का उद्देश्य, राज्य सरकार के अधिकारियों के अत्याचारी रवैये के कारण लंबे समय तक मुकदमेबाजी के कारण उसे हुई क्षति की भरपाई के लिए उचित उपाय करना था, जिन्होंने अपीलकर्ता को संविदा शिक्षक के पद पर नियुक्ति देने से इनकार कर दिया। हाल ही में, वंश बनाम शिक्षा मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मामले में अदालत ने प्रतिवादियों के असंवेदनशील, अन्यायपूर्ण, अवैध और मनमाने दृष्टिकोण और न्यायिक प्रक्रिया में हुई देरी के कारण एमबीबीएस पाठ्यक्रम के पहले वर्ष में उसके सही प्रवेश से अवैध रूप से वंचित होने के खिलाफ उम्मीदवार को प्रतिपूरक राहत प्रदान की।
तदनुसार, निम्नलिखित निर्देश जारी किए जाते हैं:-
"(i) अपीलार्थी को तत्काल संविदा शाला शिक्षक ग्रेड-III या समकक्ष पद पर आज से 60(साठ) दिन की अवधि के भीतर नियुक्त किया जाएगा।
(ii) नियुक्ति आदेश उस तिथि से प्रभावी होगा, जिस दिन चयन प्रक्रिया दिनांक 31 अगस्त, 2008 के अनुसार प्रथम नियुक्ति आदेश जारी किया गया।
(iii) अपीलार्थी सेवा में निरंतरता की हकदार होगी। हालांकि, वह पिछले वेतन की हकदार नहीं होगी। हालांकि, उसे 10,00,000/- (केवल दस लाख रुपये) का जुर्माना दिया जाता है। उपरोक्त राशि मध्य प्रदेश राज्य द्वारा अपीलार्थी को 60 दिनों के भीतर भुगतान किया जाएगा।
(iv) राज्य सरकार जांच करेगी और उक्त राशि 10,00,000/- (केवल दस लाख रुपये) उन अधिकारियों से वसूल करेगी, जो इस मामले में दोषी पाए गए। अपीलकर्ता को राहत देने से इनकार करने के लिए जानबूझकर, अवैध, दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई की गई।"
उपर्युक्त निर्देशों के आधार पर अपील को अनुमति दी गई।
केस टाइटल: स्मिता श्रीवास्तव बनाम मध्य प्रदेश राज्य