सुप्रीम कोर्ट ने गलत परिवार को शव सौंपने के लिए अस्पताल को जिम्मेदार ठहराया, 25 लाख रुपये का मुआवजा देने की अनुमति दी
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि केरल के एर्नाकुलम में अस्पताल की ओर से सेवा में कमी थी, जिसने मृतक मरीज के शव को गलत परिवार को सौंप दिया, जिसने शव का अंतिम संस्कार कर दिया।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने शिकायतकर्ताओं और अस्पताल की क्रॉस-अपीलों का निपटारा करते हुए शिकायतकर्ताओं को 25 लाख रुपये का मुआवजा बहाल किया, जिनके पिता का शव दूसरे परिवार को सौंप दिया गया।
खंडपीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के फैसले को अस्वीकार किया, जिसने राज्य आयोग द्वारा दिए गए 25 लाख रुपये के मुआवजे को घटाकर 5 लाख रुपये किया।
"NCDRC द्वारा SCDRC द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं था, खासकर इस तथ्य के मद्देनजर कि शिकायतकर्ताओं के साथ गलत व्यवहार किया गया। अपीलकर्ता की ओर से सेवा में कमी की गई- अस्पताल ने शिकायतकर्ताओं के पिता के शव को दूसरे परिवार को सौंप दिया, जिन्होंने उक्त शव का अंतिम संस्कार किया। इसलिए अपीलकर्ता सेवा में कमी के कारण अपने दायित्व से बच नहीं सकते थे।”
30 दिसंबर, 2009 को शिकायतकर्ताओं के पिता आर पुरुषोत्तमन को एर्नाकुलम मेडिकल सेंटर में भर्ती कराया गया। उसी रात बाद में उनकी मृत्यु हो गई। उनके परिवार ने अनुरोध किया कि उनके शव को अस्पताल के शवगृह में रखा जाए। लेफ्टिनेंट कर्नल एपी कंठी को 28 दिसंबर, 2009 को उसी अस्पताल में भर्ती कराया गया और 31 दिसंबर, 2009 को उनका निधन हो गया। उनके शव को भी अस्पताल के शवगृह में रखा गया।
पुरुषोत्तमन का परिवार 1 जनवरी, 2010 को उनका शव लेने अस्पताल पहुंचा तो उन्होंने बताया कि शवगृह में रखा शव पुरुषोत्तमन का नहीं था। यह बात सामने आई कि अस्पताल ने पुरुषोत्तमन के शव को कंठी के परिवार को सौंप दिया, जिन्होंने तब तक उसका अंतिम संस्कार कर दिया था। पुरुषोत्तमन के परिवार ने केरल राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (SCDRC) के समक्ष शिकायत दर्ज कराई, जिसमें अस्पताल की लापरवाही के लिए 1 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा गया।
5 अक्टूबर, 2016 को SCDRC ने शिकायतकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया और अस्पताल को शिकायत की तारीख से 12 प्रतिशत प्रति वर्ष ब्याज के साथ 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। अस्पताल ने NCDRC के समक्ष अपील दायर की। 4 जुलाई, 2019 को NCDRC ने मुआवजे को घटाकर 5 लाख रुपये कर दिया और अस्पताल को राज्य आयोग के उपभोक्ता कानूनी सहायता खाते में 25 लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया।
शिकायतकर्ताओं के साथ-साथ अस्पताल ने भी इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि NCDRC के पास SCDRC के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं था।
न्यायालय ने कहा,
“हमारा मानना है कि इस तरह का आदेश पारित करने का कोई औचित्य नहीं था। SCDRC ने तथ्यों और पक्षों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के पूरे परिप्रेक्ष्य पर अपना विवेक लगाया। उसके बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि शिकायतकर्ताओं के लिए 25,00,000/- (केवल पच्चीस लाख रुपये) की राशि पर्याप्त मुआवजा होगी।”
न्यायालय ने NCDRC का आदेश खारिज किया और शिकायतकर्ताओं को 25 लाख रुपये देने के SCDRC का आदेश बहाल कर दिया। हालांकि, इसने मुआवजे पर ब्याज दर को 12 प्रतिशत से घटाकर 7.5 प्रतिशत प्रति वर्ष कर दिया।
न्यायालय ने शिकायतकर्ताओं को SCDRC के पास अस्पताल द्वारा पहले से जमा किए गए 10 लाख रुपये, किसी भी अर्जित ब्याज के साथ वापस लेने की अनुमति दी। अस्पताल को शिकायतकर्ताओं को ब्याज के साथ शेष 15 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल- मेसर्स एर्नाकुलम मेडिकल सेंटर एवं अन्य बनाम डॉ. पीआर जयश्री एवं अन्य