सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (23 अक्टूबर) को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाओं की सुनवाई टाल दी, क्योंकि इस मामले पर सुनवाई शुरू करने वाली पीठ की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की रिटायरमेंट से पहले फैसला आने की संभावना नहीं है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने 17 अक्टूबर को मामले की सुनवाई शुरू की। अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि उन्हें अपनी दलीलें पूरी करने में कम से कम एक दिन लगेगा।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी (महाराष्ट्र राज्य के लिए) और सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह (प्रतिवादी-पत्नी के लिए) ने भी कहा कि उन्हें भी अपनी दलीलें पूरी करने के लिए एक-एक दिन की आवश्यकता होगी। कुछ हस्तक्षेपकर्ताओं (पुरुष अधिकार निकायों) ने भी न्यायालय को संबोधित करने के लिए समय मांगा।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर इस सप्ताह बहस पूरी नहीं हो पाती है तो 10 नवंबर, 2024 को उनकी रिटायरमेंट से पहले मामले पर फैसला करना मुश्किल होगा। अगले सप्ताह दिवाली की छुट्टियों के कारण न्यायालय बंद है।
पीठ ने सुनवाई स्थगित करते हुए आदेश में दर्ज किया,
"समय के अनुमान को देखते हुए हमारा मानना है कि निकट भविष्य में सुनवाई पूरी करना संभव नहीं होगा।"
मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए दूसरी पीठ के समक्ष रखा जाएगा।
पीठ द्वारा आदेश सुनाए जाने के बाद शंकरनारायणन ने कहा,
"हमें गहरा खेद है। हम यहीं पर सुनवाई जारी रखना चाहते थे।"
पिछले सप्ताह सीनियर एडवोकेट करुणा नंदी और कॉलिन गोंजाल्विस ने दलीलें पेश की थीं।
नंदी ने पीठ को मामले की सुनवाई के लिए राजी करते हुए कहा कि अगर सभी लोग समन्वय करें और न्यायालय के अनुशासन का पालन करें तो मामले को पूरा करना संभव है। उन्होंने कहा कि जोसेफ शाइन और इंडिपेंडेंट थॉट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पहले ही इस क्षेत्र को काफी हद तक कवर कर चुके हैं। हालांकि, सीजेआई ने कहा कि न्यायालय दूसरों को अपनी दलीलें रखने से नहीं रोक सकता।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र का रुख यह है कि विवाह यौन सहमति की अवधारणा को खत्म नहीं करता। साथ ही एसजी ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के लिए न्यायालय को विभिन्न दृष्टिकोणों से स्थिति का आकलन करना होगा।
नंदी ने आग्रह किया,
"यह देश की लाखों महिलाओं के बारे में है, इसमें बहुत जल्दी है।"
नंदी ने कहा,
"इन सभी महत्वपूर्ण निर्णयों में आपकी विरासत, यही वह है, जो लाखों महिलाओं को बताएगी।"
एसजी ने कहा,
"आपकी विरासत हमेशा रहेगी। हमें यह कहकर इसका उपहास नहीं उड़ाना चाहिए...।"
याचिकाकर्ता भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 और भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 को चुनौती देते हैं, जो यह प्रावधान करती है कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध/यौन क्रियाएं "बलात्कार" नहीं होंगी।
केंद्र सरकार ने अपने हालिया हलफनामे में न्यायालय द्वारा वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने का विरोध किया। केंद्र सरकार ने कहा कि विवाहित महिलाओं को यौन हिंसा से बचाने के लिए कानून में वैकल्पिक उपाय पहले से ही मौजूद हैं और विवाह संस्था में "बलात्कार" के अपराध को आकर्षित करना "अत्यधिक कठोर" और असंगत हो सकता है।
इस मुद्दे को उठाने वाली कई याचिकाओं को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है - पहला, वैवाहिक बलात्कार अपवाद पर दिल्ली हाईकोर्ट के विभाजित फैसले के खिलाफ अपील; दूसरा, वैवाहिक बलात्कार अपवाद के खिलाफ दायर जनहित याचिकाएं; तीसरा, कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका जिसमें पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाने के लिए धारा 376 आईपीसी के तहत पति के खिलाफ लगाए गए आरोपों को बरकरार रखा गया था; और चौथा, हस्तक्षेप करने वाले आवेदन।
केस टाइटल: ऋषिकेश साहू बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य। एसएलपी (सीआरएल) नंबर 4063-4064/2022 (और संबंधित मामले)