सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की माफी आवेदन पर निर्णय लेने में देरी के लिए आलोचना की, सचिव को पेश होने का निर्देश दिया

Update: 2024-08-06 05:26 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के जेल विभाग के प्रधान सचिव को दोषी की क्षमा याचिका पर समय पर निर्णय लेने में सरकार की विफलता पर 19 अगस्त, 2024 को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया।

जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने दोषी की क्षमा याचिका पर कार्रवाई के संबंध में कोर्ट द्वारा निर्धारित समय सीमा का पालन करने में विफल रहने के लिए यूपी राज्य की निंदा की।

10 अप्रैल, 2024 को कोर्ट ने राज्य को याचिकाकर्ता के स्थायी छूट के मामले पर छह सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया था। 10 जुलाई, 2024 को कोर्ट ने कहा कि बारह सप्ताह बीत जाने के बावजूद कोई निर्णय नहीं लिया गया। हालांकि जेल अधिकारियों ने कथित तौर पर मंजूरी की सिफारिश की थी।

न्यायालय ने समय-सीमा को दो सप्ताह के लिए बढ़ा दिया तथा आगे कोई विस्तार नहीं किया, तथा अगली सुनवाई 5 अगस्त, 2024 के लिए निर्धारित की।

पिछले न्यायालय के आदेशों के बावजूद, सोमवार को राज्य की ओर से उपस्थित वकील ने आवेदन की समीक्षा के लिए अतिरिक्त समय मांगा।

जस्टिस ओक ने देरी पर असंतोष व्यक्त किया तथा इस बात पर प्रकाश डाला कि राज्य ने छूट याचिकाओं पर समय पर विचार करने के लिए पहले के निर्देशों का अनुपालन नहीं किया। इसलिए न्यायालय ने प्रमुख सचिव को अपने समक्ष उपस्थित होने के लिए तलब किया।

पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि उत्तर प्रदेश द्वारा अपनी छूट नीति का असंगत अनुप्रयोग समस्याग्रस्त है तथा उसने माना कि राज्य को छूट के लिए अपने स्थापित कानूनों, नियमों तथा नीतियों का पालन करना चाहिए, क्योंकि किसी भी विचलन से उन कैदियों को नुकसान हो सकता है, जिनके पास संसाधनों या जागरूकता की कमी है।

वर्ष 2022 में न्यायालय ने निर्देश दिया था कि अधिकारियों को छूट पर विचार करने के लिए कैदी की ओर से औपचारिक आवेदन के बिना ही एक बार दोषी के पात्र हो जाने पर छूट पर विचार करना चाहिए।

केस टाइटल- कुलदीप बनाम उत्तर प्रदेश राज्य तथा अन्य।

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