सुप्रीम कोर्ट ने अनियमितताओं की CBI जांच के आदेश के खिलाफ आरजी कर के पूर्व प्रिंसिपल की याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष की याचिका खारिज की। उक्त याचिका में उन्होंने कथित वित्तीय अनियमितताओं की जांच CBI को सौंपने के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि जांच के हस्तांतरण की मांग करने वाली याचिका में आरोपी को सुनवाई का अधिकार नहीं है।
घोष की ओर से सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि याचिकाकर्ता जांच पर आपत्ति नहीं कर रहा है, लेकिन वह हाईकोर्ट द्वारा की गई कुछ प्रतिकूल टिप्पणियों से व्यथित है।
सीजेआई ने कहा,
"आरोपी के तौर पर जब हाईकोर्ट जांच की निगरानी कर रहा है और CBI/SIT को ट्रांसफर कर रहा है तो आपको जनहित याचिका में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।"
उन्होंने कहा कि आपत्ति हाईकोर्ट द्वारा कथित अनियमितताओं को 9 अगस्त को ट्रेनी डॉक्टर के बलात्कार-हत्या से जोड़ने के अवलोकन पर थी।
हालांकि, इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार करते हुए सीजेआई ने कहा कि यह जांच का विषय है।
संदर्भ के लिए, हाईकोर्ट ने टिप्पणी की:
"उपर्युक्त आरोपों और घटना के स्थान (बलात्कार-हत्या) के बीच स्पष्ट संबंध के प्रकाश में यह देखते हुए कि XXXXX (पीड़ित के माता-पिता) बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य के मामले में जांच WPA (P) 339/2024 में पहले ही CBI को सौंपी जा चुकी है, व्यापक और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के हित में वर्तमान मामले की जांच भी इसी तरह CBI को हस्तांतरित की जानी चाहिए।"
अरोड़ा ने प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट का आदेश अस्पताल के पूर्व कर्मचारी अख्तर अली द्वारा दायर जनहित याचिका में पारित किया गया, जिनकी इसी मुद्दे पर पहले की जनहित याचिकाओं को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।
अरोड़ा ने आग्रह किया,
"जहां याचिकाएं किसी खास तथ्यात्मक पृष्ठभूमि से प्रेरित हैं तो उन याचिकाओं पर अत्यंत सावधानी से विचार किया जाना चाहिए।"
चीफ जस्टिस ने कहा,
"हमें अख्तर अली को क्लीन चिट देने की जरूरत नहीं है। ये ऐसे मामले नहीं हैं, जिन्हें तकनीकी आधार पर निपटाया जा सके, क्योंकि तीन जनहित याचिकाएं खारिज कर दी गई। हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। उन्होंने जांच CBI को सौंप दी है। इस स्तर पर आपका कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। अख्तर अली खुद जांच का विषय हो सकते हैं। यह अलग मुद्दा है।"
अरोड़ा ने पूछा,
"जब याचिका खुद बायोमेडिकल कचरे के मुद्दे तक सीमित है, इस विशेष घटना के साथ किसी संबंध के बारे में नहीं कहती है तो क्या हाईकोर्ट टिप्पणियों के साथ आदेश पारित कर सकता है?"
सीजेआई ने कहा,
"बायोमेडिकल कचरे का मुद्दा ट्रिगर है। इसलिए हाईकोर्ट चाहता है कि इस मामले को इसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाया जाए। हमारे लिए हस्तक्षेप करना जरूरी नहीं है।"
अरोड़ा ने पूछा,
"मैं यह समझने में विफल हूं कि हाईकोर्ट स्पष्ट संबंध के बारे में इस निष्कर्ष पर क्यों पहुंचा।"
सीजेआई ने कहा,
"हमें जांच को बाधित नहीं करना चाहिए। हम CBI से भी हमारे समक्ष स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कह रहे हैं।"
अरोड़ा ने जब जोर देकर कहा कि टिप्पणियों को हटाया जाना चाहिए तो सीजेआई ने कहा कि ये "प्रथम दृष्टया टिप्पणियां" हैं। इस मोड़ पर अरोड़ा ने अनुरोध किया कि न्यायालय यह दर्ज कर सकता है कि ये प्रथम दृष्टया टिप्पणियां हैं क्योंकि अन्यथा याचिकाकर्ता के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया जाएगा। हालांकि, पीठ ने इनकार कर दिया।
इसके बाद अरोड़ा ने कहा कि CBI को केवल बायोमेडिकल कचरे की जांच करनी चाहिए, इसे हत्या-बलात्कार की घटना से जोड़े बिना।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने याचिका पर आपत्ति जताते हुए कहा कि आरोपी यह नहीं कह सकता कि जांच कैसे की जानी चाहिए।
सीजेआई ने कहा,
"मिस्टर अरोड़ा, हम भी यह नहीं कह सकते कि उन्हें कैसे जांच करनी चाहिए।"
घोष उस अस्पताल और कॉलेज के प्रिंसिपल थे, जहां 9 अगस्त को जूनियर डॉक्टर के साथ क्रूर बलात्कार और हत्या की घटना हुई थी। 13 अगस्त को हाईकोर्ट ने डॉक्टर की मौत से संबंधित जांच को भी CBI को सौंप दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष घोष ने दलील दी कि उन्हें सुनवाई का अवसर दिए बिना ही हाईकोर्ट ने जांच को स्थानांतरित कर दिया। वे हाईकोर्ट की टिप्पणियों से व्यथित हैं, जिसमें उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को अस्पताल में हुई घटना से जोड़ा गया।
ट्रांसफर की गई जांच आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पूर्व उप अधीक्षक अख्तर अली द्वारा लगाए गए आरोपों से संबंधित है, जिन्होंने पूर्व प्रिंसिपल डॉ. घोष के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें पूर्व प्रिंसिपल द्वारा गंभीर अवैधानिकताएं किए जाने का आरोप लगाया गया था।
अपनी याचिका में अली ने आरोप लगाया कि घोष ने शवों के कुप्रबंधन, खुले बाजार में बायोवेस्ट को फिर से बेचना, सार्वजनिक धन का दुरुपयोग आदि जैसी गंभीर अवैधानिकताएं शुरू कीं।
इससे पहले की सुनवाई में हाईकोर्ट ने सवाल उठाया कि राज्य ने 9 अगस्त की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद ही SIT जांच क्यों शुरू की, जबकि पहले ही कई शिकायतें दर्ज की जा चुकी थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार-हत्या की घटना पर स्वत: संज्ञान लेते हुए CBI और पश्चिम बंगाल पुलिस से स्टेटस रिपोर्ट मांगी है।
केस टाइटल: संदीप घोष बनाम पश्चिम बंगाल राज्य | डायरी नंबर 38744-2024