सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न पीड़िता को मुआवजा देने के आरोपी को अग्रिम जमानत देने के हाईकोर्ट के आदेश की निंदा की

Update: 2024-01-23 05:05 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत सिर्फ इसलिए नहीं दी जा सकती, क्योंकि आरोपी अंतरिम मुआवजा देने को तैयार है।

जस्टिस बी.आर. गवई और संदीप मेहता की खंडपीठ ने इसमें शामिल आरोपियों को अग्रिम जमानत देने के चुनौती भरे आदेश को कानून के निर्धारित सिद्धांतों के खिलाफ पाया।

वर्तमान मामले में आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया।

आरोपी व्यक्ति के खिलाफ प्रथम सूचना देने वाले की गरिमा को ठेस पहुंचाने और इसके अलावा सोशल मीडिया पर अश्लील वीडियो वायरल करने का आरोप है। इससे व्यथित होकर आरोपी/वर्तमान प्रतिवादी ने झारखंड हाईकोर्ट, रांची का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट के समक्ष अन्य बातों के अलावा, प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि वह मामले की जांच में सहयोग करने के लिए तैयार है और शिकायकर्ता को अंतरिम पीड़ित मुआवजे के रूप में 1,00,000/- रुपये का भुगतान करने का भी वचन दिया। कोर्ट ने अपने दो पेज के आदेश में आरोपी को जमानत देते समय उक्त राशि जमा करने को कहा। हाईकोर्ट द्वारा आक्षेपित आदेश में कोई कारण नहीं दिया गया।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में दर्ज किया,

“मामले के उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मैं याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत का विशेषाधिकार देने के लिए इच्छुक हूं। इसलिए पुलिस द्वारा गिरफ्तारी या इस आदेश की तारीख से बारह सप्ताह की अवधि के भीतर आत्मसमर्पण करने की स्थिति में याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा किया जाएगा। अंतरिम पीड़ित मुआवजे के रूप में शिकायकर्ता के पक्ष में डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से 1,00,000/- रुपये दिए जाएंगे...''

इस आदेश पर आपत्ति जताते हुए राज्य ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पीठ ने हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए इस तरह के दृष्टिकोण को कानून की दृष्टि से अस्थिर पाया। कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस बात की भनक तक नहीं है कि हाईकोर्ट ने किस आधार पर अग्रिम जमानत की अनुमति दी।

इसमें कहा गया,

"केवल इसलिए कि आरोपी अंतरिम मुआवजे के रूप में कुछ राशि का भुगतान करने को तैयार है, अग्रिम जमानत देने का आधार नहीं हो सकता।"

हालांकि, यह देखते हुए कि पीड़ित ने उपर्युक्त राशि स्वीकार करने की बात कही, न्यायालय ने विवादित आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया। बहरहाल, अपील का निपटारा करने से पहले न्यायालय ने अपने रजिस्ट्रार (न्यायिक) से हाईकोर्ट रजिस्ट्रार (न्यायिक) को तत्काल आदेश बताने के लिए कहा। बाद में उचित दिशा-निर्देश के लिए इसे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के समक्ष रखने का निर्देश दिया गया।

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